जय-जय गरवी गुजरात
डॉ. अनु मेहता
पश्चिम भारत का सुंदर-सुरमयी, मनोरम सोलह सिंगार है,
शांति, सौहार्द और प्रेम की होती सदा रिमझिम बौछार है,
रंग- उमंग , उत्साह , उल्लास का उत्सव और
त्यौहार है,
प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ का अद्वितीय अपूर्व संसार है,
कृष्ण कन्हैया की द्वारका नगरी की गूँजी जय-जयकार है,
जगजननी माँ जगदंबा का सुशोभित सुंदर ऊँचा दरबार है
धर्म, अध्यात्म, आस्था, श्रद्धा- भक्ति से धरती सरोबार है,
जय श्री कृष्ण - से होता सबका सदैव स्वागत सत्कार है,
विशाल कच्छ के
सफेद रण का फैला विपुल विस्तार है,
ऊँचा- उन्नत, उतुंग-उत्कृष्ट
दृढ़ खड़ा गिरिवर गिरनार है,
नर्मदा, साबरमती, मही और तापी की निर्झर बहती धार है,
समंदर, दरिया, वन और पर्वतों कुदरती संपदा अपार है,
साबरमती के संत का
परम पावन सुशोभित आगार है,
लौह पुरुष सरदार की चहुँ ओर गूँजती जहाँ ललकार है,
समुन्नत सफल समृद्ध होता
वैश्विक वाणिज्य-व्यापार है,
गुजराती भाषा और साहित्य की भव्यता जहाँ असरदार है,
नरसिंह-नर्मद, गोवर्धन-मुनशी- कलमवीरों की भरमार है,
रंग कुसुंबी, रात रढियाली और जहाँ सौराष्ट्र की रसधार है
खान-पान , पहनावे की धूम देश-विदेश में पूरबहार है,
जिसके पावन गरबे की
धुन पर मोहित सारा संसार है,
नृत्य-गीत-संगीत में आदिशक्ति का जहाँ होता दीदार है,
स्त्री शक्ति-सुरक्षा और अस्मिता हेतु हर कदम तैयार है,
आज जिसके सशक्त नेतृत्व का लोहा मान रहा संसार है,
बुलंद हौसलों के सामने हरेक आपदा मान लेती हार है,
कर्मभूमि गुजरात की पावन धरा की महिमा अपरंपार है,
इस यशगाथा में कम पड़ जाती उपमाएँ और अलंकार हैं ,
ये गर्वीला, रंगीला, अलबेला गुजरात मेरा गुलज़ार है।
भारत की पुष्पवाटिका का मानो ये
सुंदर हरसिंगार है।
ऐसा कौन है भला
जिसे गुजरात से हुआ नहीं प्यार है,
गुजरात की पुण्य भूमि! तुझे सादर नमन और आभार है
डॉ. अनु मेहता
आचार्य,
आनंद इंस्टीट्यूट ऑफ पी.जी. स्टडीज इन आर्ट्स,
आणंद
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