हिमकर श्याम
दौड़ती भागती ज़िंदगी रह गयी
बेकली रहनी थी बेकली रह गयी
लोग रिश्ते सभी तोड़ कर चल दिए
मेरी आँखों में बहती नदी रह गयी
चाहतों पर करूँ और क्या तबसरा
हसरतें मर गईं, तिश्नगी रह गयी
मेरी आवाज़ उस तक न पहुँची कभी
बात मेरी सुनी-अनसुनी रह गयी
चंद मिनटों में ही जल गए घर के घर
आग तो बुझ गयी, दुश्मनी रह गयी
सुब्ह होते ही सूरज कहीं छिप गया
सामने फिर वही तीरगी रह गयी
वक़्त ने ऐसे तेवर दिखाए उसे
शान-ओ-शौकत धरी की धरी रह गयी
मुल्क में ख़ूब 'हिमकर' तरक़्क़ी हुई
बेकसी, बेबसी, मुफ़लिसी रह गयी
हिमकर श्याम
राँची
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