शुक्रवार, 31 मार्च 2023

कविता

 



आखिर मैं क्या हूँ?

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

भला क्या बताऊँ कि आखिर मैं क्या हूँ’ ?

नदी हूँ, हवा हूँ, हया हूँ, अदा हूँ 

 

कभी चाँदनी तो कभी अग्निधर्मा-

किरण हूँ, अँधेरे में जलता दिया हूँ ।

 

सुमन हूँ, सुधा हूँ, सृजन-साधना मैं,

गरल हूँ मैं, कंटक, कहीं सर्वदा हूँ ।

 

कदम दर कदम मैं चली थी सँभलकर,

मगर मुश्किलों का मुकम्मल पता हूँ ।

 

ज़रा ध्यान से जो सुनोगे मुझे तुम ,

तुम्हारे ही दिल की तुम्हारी सदा हूँ ।

 

भला अपनी पहचान मैं क्या बताऊँ ,

मरज हूँ, मरीजा हूँ, खुद ही दवा हूँ 

 

समझ है तुम्हारी कहे ज्योतिक्या अब,

बहन, बेटी हूँ, संगिनी, माँ, प्रिया हूँ ।

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

वापी (गुजरात)

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