डॉ. अनु मेहता
1)
कान्हा,
तुम से...
माखन-मिश्री-छाछ की गगरी
कान्हा,
तुम से जरूर मिलेगी।
मन-मथुरा-वृंदावन
की डगरी
कान्हा, तुम से जरूर मिलेगी।
गोपी- गोकुल की
मीठी रीत
कान्हा,
तुम से जरूर मिलेगी।
एक बार फिर जोगन
की प्रीत
कान्हा, तुम से जरूर मिलेगी।
नम यादों की ये
गीली मिट्टी
कान्हा,
तुम से जरूर मिलेगी।
बेनाम पते पर ये
मेरी चिट्ठी
कान्हा,
तुम से जरूर मिलेगी।
2)
तुम मुस्कुरा
देना..
सुबह की शबनम आँख
में भर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना।
तपती दुपहरी गर
बेचैन-सा कर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना।
ये सुरमयी शाम
वादों से मुकर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना
यादों की सर्द
रात सीने में ठहर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना।
खुशियों की गली
से दर्द गुजर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना।
प्यारा कोई
ख्वाब गर बिखर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना।
मेरी ये ग़ज़ल
गर दिल में उतर जाए, तब भी तुम मुस्कुरा देना।
डॉ. अनु मेहता
आचार्य,
आनंद
इंस्टीट्यूट ऑफ पी.जी. स्टडीज इन आर्ट्स,
आणंद
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