ज्ञानदीप
गोपाल जी त्रिपाठी
आओ दीप जलाएँ हम,
मन का तिमिर मिटाएँ हम
आओ दीप जलाएँ हम------
एक दीप हो राष्ट्रप्रेम का
एक मेरे प्रभु राम का ;
एक देशहित बलिदानों का,
एक सैनिक के नाम का ।।
एक सनातन संस्कृति के हित,
गौ-गंगा, हर-धाम का ;
सेवा, समरसता का दीपक,
संस्कृति का सत्काम का ।।
एक स्वदेशी को प्रेरित हो,
हर हाथों के काम का ;
एक शांति-सद्भाव जगाए,
विश्व-गुरु पदनाम का ।।
आओ मिलकर दीपदान कर,
कण-कण ज्योति जलाएँ हम;
कवि गोपाल ज्ञान-गरिमा का,
उजियारा फैलाएँ हम। ।
मिलकर तिमिर मिटाएँ हम।
उजियारा फैलाएँ हम। । उजियारा------
गोपाल जी त्रिपाठी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमधुर शब्दों से दे रहे जो संदेश हैं,
जवाब देंहटाएंइस संदेश में जो भाव हैं ।🌼
सब पावन घड़ी की सौंदर्य हैं,
जीवन की हर पक्ष का 🌼
निहारता यह जो वेश हैं। ✍️
❤️❤️❤️❤️
इस कृति में जो बात है🌼
वह बात ही तो बात है
और क्या कहूं मैं इस बात में
इस में ही सब बात है।२।
🙏🙏🙏🙏🙏