अनचाहा गुलाब
आनन्द तिवारी
महीना अति पावन माघ का कुछ खास पैगाम लेकर आता है,
कई दिलों में मुहब्बत का अनचाहा जज़्बात जगा के जाता है।
प्यार, स्नेह, अपनापन पश्चिमी सभ्यता का संदेश लेकर आता है,
कई दिलों को जोड़, तोड़ चुपचाप खामोशी के साथ चला ये जाता है।
ख्वाहिशों के अनन्त आसमान में व्याध तारे-सा चमचमाता है,
हुआ जो सवेरा तो अंधेरे में कई दिलों को असहाय छोड़ के जाता
है।
सपने सजाए जो आँखों में कोई प्रियतम का संग भी पाता है,
कोई देख के दूजे की बाहों में उनको मन ही मन अकुलाता है।
रोज डे से शुरू हुआ त्योहार प्रेम का वेलेंटाइन-डे तक आता है,
विचारों में सोई अमिट अभिलाषा को वादों में जी के जाता है।
विशिष्ट की विशिष्टता को अनचाहा गुलाब भी मिल जाता है,
परिभाषा इसकी है क्या? खुद प्रेमी समझ न पाता है।
चाहत जिसकी खोया उसको? संग दूजे का आता है,
मर्म हृदय का संग गुलाब के अधखिला ही रह जाता है।
प्रपोज किया जो जानेमन को प्रतिकूल जवाब भी आता है,
मन का पक्षी झरना बनकर मिलकर नदियों में बह जाता है।
चॉकलेट खिलाया जो लेट समझ लो शरण नहीं फिर पाता है,
दिलरुबा को मनाने की कोशिश में ही मास निकल ये जाता है।
बाहों में भरकर प्रियतमा को प्रियतम अपना प्यार जताता है,
सारे अधूरे सपनों को पूरा करने वेलेंटाइन डे फिर आता है।
स्वीकार नहीं हमको गुलाब जो प्रतीक प्रेम बन आता है,
शूल समान चुभता है दिल में कोमलता को नहीं यह पाता है।
कैसा लगता है जब प्रेम किसी का कोई और ही ले के जाता है,
अंतर्व्यथा मनोदशा विकृत चेतना अव्यक्त ही रह जाता है।
पर क्या गलती उसकी जो अपना प्यार जताता है?
प्रतीक प्रेम का पूरे मन से पास हमारे लाता है।।
इस अनचाहे गुलाब को स्वीकार करें?
सोच के दिल घबराता है,
लगता है हमको जैसे सच्चा प्रेमी अवसर पाकर आता है।
प्रेम अदृश्य है प्रेम है पावन सबको ही हो जाता है,
कोई पाता है गुलाब कोई बिन पाए ही रह जाता है।
गुलाबों की इस श्रेणी में जलता हुआ गुलाब भी आता है,
विरह दशा का सुंदर वर्णन पंखुड़ियों से हो जाता है।
कुछ गुलाब बिखर पन्नों में दर्ज दफन हो जाता है,
कहानी प्रेम की आने वाली पीढ़ी को बतलाता है।
महीना अति पावन माघ का कुछ पैगाम लेकर आता है,
विशिष्ट की विशिष्टता को अनचाहा गुलाब भी मिल जाता है।।
प्रेम पुण्य है, प्रेम कर्म है, प्रेम
अमर जीवन गीत का उद्गाता है,
भाग्यशील है वो मानव जो जीवन में साथ अपनों का पाता है।
छोड़ो बात गुलाब की जो हम पे ही हँसता और मुस्कुराता है,
पागल है कितना इंसान सच्चा प्रेम समझ नहीं पाता है।
उम्मीदें बहुत दोनो पक्षों की पर एक ही पक्ष निभाता है,
धीरे धीरे बोझ तले ये नश्वर क्षणिक प्रेम मर जाता है
अनंत प्रेम की अमिट कथाएँ और पात्र अमर रह जाता है,
गुल से बढ़े गुलमोहर बने और अंत में अनचाहा गुलाब ही रह जाता
है।
"जिसे चाहा वो मिला नहीं,
जो मिला वो जँचा नहीं।
जो अपने थे हकीकत न हुए,
जो हुए वो गलत नहीं।
जिससे उम्मीद थी उसने ठुकराया,
जिसने अपनाया उससे कोई उम्मीद नहीं।
और मिला ये अनचाहा गुलाब........"
आनन्द तिवारी
शोध छात्र,
हिंदी विभाग
म. स. विश्वविद्यालय
वड़ोदरा (गुजरात)
अतिसुंदर आनंद भाई
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना 😍
जवाब देंहटाएंयथार्थ को निरूपित करती श्रेष्ठ कविता🙏
जवाब देंहटाएं"मर्म हृदय का संग गुलाब के अधखिला ही रह जाता है" आनंद भाई आपकी लेखन शैली मनोगत भाव को व्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ है।।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी ❤️
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा ❣️
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर👌👌👌
जवाब देंहटाएं🙌🙌🙌🙌
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या आनन्द तिवारी जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता लिखी आपने है।
वाह, गजब रचना 🥰
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति 😌😌
जवाब देंहटाएं👌👌👌👌❤️❤️
जवाब देंहटाएंAwesome 💯
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या आनन्द तिवारी जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत 😍 कविता लिखी है।
#अति उत्तम। 🌸
शुभ संध्या आनन्द तिवारी जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत 😍 कविता लिखी है।
बहुत सुंदर वर्णन 👏
जवाब देंहटाएंअदभुत और अद्वितीय ✨❤️
जवाब देंहटाएंखूबसूरत❣️🌼
जवाब देंहटाएंGraceful 💫💫
जवाब देंहटाएंAdorable and gorgeous 😍✨❤️
जवाब देंहटाएंअरे वाह भाई अप्रतिम
जवाब देंहटाएंआनन्द जी आपकी कविता में शब्दों की जादूगरी बेमिसाल है साथ में गुलाब की विविधता और वर्तमान परिप्रेक्ष्य का बेजोड़ वर्णन काबिल ए तारीफ है।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सुदर्शन रत्नाकर
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