प्रेमचंद
मालिनी त्रिवेदी पाठक
साहित्य सेवा
में जिन्होंने,
किया निज जन्म
ही अर्पण,
बन कर कलम के
सिपाही,
दिखाया समाज को
सत्य का दर्पण।
नहीं किया अतीत
गान,
और न ही भविष्य
संधान।
किया लेखनी में
समाहित,
बस आँखों देखा
वर्तमान।
जो आज भी है
प्रासंगिक,
जो आज भी है
सामयिक।
सामाजिक
प्रश्नों से चिंतित,
रंगभूमि, सेवासदन।
बेमेल विवाह से
दुःखी,
निर्मला का
कुंठित मन।
हरिजन की
दुर्दशा से,
चित्कार रही है
कर्मभूमि,
कहीं आर्यसमाजी
विचार,
तो कहीं गाँधीविचार
की भूमि।
उपन्यासों और
कहानियों के
रहे प्रेमचंदजी
उत्तम स्रष्टा,
पात्रों की
मानसिकता के,
रहे अद्भुत
मनोद्रष्टा।
कफ़न के हों
घीसू-माधव,
या हामिद-अमीना
का ईदगाह,
कर्तव्य, प्रेम, करुणा पूरित,
उठ जाती है
टीस-आह!
समाज सुधार, देशभक्ति,
अहिंसा और
सत्याग्रह।
प्रेमचंदजी ने
किया,
मनुजता का
सम्मान-आग्रह।
त्रासदी, नारी कुंठा, व्यथा,
कृषक की
सम्पूर्ण कथा
चित्रित की
गोदान में
हृदय विदारक
सर्वथा।
रूढ़िवाद, अंधविश्वास पर,
किए कड़े-कड़े
प्रहार।
मानवीय संवेदना
की,
बहाई हृदय शृंग
से धार।
जीवन जगती के
लिए,
अपना ली सृजन
कला,
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
सूत्र करे सबका भला।
मालिनी त्रिवेदी पाठक
वड़ोदरा
बढ़िया
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