शुक्रवार, 31 मार्च 2023

विशेष

 

गोवा का लोकनृत्य ‘धालो’

अनीता सक्सेना

धालो’ नृत्य गोवा के सबसे प्रसिद्ध ग्रामीण नृत्यों में से एक है। हिंदू पौष महीने में चाँदनी रात में महिलाओं द्वारा ‘धालो’ का प्रदर्शन किया जाता है। यह नृत्य ‘कुनबी’, ‘भंडारी’, ‘नाइक’, ‘गाबित’ और ‘गौड़ी’ समुदायों द्वारा किया जाता है। मुख्य रूप से यह लोक नृत्य महिलाओं द्वारा पूरा किया जाता है जो नृत्य, नाटक और संगीत को जोड़ती है।



धालो’ नृत्य का महत्व  

सभी बुरी शक्तियों से बचाने, परिवार के सदस्यों को बढ़ाने और गाँव में शांति के लिए ईश्वरीय मध्यस्थता को प्रार्थना के लिए ‘धालो’ का प्रदर्शन किया जाता है।



धालो’ नृत्य की प्रथा

धालो’ आमतौर पर बुधवार या रविवार को शुरू होता है। उत्सव से पहले महिलाएँ अपने घर और मंदिर के खुले स्थान को रंगोली से सजाती हैं। नृत्य में भाग लेने के लिए गाँव की महिलाएँ बड़ी तादाद में आती हैं।



धालो’ नृत्य की प्रस्तुति

धालो’ का प्रदर्शन एक पवित्र खुले स्थान में होता है जिसे ‘मांड’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ सभी गाँव के लोग अनुष्ठान प्रदर्शन के भाग के रूप में गाने, नृत्य करने या संगीत के लिए इकट्ठा होते हैं। महिलाएँ नृत्य में भाग लेनेवाले कपड़ों के बारे में गाती हैं। गीत विशिष्ट हैं लेकिन कभी-कभी सरल और सहज जोड़ होते हैं। आधी रात के आसपास विभिन्न नृत्य और खेल शुरू होते हैं। नर्तक खुद को 12 की दो समानांतर पंक्तियों में व्यवस्थित करते हैं, एक दूसरे का सामना करते हैं। वे एक जनजातीय फेशन में अपने भीतर एक कड़ी बनाते हैं, एक साथ मिलकर गाते हुए पीठ के चारों ओर व्यवस्था करते हैं।

सामान्य तौर पर महिलाओं की दो पंक्तियाँ अपने जीवन और समकालीन समाज की कहानियों को गाते हुए आगे और पीछे  झूलते हुए एक दूसरे का सामना करती हैं। गीतों और नृत्यों के माध्यम से कहानियाँ सुनाई जाती हैं और जीवन और समाज की अनेक घटनाओं का वर्णन किया जाता है। यह नृत्य ‘धालो’ की पहली छः रातों में किए जाते हैं। मूल रूप से ‘धालो’  के दौरान गाए जानेवाले गीतों के विषय – श्री कृष्ण की रासलीला, रामायण तथा महाभारत के बारे में हुआ करते थे। आजकल मराठी और हिंदी गीतों को भी प्रदर्शनी की सूची में शामिल किया गया है। मूल रूप से ‘धालो’ कोंकणी भाषा में प्रदर्शित किया जाता है। समापन के दिन महिलाएँ विभिन्न तरह के कपड़े पहनती हैं।


धालो’ नृत्य संगीत

धालो’ नृत्य संगीत नृत्य के दौरान गाए जानेवाले गीत कोंकणी भाषा या मराठी भाषा में संभव हैं। गाने प्रकृति को समर्पित हैं। वे पृथ्वी या धरती माँ या जानवरों-पेड़-पौधों के बारे में बात करते हैं। इन गीतों में लोगों के प्रति स्वाभाविक प्रेम का परिचय देते हुए रोजमर्रा की जिंदगी की कहानियाँ शामिल हैं!

अनीता सक्सेना

सेंट तेरेज़ा हाई स्कूल

मांगोर-हिल

वास्को - गोवा

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