मंगलवार, 30 मई 2023

परिचय



हिन्दी  अंचल के मणि  : जयनाथ मणि

इंद्र कुमार दीक्षित

प्राचीन काल में देवारण्य नाम से विख्यात देवरिया जनपद अनेक प्रसिद्ध संतों, महात्माओं, विद्वानों, कवियों-साहित्यकारों, कलाकारों, राजनेताओं और समाज सेवियों की सिद्ध भूमि रहा है। यहाँ की मिट्टी में चिरकाल से साहित्य के प्रति लगाव रहा है, इसके  फलस्वरूप सौ साल पहले यहाँ  के साहित्यप्रेमियों ने नागरी प्रचारिणी सभा नाम से पुस्तकालय एवं साहित्यिक संस्था की स्थापना की जो अब भी सक्रिय है। करीब डेढ सौ वर्ष पूर्व भारतेंदु युग में जब हिन्दी भाषा अपना आधुनिक स्वरूप गढ़ने के लिये संघर्ष कर रही थी तो यहीं के मझौली स्टेट के  सुकवि राजा खड्ग बहादुर मल्ल ने बांकीपुर पटना में  देवनागरी लिपि में छपाई हेतु खड्ग बहादुर प्रेस की स्थापना की थी जिसमें भारतेंदु जी की के साथ अनेक कवियों की हिन्दी रचनाएँ छ्पीं।

डॉ. जयनाथ मणि

मैं आज यहाँ  हिन्दी भाषा के अनन्य व्रती साहित्यकार डॉ. जयनाथ मणि जी का नाम  लेना चाहूँगा जिनका उल्लेख किये बिना देवरिया जनपद के हिन्दी  के विकास में योगदान की कहानी पूरी नहीं  हो सकती। श्री मणि  विगत 65-70 वर्षों से जब वे हाईस्कूल के विद्यार्थी थे, हिन्दी में कविताएँ और आलेख लिखना शुरू कर दिये थे, वे बताते हैं कि उनकी कविता उसी समय बनारस से प्रकाशित होने वाले आज अखबार में छपी थी।

बाराबंकी कलेक्टरेट की सरकारी सेवा में रहते हुए लखनऊ  की काव्य गोष्ठियों में जाया करते थे। उन दिनों  उनकी रचनाएँ निरंतर आजकल, उत्तर प्रदेश, कादम्बिनी, कल्पना साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग आदि पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती थीं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से वार्ताएं और काव्यपाठ भी प्रसारित होते थे। 1980 -81 में अपने गृह जनपद देवरिया आने के बाद श्री मणि ने साहित्य प्रेमी तत्कालीन जिलाधिकारी सुबोध नाथ झा के सहयोग से औद्योगिक आस्थान देवरिया में अंचल भारतीप्रेस लगाया और अपने सम्पादन में अंचल भारतीनामक हिन्दी की त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया जिसके एक सौ आठ अंक लगातार निकले। इनके विलक्षण सम्पादकीय प्रतिभा से देशभर के हिन्दी साहित्यकार प्रभावित हुए और शीघ्र ही अंचल  भारती ने हिन्दी जगत में सम्मान जनक स्थान बना लिया।विगत दस वर्षों से  खराब स्वास्थ्य के चलते   अंचल भारती के प्रकाशन में व्यवधान आने लगा ।इस बीच इक्का दुक्का अंक ही आ सके हैं।यह  देवरिया जैसे छोटे जनपद के लिये  बड़ी साहित्यिक उपलब्धि  है।

डॉ. मणि  एक सम्पादक ही नहीं वरन संवेदन शील कवि  और कथाकार भी हैं। अंचल भारती के आचार्य रामचंद्र शुक्ल अंक, कला अंक, काशी अंक, कविता अंक, कहानी अंक तथा नागरी प्रचारिणी सभा के स्वर्ण जयंती अंक तथा हीरक जयंती अंक विशेष चर्चित रहे हैं। इसके अलावा श्री मणि  जी ने देश के अग्रणी साहित्यकारों को अंचल  भारती सम्मानसे  नवाज कर जनपद के साहित्यिक  गरिमा को समुन्नत किया।जिनमें राम सागर शुक्ल, रामजी  त्रिपाठी, डॉ. नागेन्द्र चौरसिया, वंश देव  मिश्र,बृज भूषण शर्मा, रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी’,पत्रकार रामेन्द्र सिन्हा,उदय भान मिश्र ,डॉ  कमल किशोर गोयनकावीरेंद्र सक्सेना, चंद्रभालसुकुमार और एस पी गोयल प्रमुख हैं। न्यायाधीश कवि  और साहित्यकार डॉ  चंद्रभाल सुकुमार से तो श्री मणि  जी के निकट का पारिवारिक सम्बंध और मित्रता रही। जज साहब की पत्नी  श्रीमती लीला सुकुमार द्वारा स्थापित काव्यायनी प्रकाशन के द्वारा अंचल भारती  प्रैस से अनेकों पुस्तकें  मणि  जी के सम्पादन में प्रकाशित  हुईं।

