शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

सामयिक टिप्पणी



कहीं खो न जाएँ हमारी छह ऋतुएँ!

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

यह हो क्या रहा है इस देश में? फरवरी का महीना आधा बीतते-बीतते ही फागुन में जेठ आ गया लगता है! ऋतु चक्र का यह घालमेल सामान्य नहीं हो सकता। प्रकृति कुछ संकेत दे रही लगती है!

क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव (एक्सडीआई) की रिपोर्ट की मानें (और न मानने की कोई वजह नहीं है)  तो भारत के 9 राज्यों सहित दुनिया भर के 2,600 राज्यों व प्रांतों पर जलवायु परिवर्तन का बड़ा खतरा मँडरा रहा है। यानी ये इलाके कुछ ही दशकों में व्यापक  बाढ़, जंगलों की आग, लू और सूखे जैसे विकराल अनुभव से गुजरने के लिए तैयार रहें!

दरअसल, मनुष्य समाज ने विकास की लंबी यात्रा करते हुए अपने जीवन को सुख-सुविधाओं से संपन्न करने के लिए प्रकृति के साथ तालमेल और संघर्ष का दोहरा रिश्ता कायम किया है। इस दौरान उसने अपने पर्यावरण में कई बदलाव किए हैं। मानव निर्मित पर्यावरण में हर वह चीज शामिल है, जिसे मनुष्य ने बनाया है। मकान, बिल्डिंग, एयर पोर्ट, रेलवे स्टेशन, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, अस्पताल आदि सब 'मानवनिर्मित पर्यावरण' का हिस्सा हैं। विभिन्न सभ्यताओं का इतिहास साक्षी है कि 'मानवनिर्मित पर्यावरण' और 'प्राकृतिक पर्यावरण' का आपसी संतुलन जब-जब बिगड़ता है, तब-तब प्रलय घटित होती है। शायद आधुनिक सभ्यता भी ऐसे ही असंतुलन की ओर बढ़ रही है!

एक्सडीआई की रिपोर्ट डराने और आतंकित करने के लिए नहीं, बल्कि इसी आसन्न खतरे के प्रति सावधान और तैयार रहने की चेतावनी देने के लिए है। यह रिपोर्ट चेताती है कि जिन खतरों की बात की जा रही है वे प्राकृतिक प्रकोप तो कहे जा सकते हैं, लेकिन वे सब प्रकृति की देन नहीं, बल्कि मानव की देन होंगे! इसका अर्थ यह भी है कि जलवायु परिवर्तन की इस चाल को उचित प्रबंधन से  समय रहते बदला भी जा सकता है। वरना प्रलय के मुँह में समाती सभ्यताओं के पास मनु महाराज की तरह यह पछतावा ही रह जाएगा कि –

“प्रकृति रही दुर्जेय, पराजित थे हम सब अपने मद में!” (कामायनी)।

गौरतलब है कि वर्ष 2050 को ध्यान में रख कर बनाई गई इस रिपोर्ट में मानव गतिविधियों और घरों से लेकर इमारतों तक यानी मानवनिर्मित पर्यावरण को जलवायु परिवर्तन व मौसम के चरम हालात से नुकसान के पूर्वानुमान का प्रयास किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि 2050 में 200 में से 114 जोखिम वाले प्रांत एशिया के हैं। इनमें भारत और चीन के राज्य अधिक हैं।  2050 तक जो इलाके सबसे ज्‍यादा खतरे से घिर जाएँगे. उनमें से पहले 50 में से 80 प्रतिशत इलाके चीन, अमेरिका और भारत के होंगे।  चीन के बाद भारत के सबसे ज्‍यादा यानी 9 राज्‍य इन पहले 50 में शामिल हैं। ये हैं बिहार, उत्‍तर प्रदेश, असम, राजस्‍थान, तमिलनाडु, महाराष्‍ट्र, गुजरात, पंजाब और केरल। कहा जा सकता है कि हज़ारों साल से छह ऋतुओं के क्रमिक परिवर्तन चक्र और उसके सौंदर्य का साक्षी रहा स्वर्गोपम भारत देश एक ऐसे युग की तरफ बढ़ रहा है जिसमें शायद 3 ऋतुएँ भी ढंग से पहचानी न जा सकेंगी!

बताया गया है कि भौतिक जलवायु जोखिम का यह अब तक का सबसे परिष्कृत वैश्विक विश्लेषण है, जो पहले कभी नहीं देखे गए पैमाने पर व्यापकता, गहराई और कणिक सटीकता प्रदान करता है। इसके अनुसार, अगर जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी हालात पैदा हुए तो भले ही सबसे ज्‍यादा नुकसान एशियाई क्षेत्र को होगा। लेकिन अँधेरे में प्रकाश की किरण यह है कि अगर जलवायु परिवर्तन को बदतर होने से रोका गया और जलवायु के प्रति सतत निवेश में वृद्धि हुई, तो इसका सबसे ज्‍यादा फायदा भी एशियाई देशों को ही होगा।

अब यह खुद हमारे ऊपर निर्भर है कि हमें चरम मौसमी हालात वाला कष्टकर और बदरंग जीवन चाहिए, या धीरे-धीरे रंग बदलते खुशगवार छह मौसमों का वह सुखकर और बहुरंगी नज़ारा चाहिए जिसमें बारहों मास अलग अलग पहचाने जा सकें!

 


डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद

 

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