कुलदीप कुमार
‘आशकिरण’
फरवरी माह इन
12 महीनों में से एक अनोखा माह है। हमें विदित है कि यह तीन वर्ष 28 दिन और चौथा 29 दिन का होता है कितुं कभी संपूर्ण नहीं होता,
पर इस अपूर्णता में भी यह किसी पूर्णता से कम नहीं। इस माह
में सर्दी अपने अवसान पर होती है, क्षितिज से आ रही हल्की धूप हमारे बदन को राहत देती है।
बागों में आम बौरा जाते हैं, महुए कुंचियानें लगते हैं,
खेत सरसों के पीले-पीले पुष्पों से लहलहा रहे होते हैं और
उस पर भँवरे मधुर सुर में गाते हुए मँडराने लगते हैं,
पेड़ों में नए कोपले फूटने लगते हैं, कोयल की आवाज सुरीली हो जाती है, तितलियों का फुदकना हमारी आँखों को भाता है,
नवयौवनाएँ धानी चुनर पहन अपना सौन्दर्य बिखेरते हुए
शिवरात्रि के व्रत में शंकर भोले को धतूरा और बेल-पत्र का चढ़ावा देकर मनौतियाँ
मानती हैं। यह सब घटित होता है इसी फरवरी माह में और यह हमारी भारतीयता के अनुकूल
भी है। किंतु कुछ दशकों से हम एक और नया जामा ओढ़ने की फिराक में लगातार प्रयासरत
है और इसी माह इसके लिए तो विशेष तारीख मुकर्रर कर ली है.. प्रेम प्रदर्शन की। हम
कह सकते हैं कि फरवरी माह का दूसरा पूरा सप्ताह प्रेम प्रदर्शन को समर्पित है
जिसमें मेरे हमउम्र अपने हाथों में गुलाब लिए इस दिन को (वैलेंटाइन डे) मनाने के
लिए इसके लिए एक सप्ताह पूर्व ही तैयारी शुरू कर देते हैं। तरह-तरह के प्रलोभन
देकर अपनी प्रेमिका को मनाने के लिए। क्या हमें यह पता है कि हम वैलेंटाइन डे क्यों मना रहे हैं इसकी
शुरुआत कहाँ से हुई।
बात 269 ई.पू. की है जब रोम में वेलेटाटिनुस प्रेस्ब. म. रोमें और
टर्वी के वेलेटिनुस एवं इंटरामेनेसिस म. नामक चर्च पादरी हुआ करते थे। जिन्हें
वहाँ के धार्मिक कट्टरपंथियों ने मौत के घाट उतार दिया। दंत कथाओं में यह भी प्रचलित
है कि रोमन सम्राट क्लोडियस द्वितीय के एक कानून को मानने से इनकार करने के कारण
इन्हें सजा-ए-मौत दी गई। कानून था कि उसके राज्य का कोई सिपाही विवाह नहीं करेगा।
कितुं इसके विरुद्ध जाकर सेंट वेलेंटाइन जवान सिपाहियों की शादी करवा दिया करते थे
और जब सम्राट को पता चला तो उसने पादरी वेलेंटाइन को गिरफ्तार करवाकर कारावास में
डाल दिया और मौत की तारीख मुकर्रर की... 14 फरवरी। दंत कथाओं में यह भी कहा जाता है कि मरने से पूर्व
इन्होंने अपनी किसी प्रेमिका को पत्र लिखा जिसके अंत में लिखा 'तुम्हारा वेलेंटाइन'
इसके अलावा भी वैलेंटाइन डे से संबंधित और भी कुछ कथाएँ
प्रचलित हैं जिन्हें आप संचारयंत्र की सहायता से खोज कर पढ़ सकते हैं।
प्राचीन समय
से वर्तमान तक अनेक देश में इसे अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। कहीं पर प्रेम
तो कहीं पर शोक के रूप में। हालांकि यूरोप में कुछ दशकों पहले इससे व्यवसायियों को
अच्छा खासा मुनाफा भी होता था वैसे आज भी इसका बाजारीकरण हमें हर जगह दिखाई देता
है। भारत भी इससे अछूता नही। भारत में इसकी शुरुआत सन 2000 के आसपास से मानी जाती है। हमारे यहाँ के युवाओं में इसे
लेकर काफी उत्साह रहता है, और ये पूरा महीना उमंग से भरे रहते हैं। टाफी (चॉकलेट) से
लेकर गुलाब और लात-जूते (स्लैप और किक-डे) तक खाने की तारीख निर्धारित है हमारे
यहाँ। किंतु कुछ देशों में इसे बैन भी किया गया है।
मेरे ज़हन
में अक्सर यह सवाल कौंधता रहता है कि 'फादर डे', 'मदर डे', 'टीचर डे', वैलेंटाइन डे, फलाना डे, ढेमाका डे ...ये क्यों और किस लिए मनाए जाते हैं और इन्हें
मनाकर हम प्रदर्शित क्या करना चाहते हैं। इश्क जाहिर करने के लिए क्या 14 फरवरी के दिन से बेहतर कोई दिन नहीं है?
और इसे मनाने वालों का प्रेम कितने वर्षों तक टिका रह पाता
है। मुझे लगता है किसी को सम्मान देने के लिए या अपना प्रेम प्रदर्शित करने के लिए
कोई दिन या तारीख मुकर्रर नहीं होता बस हमारे मन में श्रद्धा और प्रेम होना चाहिए।
किसी को सम्मान देना या प्रेम करना प्रदर्शन की चीज नहीं है।
कुलदीप कुमार
‘आशकिरण’
शोध छात्र,
हिंदी विभाग
सरदार पटेल
विश्वविद्यालय
वल्लभ विद्यानगर
(गुजरात)
बसन्त यानें प्रेम प्रदर्शन का श्रेष्ठ महीना और वैलेंटाइन जी ने तो इसे महान बना दिया ।
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