सोमवार, 31 जुलाई 2023

आलेख

 


प्रेमचंद की कहानियों में अभिव्यक्त सामाजिक चेतना

डॉ. बिनु डी.

प्रेमचंद हिंदी के युग प्रवर्तक रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। हिन्दी कहानी में प्रेमचन्द का पदार्पण उल्लेखनीय घटना है। उनकी कहानियाँ साधारण जन जीवन से जुड़ी थीं। ब्रिटिश सरकार ने उनके प्रथम कहानी संग्रह सोजेवतनको जब्त कर लिया। “प्रेमचन्द का साहित्य बीसवीं सदी के हिन्दुस्तान का सच्चा इतिहास है। हमारी जनता की सहृदयता, सहनशीलता और वीरता उनकी रचनाओं में फूल की तरह खिली हुई है । अंग्रेज़ों का बरबर पुलिस राज, खूनी आतंक और उनके मित्रों का जनता से विश्वासघात, उनकी रचनाओं में काले कुहरे की तरह छाया हुआ है।”1  कफन’, ‘दो बहनें’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘होली का उपहार,’ ‘प्रेम की होलीआदि उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।

हिन्दी साहित्य में यथार्थवादी और प्रगतिशील लेखन की अवधारणा विकसित करने में प्रेमचन्द के कथासाहित्य का सर्वाधिक योगदान है। प्रेमचन्द का विश्वास था कि “लेखक या तो देखा हुआ लिखता है या जो लिख रहा है उसे कभी अवश्य देखेगा।”2 प्रेमचन्द ने अपने जमाने की जनविरोधी राजनीति का कुरूप चेहरा देखकर उसका विरोध करना लेखन का लक्ष्य माना। वे सिर्फ अग्रेज़ों की शोषक राजनीति के विरोधी ही नहीं थे बल्कि स्वदेशी राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े पार्टी के सुविधाजीवी नेताओं के भी कटु आलोचक थे। उनका विश्वास था कि “जब तक यहाँ के साहित्य में तरक्की न होगी तब तक साहित्य, समाज और राजनीति सबके सब ज्यों का त्यों पड़े रहेंगे। साहित्य इन चीजों की उत्पत्ति के लिए एक बीज का काम देता है। साहित्य और समाज तथा राजनीति का संबन्ध बिलकुल अटल है।”3

            हिन्दी कहानी का विकास द्विवेदी युग में हुआ। हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास प्रेमचन्द जी की कहानी के विकास के साथ चलनेवाला एक सफर है। उनकी कहानियाँ तत्कालीन भारतीय समाज का सच्चा चित्र प्रस्तुत करती हैं। उनका कथा- साहित्य यथार्थवादी तथा प्रगतिशील है। उस समय भारतीय अंग्रेज़ों के गुलाम थे। भारतीय समाज, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक दृष्टि से टूट चुका था। प्रथम विश्वयुद्ध में भारत ने अंग्रेज़ों का समर्थन किया और युद्ध में खर्च करने के लिए सरकार ने भारत से धन एकत्रित किया। यह आन्दोलनों का समय था, एक ओर गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आन्दोलन चल रहे तो दूसरी ओर सुभाषचन्द्रबोस के नेतृत्व में हिंसात्मक आन्दोलन । इसके अलावा तिलक, सरदार पटेल आदि अनेक नेताओं के नेतृत्व में स्वतंत्रता आन्दोलन जारी था। अंग्रेज़ सरकार अपनी शक्ति और बुद्धि से उसे काबू में लाने की कोशिश में थी। प्रेमचन्द की रचनाओं में तत्कालीन भारतीय समाज तथा राजनीति का चित्रण मिलता है।

प्रेमचन्द की कहानियों में अभिव्यक्त सामाज

प्रेमचन्द युग के समाज में समता नहीं थी। उस समय अधिकार समाज के उच्च लोगों के हाथ में था। समाज में पूँजीवाद फैल गया था। मिल - मालिकों और मज़दूरों के बीच संघर्ष चल रहा था। प्रेमचन्द पूँजीवादी सभ्यता के विरोधी हैं। वे समाज व्यवस्था को पूँजीवाद से मुक्त करना चाहते थे। अपने प्रसिद्ध लेख महाजनी सभ्यतामें उन्होंने कहा- “एक नई सभ्यता का सूर्य सोवियत रूस सुदूर पश्चिम से उदय हो रहा है, जिसने इस नाटकीय महाजनवाद या पूँजीवाद की जड़ खोदकर फेंक दी है।………. निःसन्देह इस नई सभ्यता ने व्यक्ति स्वातंत्र्य के पंजे, नाखून और दाँत तोड़ दिए हैं। उसके राज्य में अब एक पूँजीवादी लाखों मज़दूरों का खून पीकर मोटा नहीं हो सकता। धन्य है वह सभ्यता जो मालदारी और व्यक्तिगत संपत्ति का अंत कर रही है और जल्दी या देर से दुनिया उसका पदानुकरण अवश्य करेगी।4 सामंती - कृषि - व्यवस्था के सामने पूँजीवादी व्यवस्था आ खड़ी हुई थी। पूँजीवादी - व्यवस्था धीरे- धीरे सामंतों को भी निगल रही थी। जमींदार के विरुद्ध किसान और महाजन के खिलाफ कामगार संघर्ष करने लगे। इसलिए प्रेमचन्द तथा उनके समकालीन रचनाकारों में तत्कालीन समाज व्यवस्था का चित्रण है।

