जीवन मार्ग
गोपाल जी त्रिपाठी
कर्म से योग हो,योग का कर्म हो ;
देश का हो भला,यह तेरा धर्म हो ।
कर्म से योग हो-------
सत्य का -प्रेम का,नीति का-नेम का ;
तुम करो साधना,योग का क्षेम का ।
श्रेष्ठ जीवन है पाया तू वरदान में-
तू मनुज है -तेरा ध्येय सत्कर्म हो ।।
कर्म से योग हो------
नारियों को तू ममता की मूरत समझ;
बच्चों-बूढ़ों की भी तू जरूरत समझ ।
भोग के लोभ मे तू न डूबे कभी ;
पुण्य के पंथ का ही तेरा कर्म हो ।।
कर्म से योग हो------
प्राणियों पर दया खुद पे संकट तो क्या;
हो सतत शांति सर्वत्र हो निर्भया ।
ज्ञान का दान कर हो मनुजता प्रखर;
सादगी से जियो और सद्धर्म हो ।।
कर्म से योग हो------
भूमि- अंबर-अनिल-अग्नि और नीर से;
ये बनी कंचना पाये तकदीर से ।
विश्व के परिवरण का तू रखवार बन;
ये तेरा हेतु हो, ये तेरा मर्म हो ।।
कर्म से योग हो -----------
गोपाल जी त्रिपाठी
ग्राम पोस्ट-नूनखार,देवरिया
हिंदी प्रवक्ता,सेंट
जेवियर्स स्कूल सलेमपुर
शानदार कविता आज के परिपेक्ष के लिए
जवाब देंहटाएं