बुधवार, 28 जून 2023

ग़ज़ल

 


ग़ज़ल

इन्द्रकुमार दीक्षित

कहना चाहा था जो, अनकहा रह गया

तोड़ कर बाँध, पानी कहीं बह गया ।।

 

सिर्फ बातों ही बातों में भरमा किया

सोचकर आया कुछ, और कुछ कह गया।।

 

काम कुछ भी न आया, दुआ माँगना

जलज़ला एक आया औ घर ढह गया।।

 

तोहमतें जाने कितनी लगाई गईं 

मुस्कुराकर के सब कुछ, मगर सह गया।।

 

जो था हिस्से में पाया, गँवाया उसे

क्या कहें हाथ में अब सिफ़र रह गया।।

 


 

इन्द्रकुमार दीक्षित

देवरिया

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