बुधवार, 28 जून 2023

कुण्डलिया


त्रिलोक सिंह ठकुरेला

1

कविता जीवन सत्व है, कविता है रसधार ।

अलंकार,रस,छंद में, भाव खड़े साकार ।।

भाव खड़े साकार, कल्पना जाग्रत  होती ।

कर देते धनवान, शब्द के उत्तम  मोती ।

ठकुरेलाकविराय, हरे तम जैसे सविता ।

मेटें सब अज्ञान, ज्ञान-सागर सी कविता ।।

2

वन-उपवन फूलें-फलें, फलदायक  हों बाग ।

सबके ही मन में रहे, वृक्षों हित अनुराग ।।

वृक्षों हित अनुराग, वृक्ष हैं जीवनदाता ।

करते बहु उपकार, वृक्ष हैं भाग्य-विधाता ।।

ठकुरेलाकविराय, सुखों से भरते तन-मन।

सुरभित हों उद्यान,हरित हों सब वन- उपवन ।।

3

गौरैया का फुदकना,मन में भरे उमंग ।

बिखराती वह चहककर, सुख के अनगिन रंग ।।

सुख के अनगिन रंग, मोद से झोली भरती ।

जीवन के अवसाद, सहज पल भर में हरती ।

ठकुरेलाकविराय, इसे आश्रय दो भैया ।

सुख से रहे सदैव, सुखद,मनहर गौरैया ।।

4

मन में यदि उल्लास हो, जग लगता सुख-धाम ।

सुखपूरित जीवन लगे, सहज, सरल सब काम ।

सहज, सरल सब काम, स्वप्न नव मन में जगते ।

लगता विश्व कुटुम्ब, अपरिचित अपने लगते ।

ठकुरेलाकविराय, हर्ष छाता जीवन में ।

सदा रहे उल्लास, पल्लवित जन के मन में ।।

5

कठपुतली सी जिन्दगी, डोर प्रकृति के हाथ ।

जाने कैसी गति रहे, जाने किसका साथ ।।

जाने किसका साथ, थिरकना, हंसना,गाना ।

कभी गमों का दौर, अचानक सुख आ जाना ।

ठकुरेलाकविराय, प्रेम से बाँधे सुतली ।

हिलमिल सबके संग, बिताये दिन कठपुतली ।।

6

जल से ही जीवन चले, जल से यह संसार ।

जल है तो कल है सुखद, जल सब का आधार ।।

जल सब का आधार,वनस्पति,खग-मृग, मानव ।

जल बिन सब निष्प्राण, मनुज,मुनि हों या दानव ।

ठकुरेलाकविराय, हीन हो नद कल-कल से ।

जल का करो बचाव, धरा की सुषमा जल से ।।

7

जीवन सबसे श्रेष्ठ है, उससे बढ़कर देश ।

जो अर्पित हो देश पर, जीवन वही विशेष ।।

जीवन वही विशेष, अमरता वह पा जाता ।

यह संसार सदैव, उसी का गौरव गाता  ।

ठकुरेलाकविराय, देशहित जिनका तन-मन ।

वंदनीय वे लोग , धन्य है उनका जीवन ।

8

पग पग पर काँटे  बिछें, क्षण क्षण झंझावात ।

छाये गहरी वेदना, बनकर काली रात ।।

बनकर काली रात, घेर ले घोर निराशा ।

फिर भी रखो सदैव, चेष्ठा, साहस, आशा ।

ठकुरेलाकविराय, भाग्य सोया जाता जग ।

रख खुद पर विश्वास, बढ़ो आगे ही पग पग ।।

9

धरती सब धारण करे, धरती सब का हेतु ।

आत्मतत्व और देह हित, धरती ही है सेतु ।।

धरती ही है सेतु, अचर चर सब की कारक ।

जितने भौतिक रूप, धरा ही सबकी धारक ।

ठकुरेलाकविराय, सभी का पोषण करती ।

करिए विविध प्रयास, सुरक्षित रखिए  धरती ।



त्रिलोक सिंह ठकुरेला

आबूरोड (राजस्थान)

2 टिप्‍पणियां:

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