माहिया
ज्योत्स्ना शर्मा ‘प्रदीप’
1
सोई आँखें मूँदें
छोड़ गई मन माँ
ग़म की अनगिन बूँदें ।
2
जो हमको समझाती
जिसने जनम दिया
इक दिन वो भी जाती !
3
बिन नींदों की रैना
तेरे जाने से
भरते रे घन-नैना
।
4
कैसी लाचारी थी
आँखों की पीड़ा
होठों न उतारी थी !
5
माँ जैसा कब कोई
तेरी छाँव तले
मीठी नींदें सोई ।
6
मुरझाई तुलसी है
तेरी छाँव नहीं
श्यामा भी झुलसी है ।
7
कुछ अपनों को लूटें
फ़ूलों की क्यारी
कुछ ज़हरीले बूटे ।
8
वो घर था माई का
जब वो छोड़ चली
घर है अब भाई का
।
9
मैका अब छूट गया
पावन नातों को
मौसम वो लूट गया !
10
अपने ही छलते हैं
बाती के पीछे
अँधियारे पलते हैं ।
11
कुछ ख़ास मुखौटे थे
आँखों की चिलमन
सोने के गोटे थे
।
12
वो प्यारा नग दे दो
छू लूँ पाँवों को
माँ के वो पग दे दो !
ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप
(देहरादून/गुरुग्राम)
सुंदर माहिया।माँ के माहिया बहुत भावपूर्ण।बधाई ज्योत्स्ना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण माहिया। बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी। सुदर्शन रत्नाकर
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