श्री आनंद शंकर माधवन
श्रीजा आर
श्री आनंद शंकर माधवन का जन्म केरल
राज्य के मावेलीक्करा में 10मार्च, सन्
1914 को हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा केरल में ही हुई थी। घर की परिस्थिति खराब होने
से 12 साल की उम्र में उन्हें घर छोडना पडा। उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर शिक्षा
जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। केरल छोडे माधवनजी बाद में बंगाल
में आनंद मर्णी संत लोगों के साथ जुड़े। बाद में गाँधीजी से प्रभावित होकर
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के बजाय हिन्दी सीखना शुरू किया। उन्होंने बंगाल
से अपना कर्मक्षेत्र बिहार राज्य के बाँका जिले के र्बोंसी चुन लिया ।
उन्होंने गाँधीजी के निर्देशानुसार
हिन्दी के प्रचारार्थ बिहार राज्य के भागलपुर जिले में मंदार पहाड की तलहटी में
मंदार विद्यापीठ नामक शिक्षा संस्थान शुरू किया। स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन के
सिलसिले में बहुत बार गाँधीजी मंदार में आकर माधवनजी का आतिथ्य स्वीकार किया।
दरअसल गाँधीजी और माधवनजी में बहुत अच्छा रिश्ता था। भारत स्वतंत्र होने पर
स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बने तो आनंद शंकर माधवन को
राज्यपाल बनने का ऑफर मिला था । माधवन ने शालीनता से जवाब दिया कि गुरुदेव मेरी
इच्छा है कि मैं व्यास देव के जैसा लिखूँ, राज्यपाल बनेंगे तो यह संभव नहीं है।
मंदार की भावना अधूरी रह जाएगी। अनाथ बच्चों को पढाने का सपना भी अधूरा रह जाएगा।
उन्होंने उनके मन की बात भाँप ली और माधवन जी को मंदार की ओर ही छोड दिया।
लेखनकार्य
1959 में उन्होंने लिखना शुरू किया और
70 से अधिक पुस्तकें उनकी प्रकाशित हुई। मंदार में उनके घर के अपने प्रेस में उनके
कर्मचारी दिन-रात उनकी लिखी हुई बातों की छपाई का काम करते रहे। भारत के पूर्व
राष्ट्रपति जकिर हुसैन के निर्देश पर वे गरीबों के बीच शिक्षा का प्रसार करने के
लिए देश के सुदूरवर्ती इलाकों के भ्रमण पर निकले और परिव्राजक के रूप में रहनेवाले
माधवनजी के कदम भले ही मंदार आकर ठहर गए लेकिन उनकी लेखनी की यात्रा अनवरत जारी
रही।
उनके मन की कामना को साकार करने के लिए
सबलपुर के जमींदार हरिबल्लब बाबू ने काफी जमीन दान में दे दी, वे वहीं पर कुटिया
बनाकर साहित्य रचना करने लगे और हिन्दी सिखाने के लिए स्कूल की शुरुआत की। दिल्ली
के पूर्व राज्यपाल ए.आर. किदवाई उनके सहपाठी तथा मित्र थे। वे समय-समय पर माधवनजी को
मिलने मंदार आते थे। इन सभी की मदद से मंदार में ही उन्होंने मंदार विद्यापीठ नाम
से विद्यालय खोला, जो आज (1990 से लेकर) सी.बी. एस्सी सिलबस के सर्वोच्च स्तरीय
स्कूल निकला है।
इसके अलावा बौंसी से 15 की. मी. दूर
माधवनजी द्वारा शिवधाम को बसाया गया जहाँ पर रहकर उन्होंने कई साल साहित्य साधना की।
आज वहाँ पर भी एक बड़ा शिक्षा केंद्र खुल चुका है। मंदार विद्यापीठ के संचालक उनके
परम शिष्य श्री आदित्यनाथ उनके सपने को आगे बढ़ा रहे हैं। मंदार के इस संत ने केरल
से आकर यहाँ पर एक सपना देखा था आज वह धरातल पर दिखाई दे रहा है। अपने शिष्य को
स्कूल का प्रथम आचार्य बनाकर माधवनजी पूरा समय लेखन कार्य में ही बीताते। वे कभी
स्कूल के राजकार्य में दखल न देते थे और न स्कूल की ओर आते थे।
उनकी शादी स्कूल के प्रारंभ में ही हुई
