त्रिलोक सिंह ठकुरेला
1
कविता जीवन सत्व है, कविता है रसधार ।
अलंकार,रस,छंद में, भाव खड़े साकार ।।
भाव खड़े साकार, कल्पना जाग्रत होती
।
कर देते धनवान, शब्द के उत्तम मोती
।
‘ठकुरेला’ कविराय, हरे तम जैसे सविता ।
मेटें सब अज्ञान, ज्ञान-सागर सी कविता ।।
2
वन-उपवन फूलें-फलें, फलदायक हों बाग ।
सबके ही मन में रहे, वृक्षों हित अनुराग ।।
वृक्षों हित अनुराग, वृक्ष हैं जीवनदाता ।
करते बहु उपकार, वृक्ष हैं भाग्य-विधाता ।।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुखों से भरते तन-मन।
सुरभित हों उद्यान,हरित हों सब वन- उपवन ।।
3
गौरैया का फुदकना,मन में भरे उमंग ।
बिखराती वह चहककर, सुख के अनगिन रंग ।।
सुख के अनगिन रंग, मोद से झोली भरती ।
जीवन के अवसाद, सहज पल भर में हरती ।
‘ठकुरेला’ कविराय, इसे आश्रय दो भैया ।
सुख से रहे सदैव, सुखद,मनहर गौरैया ।।
4
मन में यदि उल्लास हो, जग लगता सुख-धाम ।
सुखपूरित जीवन लगे, सहज, सरल सब काम ।
सहज, सरल सब काम, स्वप्न नव मन में जगते ।
लगता विश्व कुटुम्ब, अपरिचित अपने लगते ।
‘ठकुरेला’ कविराय, हर्ष छाता जीवन में ।
सदा रहे उल्लास, पल्लवित जन के मन में ।।
5
कठपुतली सी जिन्दगी, डोर प्रकृति के हाथ ।
जाने कैसी गति रहे, जाने किसका साथ ।।
जाने किसका साथ, थिरकना, हंसना,गाना ।
कभी गमों का दौर, अचानक सुख आ जाना ।
‘ठकुरेला’ कविराय, प्रेम से बाँधे सुतली ।
हिलमिल सबके संग, बिताये दिन कठपुतली ।।
6
जल से ही जीवन चले, जल से यह संसार ।
जल है तो कल है सुखद, जल सब का आधार ।।
जल सब का आधार,वनस्पति,खग-मृग, मानव ।
जल बिन सब निष्प्राण, मनुज,मुनि हों या दानव ।
‘ठकुरेला’ कविराय, हीन हो नद कल-कल से ।
जल का करो बचाव, धरा की सुषमा जल से ।।
7
जीवन सबसे श्रेष्ठ है, उससे बढ़कर देश ।
जो अर्पित हो देश पर, जीवन वही विशेष ।।
जीवन वही विशेष, अमरता वह पा जाता ।
यह संसार सदैव, उसी का गौरव गाता ।
‘ठकुरेला’ कविराय, देशहित जिनका तन-मन ।
वंदनीय वे लोग , धन्य है उनका जीवन ।
8
पग पग पर काँटे
बिछें, क्षण क्षण झंझावात ।
छाये गहरी वेदना, बनकर काली रात ।।
बनकर काली रात, घेर ले घोर निराशा ।
फिर भी रखो सदैव, चेष्ठा, साहस, आशा ।
‘ठकुरेला’ कविराय, भाग्य सोया जाता जग ।
रख खुद पर विश्वास, बढ़ो आगे ही पग पग ।।
9
धरती सब धारण करे, धरती सब का हेतु ।
आत्मतत्व और देह हित, धरती ही है सेतु ।।
धरती ही है सेतु, अचर चर सब की कारक ।
जितने भौतिक रूप, धरा ही सबकी धारक ।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी का पोषण करती ।
करिए विविध प्रयास, सुरक्षित रखिए धरती ।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आबूरोड (राजस्थान)
सुंदर पंक्तियां
जवाब देंहटाएंअनुपम कुंडलिया छन्द
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