प्रेमचन्द ने अपनी नशाकहानी में ज़मींदारी व्यवस्था पर प्रकाश डाला है। लेखक कहते हैं कि ईश्वरी एक बड़े ज़मींदार का लड़का था और मैंएक गरीब क्लर्क का मैंछुट्टी के दिन बिताने के लिए ईश्वरी के घर गया। वहाँ सारी सुख सुविधायें हैं- द्वार पर पहरेदार, नौकरों का कोई हिसाब नहीं, एक हाथी बँधा हुआ था। नौकर चाकर तथा घर के लोग भी मेरा सम्मान करने लगे। मेरा पैर दबाने, कपड़ा धोने तथा पाँव धोने के लिए भी नौकर मौजूद हैं। यहाँ एक ठाकुर आया करता था। वो गाँधीजी का परम भक्त था। वह बोला- “सरकार तो गाँधी बाबा के चेले हैं न? लोग कहते हैं कि यहाँ सुराज हो जाएगा तो ज़मींदार न रहेंगे।”

“मैंने शान जमाई। ज़मींदारों के रहने की ज़रूरत ही क्या है- यह लोग गरीबों का खून चूसने के सिवा और क्या करते हैं।5 आम आदमी की दृष्टि में ज़मींदार हिंसक पशु तथा खून चूसनेवाले हैं। ऐसी ज़मींदारी व्यवस्था का विरोध तथा स्वराज की कल्पना इस कहानी में मिलता है।

सरकार की नीति लागू करने में पुलिसवालों का बड़ा हाथ है लेकिन वे हमेशा अर्थ के मोह में दबकर कानून को अपनी इच्छा के अनुसार मोड़ने की कोशिश करते हैं। वे हमेशा लोगों से रिश्वत पाने के चक्कर में रहते हैं। प्रेमचन्द ने खुदाई फौजदारकहानी में पुलीस-नीति के प्रति अपना विरोध प्रकट किया है। सेठ नानकचन्द अमीर आदमी थे। एक दिन उसे एक पत्र मिला। उसमें पच्चीस हज़ार रुपये देने की धमकी थी। घर में अपनी पत्नी केसर के अलावा और कोई नहीं थी। उन्होंने सारा सामान और रोकड़, तिजोरी में रखकर बन्द किया। सेठजी पुलिस को इत्तला देने जा रहे थे। तब केसर कहती है- “पुलिसवालों को बहुत देख चुकी थी। वारदात के समय तो उनकी सूरत नहीं दिखाई देती। जब वारदात हो चुकती है तब अलबत्ता शान के साथ आकर रोब जमाने लगते हैं।6 प्रेमचन्द ने केसर के द्वारा पुलिस की कामचोरी तथा अकर्मण्यता का विरोध किया है। पुलिसवाले व्यवस्था को अपनी इच्छा के अनुसार बदल देते हैं। पुलिसवाले व्यवस्था को अपनी इच्छा के अनुसार बदल देते हैं। कभी-कभी वह रिश्वत लेकर ऐसा करने केलिए मज़बूर हो जाते है। इसका विरोध प्रेमचन्द ने अपनी दारोगाजीकहानी में किया है। एक बार लेखक ताँगे पर बैठकर कहीं जा रहा था। रास्ते में एक दारोगाजी उनके साथ ताँगे पर बैठ गये। लेखक दूसरी ओर देख रहा था तब वह शिकायत करने लगा- “आपको यकीन न आयेगा जनाब, रुपयों की थैलियाँ गले लगाई जाती हैं। हम हज़ार इनकार करें, पर चारों तरफ से ऐसे दबाब पड़ते हैं कि लाचार होकर लेना ही पड़ता है”7 लेखक ने यहाँ पुलिसवालों को रिश्वत लेने के लिए मज़बूर करनेवाली सामाजिक व्यवस्था का पोल खोल दिया है।