थी। स्कूल की एक शिक्षिका जो बंगाल की थी, उनसे उनकी शादी हुई थी, लेकिन कुछ साल
बाद वे शांतिनिकेतन चली गयी और माधवनजी साल में एक महीने के लिए उनसे मिलने
शांतिनिकेतन जाते थे। अलग रहने पर भी पत्नी के पूरे साल का खर्च माधवनजी ही देते
थे और वे अपनी पत्नी को बहुत चाहते थे। परंतु वे अपना कर्मस्थल छोडना नहीं चाहते
थे, इसलिए अपनी मृत्यु तक 17 फरवरी, 2007 तक वे अपने कर्म में सदा सचेत रहे,
हिन्दी साहित्य के लिए अपना योगदान देते रहे। अकेले होने से दुःखी थे, एकदम संत का
जीवन जीते थे, दिन में एक बार का खाना, एक गिलास दूध से उनका जीवन चलता था। वे सब
से प्यार की भावना रखते थे और हिन्दू-मुसलमान एकता के लिए बहुत कुछ किया है।
बचपन में केरल छोडने के बाद माधवन जी
दुबारा कभी केरल वापस नहीं लौटे। जब मेरी मुलाकात उनसे हुई तो मेरे प्रश्न पर
उन्होंने बताया था कि जब उन्होंने घर छोड़ा तो माँ का आशीर्वाद था कि हिन्दी भाषा
के लिए कुछ करें।
1932-33 को उन्होंने काशी विद्यापीठ से
अंतरिम की परीक्षा पास की। साधना का यह पथ कालांतर में काशी से चलकर दिल्ली में
डॉ. जकिर हुसैन के संरक्षण में जामिया मिलिया इस्लामिया तक पहुँच गया। वहीं से
स्नातक और स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। उन्होंने पूरे भारत की पदयात्रा की। फिर
अंत तक मंथन गिरी मंदार ने माधवनजी का मन मोह लिया और उनके द्वारा स्थापित अद्वेता
मिशन स्कूल आज विश्वविद्यालय के स्तर तक पहुँच कर हजारों छात्रों को जीवन में सही रास्ता
दिखा रहा है।
दक्षिण भारत में जहाँ पर हिन्दी का
विरोध होता था, वहाँ से एक मद्रासी आनंद शंकर माधवन ने अपना घर-बार छोडकर हिन्दी सीखी
और जामिया मिलिया इस्लामिया तक पहुँचा और हिन्दी साहित्य को अपने ढेर सारी रचनाओं
से संपन्न बनाकर हर केरलीयन को गर्व करने लायक बनाया है। हिन्दी में इन्होंने 70
से अधिक पुस्तकें लिखी है। उनमें प्रमुख है- श्री जिता अनामंत्रित मेहमान, बिखरे
हीरे, गीतातत्व आदि।
आज वे नहीं है लेकिन उनके द्वारा स्थापित
शिक्षा की अभिनव नगरी मंदार विद्यापीठ के नाम पर मौजूद है। उनकी जयंती को लेकर
मंदार विद्यापीठ के शिवधाम में हर साल सोहम का ध्वज फहराया जाता है। साथ ही कई
प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किय जाता है। हर साल शिवरात्रि के दिन मंदार
क्षेत्र में साहित्य मनीषी आनंद शंकर माधवन का जन्मोत्सव देश के जाने-माने हिन्दी
कवियों के सम्मेलन के साथ आयोजित किया जाता है। महाशिवरात्रि का आरंभ माधवनजी ने
ही शिवधाम में शुरू किया था। सोहम अंकित ध्वज शिवधाम परिसर में परंपरा के अनुसार फहराया
जाता है।
हर केरलीयन उनके नाम से गर्व कर सकते
हैं, क्योंकि बचपन में घर छोडे एक किशोर शंकर के नाम से ही बिहार राज्य के भागलपुर
के बौंसी और शिवधाम में अद्वैता मिशन सर्वोच्च विद्यालय, ट्रेनिंग स्कूल, कॉलेज,
माधवन मेमोरियल कॉलेज, इंजनियरिंग कॉलेज व मैनेजमेंट की शिक्षा आदि जाने जाते हैं।
साथ ही उनके नाम पर एक आस्पताल भी यहाँ खुला है। इस प्रकार माधवनजी को हम पूरी तरह
समाज सेवक के तौर पर देख सकते हैं - साथ ही एक अच्छे हिन्दी साहित्यकार के तौर पर
भी। एक सीधा-सादा, सच्चा ईमानदार-कर्मयोगी।
श्रीजा आर
कलयकुन्नत
तोडुपुषा ईस्ट पी ओ, इदुक्की-685585
केरल।
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