मंगलवार, 30 मई 2023

माहिया

 


माहिया

ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

 

1

सोई   आँखें   मूँदें

छोड़  गई  मन  माँ

ग़म की अनगिन बूँदें ।

2

जो  हमको समझाती

जिसने जनम दिया

इक दिन वो भी जाती !

3

बिन नींदों  की  रैना

तेरे जाने से

भरते  रे  घन-नैना  ।

4

कैसी लाचारी थी

आँखों  की पीड़ा

होठों न उतारी थी !

5

माँ जैसा कब  कोई

तेरी  छाँव   तले

मीठी  नींदें   सोई ।

6

मुरझाई तुलसी है

तेरी छाँव  नहीं

श्यामा भी झुलसी है ।

7

कुछ अपनों को लूटें

फ़ूलों  की क्यारी

कुछ  ज़हरीले  बूटे ।

8

वो घर  था  माई  का

जब वो  छोड़  चली

घर  है अब  भाई  का ।

9

मैका अब छूट  गया

पावन नातों  को

मौसम वो लूट गया !

10

अपने ही छलते हैं

बाती के पीछे

अँधियारे पलते हैं ।

11

कुछ  ख़ास मुखौटे थे

आँखों की चिलमन

सोने   के   गोटे थे  ।

12

वो  प्यारा नग दे दो

छू लूँ पाँवों  को

माँ के वो पग दे दो !


 


ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप

(देहरादून/गुरुग्राम)

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर माहिया।माँ के माहिया बहुत भावपूर्ण।बधाई ज्योत्स्ना जी।

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण माहिया। बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी। सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं

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