बुधवार, 18 जनवरी 2023

माहिया

 



ज्योत्स्ना शर्मा ‘प्रदीप’

 

1

सुरभित भारत- माटी

हिन्दी  कण - कण में

चाहे   पर्वत ,  घाटी ।

2

ये आन  सँभाले  है

वीर  शहीदों   की

ये  शान  सँभाले  है।

3

हिन्दी के  नारे थे

मंगल  पाण्डे   से

वो  गोरे  हारे  थे ।

4

तीनों   दीवाने  थे

फाँसी के पल  में

लब माँ के गाने थे।

5

भारत  के  सेनानी

हिन्दी मान करें

बन  जाएँ बलिदानी !

6

नवरस भर जाते हैं

सात सुरों को  ले

सुर -साधक गाते हैं ।

7

सावन रुत वासंती

होरी, कजरी  की

हिन्दी से ही छनती ।

8

परिणय की  रुत आई

मधु- रस  छलकाती

हिन्दी ज्यों  शहनाई।

 



ज्योत्स्ना शर्मा ‘प्रदीप’

देहरादून

1 टिप्पणी:

  1. देश भक्ति एवं हिन्दी का गुणगान करते बहुत माहिया। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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