अनिता मंडा
धूप नहाई
तितलियाँ,
महक़ बिखेरें फूल।
दो पल की
जादूगरी,
बन जायेगी धूल।।
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जुगनू ढूँढे भोर
में,
पतझड़ में भी फूल।
कुदरत के सब
क़ायदे,
लोग गए हैं भूल।।
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हरी धरा पर है
बिछा,
फूलों का कालीन।
गुन-गुन भँवरे
गा रहे,
रहना क्यों ग़मगीन।।
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नियति जिंदगी की
रही,
संग फूल के खार।
दामन छलनी हो
गया,
जिसने चाहा प्यार।।
***
मीठी सी मुस्कान
दे,
बातें कर लीं चंद।
तितली,
भँवरे ले उड़े, फूलों से मकरंद।।
***
फूलों के झूमर
पहन,
स्वागत करे पलाश।
कहे बसन्त
सुहावना,
हों मत कभी हताश।।
***
अनिता मंडा
दिल्ली
बहुत सुंदर 👌👌
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित दोहे
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