देश की दर्जनों हिन्दी संस्थाओं ने डॉ. जयनाथ मणि को सम्मानित कर अपनी गरिमा में वृद्धि  किया। इनमें हिन्दी संस्थान उ प्र द्वारा नामित सरस्वती सम्मान, साहित्यकार संसद(बिहार) द्वारा सुमित्रानंदन पंत शिखर सम्मान,विक्रम शिला वि वि द्वारा मानद पीएच.डी. उपाधि, नागरी  प्रचारिणी सभा देवरिया  द्वारा अमृत पर्व नागरी सम्मान’  आदि  शामिल हैं।

‘कथा अनंता’,’बोध का विद्रोहऔर कोहरे का सूरजइनके कहानी संग्रह और पतझर का वसन्त’,’फुहारऔर नहीं मैं सच नहीं बोलूँगाइनके चर्चित काव्य संकलन हैं। प्रगति चेतना के समकालीन कवि तथा परिवेश के विन्दुप्रमुख निबंध संग्रह साहित्य जगत को देने वाले मणि  जी अधिक आयु के बावजूद अभी स्वस्थ व सक्रिय हैं और अंचल भारती के नवीन अंक के लिये काम कर रहे हैं।उम्र के पचासी वसन्त पार करने के उपलक्ष्य में 2019 में नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया  ने डॉ मणि  को अमृत पर्व नागरी सम्मानसे विभूषित किया। श्री जयनाथ मणि  का जन्म 28 अगस्त 1936 को रामनाथ देवरिया के साधारण गृहस्थ स्व• रघुनंदन मणि (पिता)के घर हुआ।प्रारंभिक शिक्षा देवरिया के मिडल स्कूल, हाई स्कूल मारवाड़ी इंटर कालेज से तथा स्नातक की शिक्षा लखनऊ  वि  वि से अर्जित किया।उसके बाद उ प्र सरकार के राजस्व सेवा में आ गये।जहाँ 1956 से लेकर 1994  तक विभिन्न जनपदों में सेवारत रहते हुए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बस्ती से सेवा निवृत्त हुए। 

लिखने-पढ़ने  का शौक बचपन से था जिसके  चलते  इनकी रचनाएँ देश भर  की सम्मानित पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। इसलिए अधिकारी वर्ग के कृपा और सम्मान के पात्र बने रहे।  उच्च साहित्यिक उपलब्धियों के कारण जनपद की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था  नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया में  संयुक्त मंत्री  तथा उपाध्यक्ष पद  के पर श्री जयनाथ मणि  जी को  पदस्थापित करके  सम्मान दिया।

श्री मणि ने साहित्य की विविध विधाओं कविता, गीत, कहानी, लघुकथा, आलोचना, संस्मरण, निबंध, पत्र और डायरी आदि में विपुल लेखन किया है। 1980 से लेकर 2015 तक हिन्दी की प्रसिद्ध त्रैमासिक पत्रिका अंचल भारतीका अनवरत सम्पादन किया। फुहार’  संकलन से उनका एक प्यारा गीत मुझे बहुत अच्छा लगता है  

