बुधवार, 26 अप्रैल 2023

ताँका

 


ताँका

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

1

हवाओं संग

झूम-झूम गा रही

गेहूँ की बाली

जलकुकड़ी आई

एक बदली काली।

2

काली बदली

छा गई रात पर

चाँद बेबस

जो थे जगमगाते

अब टिमटिमाते ।

3

टिमटिमाते

देखो कितने सारे

नभ में तारे

आँचल में मुस्काते

रजनी के दुलारे ।

4

दुलारे कोई

पलती है चाहत

मिले न मिले

पर दूरी मन की

करती है आहत।

5

आहत मन

धर पाया न धीर

उमड़ी पीर

नैनों से बरसती

बनकरके नीर ।

6

नीर भरा था

टूटे जो तटबंध

रोक न पाए

मन हाथों से छूटा

सपना प्यारा टूटा  ।

7

टूटा बादल

धरा की रह गई

आस अधूरी

व्याकुल मन तू क्या

बैठी अरी मयूरी !

8

अरी मयूरी

नाचता है मयूर

पंख फैलाए

गरजे जो बादल

हो गया है पागल।

9

पागल मन

मस्ती में डूब गया

किसने छेड़ी

यह मधुर तान

सुनाया प्रेमगान ।

10

प्रेमगान से

गुंजायमान धरा

अंकुर फूटा

हरियाली छा गई

खिल उठे सुमन।

11

सुमन खिले

नयनों से नयना

जब भी मिले

बही प्रेम सरिता

हैं क्यों किसी को गिले ?

12

गिले-शिकवे

लगे मन को प्यारे

कोई तो रिश्ता

बाकी है अभी तक

बीच मेरे-तुम्हारे ।

13

तुम्हारे लिए

रख छोड़ा है नाम

निर्घृण! माँगते हो

निष्ठा का मेरी

मुझसे ही क्यों दाम ।

14

दाम चुकाया

वफाओं का हमने

मिटा दी हस्ती

उसको ही हँसाया

जिसने था रुलाया ।

 


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

वापी (गुजरात) 

7 टिप्‍पणियां:

  1. नवीन प्रयोग। बहुत सुंदर ताँका के लिए हार्दिक बधाई

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  2. सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं
  3. कितनी सुंदर तारतम्यता है। नदी का सा प्रवाह है सभी ताँका रचनाओं में। आनन्द मिला पढ़कर। बधाई आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं

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