शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

कविता

 


वो सूरज है

रामानुज द्विवेदी

 

नमन उसका आकाश करता है,

तिहुँ लोक में छाए तिमिर का

नाश जो करता है।

वो सूरज है ...........।

 

उसे देखे बिना

सरोवर का कमल भी खिल नहीं सकता,

पंछी गा नहीं सकते

उजाला मिल नहीं सकता ।

जगत के अंधेरे को

नित प्रति  जो साफ करता है ,

वो सूरज है ......।

 

उसके आते ही

उपवन में कलियाँ मुस्कुराती हैं,

बिछड़ा रात का जोड़ा भी

दिन में मिल ही जाता है।

कुंज  आबाद  होते हैं 

कलरव  साथ  करता  है,

वो सूरज है .......।

 

दिशा के अंक में सोया

मयंक भी काँप जाता है,

रूप निश्तेज होता है 

भानु को भाँप जाता है ।

दिग्वधू शर्म करती  है

सितारे  लाज   खाते  हैं ,

वो सूरज है .......।

 

जिसके आते ही

रमणियों का सपना टूट जाता है,

कुमुदिनी घूँघट कर लेती है

मदन भी रूठ जाता है ।

सपना सपना ही रह जाता

मगर वह प्रेरित करता है ,

वो सूरज है ........।

 

दिन का देव दिनकर है

निशा पर शशि में रमती है ,

एक पालन करता है

एक सृजन में खिलती है 

पर दोनों का महिमामंडन

रामानुज यूँ करता है ,

वो सूरज है

नमन उसका आकाश  करता है ।

***

 


रामानुज द्विवेदी

प्राध्यापक

श्रीनाथ सं. म. वि. हाटा

कुशीनगर (उ.प्र.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...