बुधवार, 28 जून 2023

चोका

 


प्रीति अग्रवाल

1)

विडम्बना

 

चाह अगर

सुख की अनुभूति

उतर जाओ

दुःख की तलहटी

मौन-गरिमा

जानना गर चाहो

शोर के मध्य

कुछ वक्त बिताओ

जीवन साथी

परखना जो चाहो

विरह-अग्नि

दूरियाँ आज़माओ

विचित्र-सी है

जीवन विडंबना

जो कुछ चाहो

उससे विपरीत

चखते जाओ

प्रकृति के नियम

रचे किसने

समय न गवाओ

सिर झुकाते जाओ!!

2)

वक्त

 

ऐसी क्या जल्दी

दो पल तो ठहर

उतरने दे

मखमली पलों को

मन्द गति से

बेकल हृदय की

तलहटी में

आत्मसात हो जाए

मरुस्थल में

अविराम बहती

प्रेम की गंगा

वक्त की बागडोर

फिसलती जाए

हाथ जोड़ूँ, मनाऊँ

हम बेचारे

चंद पल हमारे

बस तेरे सहारे!


प्रीति अग्रवाल

कैनेडा

3 टिप्‍पणियां:

  1. पत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीया पूर्वा जी का हार्दिक धन्यवाद!

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  2. जो कुछ चाहो/ उसके विपरीत/चखते जाओ। सच बात कही। दोनों चोका बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं

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