ज्योत्स्ना शर्मा ‘प्रदीप’
1
सुरभित भारत- माटी
हिन्दी कण - कण में
चाहे पर्वत , घाटी ।
2
ये आन सँभाले है
वीर शहीदों की
ये शान सँभाले
है।
3
हिन्दी के नारे थे
मंगल पाण्डे से
वो गोरे हारे
थे ।
4
तीनों दीवाने थे
फाँसी के पल में
लब माँ के गाने थे।
5
भारत के सेनानी
हिन्दी मान करें
बन जाएँ बलिदानी !
6
नवरस भर जाते हैं
सात सुरों को ले
सुर -साधक गाते हैं ।
7
सावन रुत वासंती
होरी, कजरी की
हिन्दी से ही छनती ।
8
परिणय की रुत आई
मधु- रस छलकाती
हिन्दी ज्यों
शहनाई।
ज्योत्स्ना शर्मा ‘प्रदीप’
देहरादून
देश भक्ति एवं हिन्दी का गुणगान करते बहुत माहिया। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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