आओ फिर नेह दीप बारें

कल की कुछ गलतियाँ सुधारें

नये वर्ष की नई किरन लेकर

आशाएँ  ज्योति से दुलारें।।

फिर उलझी गुत्थियाँ  सरल हों

पिघल पिघल स्वयं ही तरल हों।

जीवन की इस संध्या में लाएँ

चेतन स्वर बाँसुरी में ढारें  ।।

आओ फिर नेह दीप बारें

रोशनी  की ओर फिर निहारें।।

जयनाथ मणि जी ने साहित्य जगत को तीन  काव्य संकलन फुहार’ ‘पतझर का वसन्तऔर ‘नहीं मैं सच नहीं बोलूँगा’  दिया है, इनमें समय का सच उभर कर आया है। पतझर का वसन्त की समीक्षा करते हुए पत्रकार रामेन्द्र सिन्हा लिखते हैं– “समकालीन कविता का धरोहर है पतझर  का वसन्त। इन कविताओं  में जीवन  की सच्ची तस्वीरें हैं, राग विराग के चित्रों के साथ बिम्बों और प्रतीकों के सार्थक प्रयोग  हैं, रस, छंद, वक्रोक्ति की कमी भी नहीं खटकती ,सपाट बयानी में भी संवेदना भोथरी नहीं हुई है।कथ्य में संप्रेषणीयता  इस संग्रह की कविताओं की खास विशेषता  है।कविताओं में  जहाँ चेतना का प्रखर स्वर है वहीं इनमें कवि  के संकल्प शक्ति का घोष है। श्री मणि इन कविताओं में जीवन  के खुरदरे धरातल पर चलने का आश्वस्ति प्रदान करते हैं।” एक कविता के कुछ अंश –

अन्धेरे को जाना ही होगा

सोचों और विचारों के बीच

सृजन का युद्ध अब नई  ताकत से

पूरे विश्वास के साथ लड़ा  जाएगा।

×××××       ××××××

‘जंगल में एक नई सुगबुगाहट है

पतझर  का वसन्त दस्तक दे रहा है।।

        काव्य संकलन नहीं मैं सच नहीं बोलूँगा की समीक्षा करते हुए डॉ सन्तोष कुमार तिवारी लिखते हैं – “सार्थक सर्जना सदैव युगानुरूप सामाजिक सरोकार की गहरी समझ लेकर पेश होती है। वस्तु जगत का यथार्थ सामाजिक अभि  प्रायों को पकड़ने में सहायक होता है और रचनाकार जीवन मूल्यों को तलाशता हुआ मानवीय सदाशयता को रेखांकित करता है। स्वस्थ वैचारिकता, ठोस विश्लेशण और अनुभवों के गहरे स्तर पर जुड़कर ही जीवन के द्वंद्वों और अमानवीय हालातों के विरोध में रचना सम्वेदात्मक धरातल पर खड़ी होती है।यदि  उपर्युक्त भाव भूमि पर श्री जयनाथ मणि के काव्य संग्रह नहीं मैं सच नहीं बोलूँगा’ का आकलन किया जाय  तो जाहिर होगा कि इन रचनाओं की अहमियत उनका प्रगाढ़ सामाजिक रिश्ता है। संग्रह की एक कविता रोटी’ भौतिक जीवन की सच्चाई  बयाँ करती है

रोटी से खेलो नहीं/ रोटी को सेंको/ रोटी को बाँटो /

रोटी बाँचो नहीं/ आदमी को रोटी दो/पागलपन नहीं।

एक कविता चिड़िया का श्रममें राम की पीड़ा  इन शब्दों में मुखर हुई है –

‘सीता के वियोग में मुझे उर्मिला के मौन डसते रहे/

मर्यादा के बँधन  मुझे बार बार कसते रहे।

जय नाथ मणि  की रचनाओं में कहानियों का फलक बहुत व्यापक है जो उनके  कहानी संग्रह कोहरे का सूरजसे गुजरने पर दिखाई देता है। इस कथा संग्रह के बारे में  साफगोई  से  ‘हिन्दी कहानी : एक नाजुक मोड़  परशीर्षक से  प्रेमचंद से लगायत समकालीन युग तक लिखी जा रही कहानियों की पड़ताल करते हुए अपनी बातमें  श्री मणि का कहना है कि – श्रेष्ठ रचना आलोचना की मोहताज नहीं होती, उत्तम रचना अपनी आलोचना लिखवा लेती है  – सच यह कि लेखक  अपने दायित्व से पल्ला नहीं झाड़ सकता,आलोचक भी आँखें नहीं चुरा सकता और पाठक को तो बराबर चौकन्ना रहना ही होता है।समय आ गया है कि  कहानी को कफन दफन से बचाने के लिये कोई तरीका  ढूंढना ही पड़ेगा जो लोग कहानी को कब्र में डालने के आतुर हैं उन्हें रोकना ही होगा, वैसे कविता कहानी कभी मरती  नहीं है। इन सबसे नहीं लगता कि हिन्दी कहानी एक नाजुक मोड़  पर खड़ी है और वहाँ  उसके चारों ओर खतरे मंडरा रहे हैं। मेरा शुरू से मानना रहा है कि कहानियाँ मानव मन  की ग्रंथियों को खोलने वाली होनी चाहिये न की  उलझाव भरी जो कथ्य का कचूमर ही निकाल दे।कहानी  सहज सुबोध और शिल्प की जकड़न से मुक्त ही रहे तो अधिक बेहतर हो।कम से कम  मैने अपनी कहानियों में इसी सिद्धान्त  का पालन किया है।”

