शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

दोहे

 



प्रेम

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

 

जादू-टोना, कीमिया, जाने क्या है प्यार ।

जिसकी मृदु अनुभूति  पर, झूमे सब संसार ।।

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सब कुछ फीका प्रेम से, दर्शन, मानक, नीति ।

जीवन की संजीवनी, निश्छल मन की प्रीति ।।

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शब्दों में कब ढल सके, प्रेमामृत प्रतिमान 

गूंगा गुड़ के स्वाद का, कैसे करे बखान ।।

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प्रेम सरीखा कुछ नहीं, होता प्रेम अनन्य ।

जिसने चाखा प्रेम-रस, उसका जीवन धन्य ।।

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पुष्पसार सा प्रेम है, महकाये मन-लोक ।

छलके,जाने सब जगत, सहज नहीं है रोक ।।

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कौन विवेचन कर सका, प्रेम शब्द अति गूढ़ ।

पर सब  याचक प्रेम के, ज्ञानी हो या मूढ़ ।।

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जीवन भरे उमंग से, पहन प्रेम-परिधान ।

रोम रोम नाचा फिरे, मन में उतरे गान ।।

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प्रेम प्रतिष्ठित है वही, जो दे बारम्बार ।

अभिलाषा की हाट में, बस फलता व्यापार ।

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जिव्हा के मदमस्त हय, हाँको डाल लगाम ।

बढ़ो प्रेम के पंथ पर, सब कुछ हो अभिराम  ।।

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बड़ा मोहिनी मंत्र है, ढाई आखर  प्यार ।

जिसके मोहक पाश में, बंध जाता संसार ।।

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला

बंगला संख्या- 99,

रेलवे चिकित्सालय के सामने,

आबू रोड- 307026

जिला- सिरोही ( राजस्थान )

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