प्रेमचन्द युगीन समाज में विधवाओं की हालत बहुत बुरी थी। उसे स्वीकार करने केलिए अपना परिवार भी तैयार नहीं होता था । वह समाज के मंगल कार्यों में भाग नहीं ले सकती थी । ऐसी व्यवस्था में उनका जीवन कैसे मंगलमय बनेगा।  प्रेमचन्द ने अपनी कहानी बालकमें गंगू के द्वारा सामाजिक व्यवस्था का विरोध करके विधवा-विवाह का समर्थन दिया है। गंगू ब्राह्मण जाति का एक निरक्षर नौकर है। वह एक विधवा से शादी करना चाहता है। विधवा विवाह के कुछ दिन बाद उसे धोखा देकर चली जाती है। गंगू निराशा में डूब गया। गंगू किसी तरह उसे ढूँढ़ निकालने की चिन्ता में था । मालिक ने एक महीने के बाद नवजात शिशु के साथ गंगू को देखा। अब गंगू की शादी हुई केवल छह महीने बीत गए थे। गंगू बच्चे के साथ गोमतीदेवी को लखनऊ से घसीट लाया था। मालिक के द्वारा बच्चे के बारे में पूछने पर बता दिया- “यह बच्चा मेरा बच्चा है। मेरा अपना बच्चा है। मैंने एक बोया हुआ खेत लिया तो क्या उसकी फसल को इसलिए छोड़ दूँगा कि उसे किसी दूसरे ने बोया था।8 प्रेमचन्द ने गंगू के माध्यम से एक विधवा तथा उसके बच्चे को अपना बच्चा स्वीकार कराकर सामाजिक व्यवस्था में हलचल मचा दिया है।

प्रेमचन्द युग में परिवार में माता-पिता और बेटों के बीच के संबन्ध में धन एक प्रमुख अंग बन जाता है। इस कारण बेटा- बेटी कभी कभी माता-पिता के शत्रु बन जाते हैं। प्रेमचन्द ने अपनी बेटोंवाली विधवाकहानी में माँ और बेटे के रिश्ते में संपत्ति कितनी दूरी उत्पन्न कर देती है, इसे दिखाया है। पंडित अयोध्यानाथ का देहान्त हुआ। उनके चार बेटे थे और एक लड़की। उनकी पत्नी फूलमती घर की मालकिन थी। पंडित अयोध्यानाथ की मृत्यु के तेरहवें दिन ब्रह्म-भोज का आयोजन हुआ। इसमें बड़ा बेटा कामतानाथ ने सारी तैयारियाँ अपनी इच्छानुसार की। माँ की बातों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। भोज में किसी को मरी हुई चुहिया मिली। इस बात ने घर में शोर मचा दिया। माँ अपनी लड़की कुमुद की शादी कुलीन लड़का मुरारीलाल से करना चाहती है। लेकिन सारे भाई उनकी शादी दीनदयाल से करना चाहते हैं। वे माँ की सारी संपत्ति तथा गहने अपनाने का षड्यंत्र बनाते हैं। बहन की शादी में पैसा खर्च करने से इनकार कर देते हैं। कामतानाथ कहता है माँ जिन रुपयों को अपना समझती है वह तुम्हारे नहीं हैं, हमारे हैं। समझती है वह तुम्हारे नहीं हैं, हमारे हैं। दूसरे पुत्र उमानाथ ने बिना संकोच के कह दिया कि पिता के मर जाने के बाद जायदाद बेटे को मिलती है और माँ को केवल रोटी कपड़े का अधिकार है। हमारे ऋषियों ने और महाराज मनु ने ऐसी पारिवारिक व्यवस्था का कानून बना दिया है। यह सुनकर माँ जलती हुई कह उठती है- “मैंने घर बनवाया, मैंने संपत्ति जोड़ी, मैंने तुम्हें जन्म दिया, पाला और आज मैं इस घर में गैर हूँ न, मनु का यही कानून है और तुम उसी कानून पर चलना चाहते हो? अच्छी बात है। अपना घर-द्वार लो। मुझे तुम्हारी आश्रिता बनकर रहना स्वीकार नहीं! इससे कहीं अच्छा है कि मर जाऊँ। वाह रे अन्धेर । मैंने पेड़ लगाया और मैं ही उसकी छाँह में खड़ी हो नहीं सकती, अगर यही कानून है तो इसमें आग लग जाए।9 माँ ही बच्चों को जन्म देती है उसे पाला-पोसकर बड़ा बनाती है लेकिन वे बड़े होने पर उनकी बातों को स्वीकार नहीं करते है। घर में उसे नौकर की भाँति रहना पड़ता है। अपना सारा जीवन परिवार को संवारने में बितानेवाली को बुढ़ापे में कभी- कभी रहने का स्थान तथा पीने का पानी भी नहीं मिलता है। प्रेमचन्द ने अविरल चलती आनेवाली ऐसी पारंपरिक पारिवारिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला है।

प्रेमचन्द  की कहानियों में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक, आर्थिक तथा धार्मिक - व्यवस्था की कुरीतियों का सजीव चित्रण मिलता है। यह भारतीय जनता को स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति जागृत करने के लिए सहायक रहा। इतना ही नहीं प्रेमचन्द का कहानी साहित्य स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार करने में बिल्कुल सफल रहा।

संदर्भ संकेत

1. कानी की कहानी –जॉर्जकुट्टी वट्टोत्त्त

2. प्रेमचंद घर में – शिवरानी देवी

3.प्रेमचद का कथा संसार- मधुसूदन शर्मा

4. इक्कीस कहानियाँ –रायकृष्णदास वाचस्पति पाठक

5.प्रेमचंद की संपूर्ण कहानियाँ-भाग 1

 

 


डॉ बिनु डी.

सहायक आचार्य

सरकारी कला और

विज्ञान महाविद्यालय

कोष़िक्कोड

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...