      कोहरे के सूरज कहानी संग्रह पर अपना मत व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध कवि  साहित्यकार डॉ  उदयभान मिश्र कहते हैं” जय नाथ मणि  की कहानियों को पढ़कर ऐसा लगता है कि  उन्होंने

एक सात्विक निष्कपट और सरल कथाकार को अपने भीतर बिठा रखा है और जब वह सक्रिय होता है तो सामाजिक विकृतियों न केवल चीर फाड़ कर्ता है,बल्कि वे समाप्त हो जायँ  इसका  सुझाव भी देता है।”

साहित्यकार जयनाथ मणि इतने संकोची हैं कि  वे बहुत कुरेदने पर भी अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ कहना नहीं चाहते। मंचों पर भाषण देने और बोलने से भी बचना चाहते हैं। एक साहित्यकार की सहजता और सरलता जहाँ उनमें गहरे तक समाई हुई है,वहीं एक कलमकार ,सम्पादक और साहित्यिक पत्रकार की खुद्दारी भी उनके  व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है,इसका प्रमाण है कि पैंतीस वर्षो तक अंचल  भारती के सम्पादक के रूप में  कभी भी उन्होंने अपने मान्य सिद्धांतों से समझौता नहीं किया न ही किसी सरकारी  दबाव के आगे झुके।

राष्ट्रीय सहारा’ सामाचार पत्र के लिये साहित्यकार राजेंद्र परदेशी को दिये गये  एक साक्षात्कार में श्रीमणि साहित्य सृजन की प्रकृति पर अपने विचार रखते हुए कहते हैं कि  –‘सृजन अपने आप में एक तपस्या है, व्यापक अर्थ में यह मानव का धर्म है।इसलिए मैं इसके शिव और सुन्दर रूप को ही पसंद करता  हूँ। मेरा मानना है  कि  समाज को दिशा देने का कार्य साहित्यकार का है इसलिये वह मात्र सामाजिक वितृष्णा कुण्ठा और सन्त्रास को रूपायित कर समाज को संवारने का काम  नहीं कर सकता। वह विषम परिस्थितियों  में अपने परिवेश में सार्थक रचना प्रक्रिया द्वारा भयाक्रांत समाज को मुक्ति की ओर अग्रसर कर सकता है परंतु  इसके लिये उसे क्षणिक लाभ और भौतिकवादी मकड़जाल से अपने को दूर रखना होगा। लेखन सम्बंधी एक अन्य प्रश्न  के उत्तर में वे कहते हैं कि- लेखन के समय मानव मन  विभिन्न विचारधाराओं में बहता डूबता रहता है, तर्क और विश्लेषण भी चलता है, कभी कभी अपने विचार  या सिद्धान्त अनुभव की कसौटी  पर खरे नहीं उतरते,तब उनमें परिवर्तन,परिवर्धन और संशोधन की आवश्यकता होती है,लेखक को इसके लिये तैयार रहना चाहिये,उसे लकीर का फकीर नहीं होना चाहिये।

उपर्युक्त विचारों से श्री मणि  के लेखन की विशिष्टताओं में उनके  मौलिक चिन्तन  प्रक्रिया के योगदान को अनुभव किया जा सकता है। अपने साहित्यिक पत्रकारिता और लेखकीय जीवन  के लम्बे काल में  अपने किये हुए कार्यों के प्रति  एक संतुष्टि का भाव 88 वर्षीय साहित्यकार जय नाथ मणि  के चेहरे पर स्पष्ट पढ़ा  जा सकता है, इधर कुछ महीनों से खराब चल रहे स्वास्थ्य को लेकर भी उन्हें किसी के प्रति  कोई शिकायत नहीं है, मानो  निष्कामता की यह स्थिति उन्हें सहज लग रही हो। मिलने जाने पर आतिथ्य भाव से भर उठते हैं, हम देवरिया के साहित्य जगत की ओर से उन्हें हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई  देते हैं तथा उनके स्वस्थ,प्रसन्न ,सक्रिय जीवन के साथ दीर्घायुष्य की कामना करते हैं।

 

इंद्र कुमार दीक्षित

नागरी प्रचारिणी सभा

5/45 मुंसिफ कालोनी, रामनाथ देवरिया

निकट वन विभाग कार्यालय

देवरिया।

           

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