नादान दिवानी
कुलदीप कुमार ‘आशकिरण’
पूष महीने की
भोर, चिड़ियों का कलरव, घर के भीतर से आ रही बर्तनों की खड़खड़ाहट,
नल पर पानी के लिए लगी लम्बी कतार और जानवरों की चहल-पहल से
सुबह का यह दृश्य बड़ा ही मनोरम और हृदय स्पर्शी प्रतीत हुआ। रोज की अपेक्षा
अनुराग आज जल्दी जगा और अपनी आदत के अनुसार गाँव के बीचों-बीच वाले रास्ते हरिजन
टोली की ओर से निकला। अनुराग इसी टोले से होकर अक्सर जाया करता है। कारण जो भी हो नहीं
पता पर सुबह-सुबह अन्य टोलों की अपेक्षा इस टोले में शोर कुछ अधिक रहता है। बूढ़े
चिलम पीते हुए बम भोले का स्मरण करते हैं,
गृहणी अपने बच्चों को शाम की बची हुई रोटी तेल में चुपड़कर
थमा देती हैं, आँख में कीचड़ थबोके और नाक बहाते हुए बच्चे आग के सामने
बैठकर अपनी जनराग्नि को शान्त करते हैं, नव-यौवनाएँ घर से बर्तन निकालकर खड़ंजे के किनारे राख लेकर
उन्हें रगड़ती रहती और माँ के मधुर कण्ठ से गालियाँ सुनती रहती ।
आज जैसे
अनुराग इधर से गुजरा तो उसे बड़ी शान्ति
लगी, लग रहा था पूरा मुहल्ला किसी शोक में डूबा है पर एक घर में काफी शोर मचा हुआ
था। यह घर चौधरी जी का है। वैसे तो चौधरी जी जाति के चमार हैं,
पर मुहल्ले में धाक जमें होने की वजह से लोग इन्हें
चौधरी कहते हैं। अनुराग ने वहाँ जाकर देखा
तो एक बूढ़ा चौधरी महज चौदह साल की किशोरी को लात-घूँसों से पीट रहा था,
माँ सामने खड़ी सिसकियाँ ले रही थी,
छोटे-छोटे बच्चे पास खड़े रो रहे थे,
पर किशोरी के चेहरे पर डर की कोई शिकन भी न थी और न ही वह
अपने पिटने का विरोध कर रही थी। अनुराग जैसे ही उस संभ्रांत घर के पास पहुँचा और
कारण जानने की चेष्टा की... उस किशोरी ने उसे टक-टकी निगाह से निहारा,
भय की कोई आभा उसे छू भी नहीं पा रही थी वह मुस्कुराई और
बोली ‘का जाना चाहत हो भाई’? इतना ही कह पाई थी कि पास खड़े पिता ने उस पर लातों की
बौछार कर दी और विनम्र भाव से हाथ जोड़कर कहने लगा....."भैय्या इत्ते टायम
चले जाओ... पिता की आँखों में लज्जा और
ग्लानि के आँसू थे! अपने आप में उलझा यह परिवार एक दूसरे को सिर्फ देख रहा था,
पूरा घर अस्त व्यस्त था,
घर के बर्तन अब तक खड़ंजे के किनारे पड़े थे,
बूढ़ा चौधरी अपने आप में बुदबुदा रहा था,
बच्चे सब भूलकर खेलने में जुट गए थे और माँ अब तक मूक बनी
किशोरी को निहार रही थी।
अनुराग थोड़ी
देर तक खड़ा रहा और फिर बिना कुछ जाने वहाँ चले जाना उचित समझा। वह वहाँ से चला तो
गया पर उसका मन उहा-पोह करता रहा और किशोरी के पिटने का कारण जानने की उत्सुकता
उसके मन में तीव्र होती रही। पर थोड़ी देर बाद जब वह खेतों से लौटा तो पूरे गाँव
में यह बात आग की तरह फैल चुकी थी कि आज मिनुवा और नौसदवा पकड़े गए!
मिनुवा यह वही
किशोरी है जो पिट रही थी। अपने उम्र के शायद उसने अभी चौदह सावन भी न पूरे किए
होंगे। सावला रंग, गोल चेहरा, आकर्षक शरीर, सुगढ़ता उम्र के लिहाज से कुछ अधिक,
कामोत्तेजक, समझदार और निडर । आज पूरी रात वह अपने से गायब थी। काफी
खोज-बीन के बाद भोर के लगभग चार बजे एक युवक के साथ आपत्तिजनक अवस्था में पायी
गयी। जानकर हैरानी यह हुई कि वह जिसके साथ रातभर जिस अवस्था में रही,
उस युवक की उम्र उसके पिता के उम्र से महज दो - तीन साल ही
कम होगी। युवक वही नौसदवा है जो गाँव के
किनारे लगे नलकूप की रखवाली करता है।
अनुराग मन ही मन
सोचता रहा इसे क्या नाम दूँ, क्या यह उस युवक से प्रेम करती है या चन्द पैसों के लिए
उसकी इच्छाओं की पूर्ति करती है। इसी सोच में डूबा अनुराग गोते लगाता रहा और फिर
सहसा कह उठा ... नादान दिवानी....नादान दिवानी !
कुलदीप कुमार ‘आशकिरण’
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