प्रेम
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
जादू-टोना, कीमिया, जाने क्या है प्यार ।
जिसकी मृदु अनुभूति
पर, झूमे सब संसार ।।
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सब कुछ फीका प्रेम से, दर्शन, मानक, नीति ।
जीवन की संजीवनी, निश्छल मन की प्रीति ।।
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शब्दों में कब ढल सके, प्रेमामृत प्रतिमान
।
गूंगा गुड़ के स्वाद का, कैसे करे बखान ।।
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प्रेम सरीखा कुछ नहीं, होता प्रेम अनन्य ।
जिसने चाखा प्रेम-रस, उसका जीवन धन्य ।।
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पुष्पसार सा प्रेम है, महकाये मन-लोक ।
छलके,जाने सब जगत, सहज नहीं है रोक ।।
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कौन विवेचन कर सका, प्रेम शब्द अति गूढ़ ।
पर सब याचक प्रेम
के,
ज्ञानी हो या मूढ़ ।।
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जीवन भरे उमंग से, पहन प्रेम-परिधान ।
रोम रोम नाचा फिरे, मन में उतरे गान ।।
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प्रेम प्रतिष्ठित है वही, जो दे बारम्बार ।
अभिलाषा की हाट में, बस फलता व्यापार ।
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जिव्हा के मदमस्त हय, हाँको डाल लगाम ।
बढ़ो प्रेम के पंथ पर, सब कुछ हो अभिराम
।।
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बड़ा मोहिनी मंत्र है, ढाई आखर प्यार ।
जिसके मोहक पाश में, बंध जाता संसार ।।
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त्रिलोक सिंह
ठकुरेला
बंगला संख्या- 99,
रेलवे
चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड- 307026
जिला- सिरोही (
राजस्थान )
गूंगा गुड़ के स्वाद का कैसे करें बखान । वाह
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