प्रेम की कलम
रूपल उपाध्याय
लमही गाँव में 'प्रेम' से एक बात सुनी
गद्याकाश में विहार कर अनेक कथाएँ बुनीं
।
आज जरूरत है हर घर सेवासदन बने ,
अपनी करनी में लीन रह मानव धन्य बने।
प्रेमाश्रम का साथ ले प्रेम की वेदी पर
बैठे,
इस झाँकी को देख स्वर्ग की देवी भी
हर्षित हुई।
मंत्रों के उच्चारण में स्त्री और पुरुष
लीन हुए,
गोदान कर होरी-धनिया असहाय और दीन हुए।
कर्मभूमि पर कृष्ण ने अमृत का यह वरदान
दिया,
कर्मों का फल यहीं मिलेगा ऐसा ईश्वरीय
न्याय किया।
नमक का दारोगा हो या हो ठाकुर का कुआँ,
गबन करने पर दंड मिलेगा यही है जीवन का
जुआ ।
सिर्फ एक आवाज की गूँज से कायाकल्प हो
जाती है,
जीवन परीक्षा का अंतिम परिणाम बस कफन ही
दे जाता है।
पंच परमेश्वर हो या हो बड़े घर की बेटी,
प्रायश्चित करके ही उद्धार होगा यही
प्रतिज्ञा है लेनी ।
रूपल उपाध्याय
हिंदी विभाग,कला संकाय
महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय
बड़ौदा (गुजरात)
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