बुधवार, 18 जनवरी 2023

दोहे

 



शीत ऋतु

अनिता मंडा

ओस परोसी भोर ने, मोती जैसा रूप।

दिनकर देखे अनमना, खोई-खोई धूप।।

***

शीत चढ़ाए त्योरियाँ, डरकर भागी धूप।

कुहरे से धोने लगी, मटमैला सा रूप।।

***

पोष-माघ की रैन से, बढ़ता जब अनुराग।

ओढ़ दुशाला धुंध का, दिनकर जाता भाग।।

***

रचती रातें पोष की, धुंध भरे दीवान।

नैन मूंद सूरज पढ़े, भूला अपना भान।।

***

धूप घिरी अवसाद से, तापे शीत अलाव।

चाँद सितारें छिप गए, रात सहे अलगाव।।

***

चाँदी खोई रात ने, दिन ने सोना रूप।

कुहरे के आगोश में, पोष-माघ की धूप।।


 


अनिता मंडा

दिल्ली

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार शब्दों का प्रयोग

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  2. अनिता बहन ,
    प्रणाम ।
    अति भावपूर्ण रचना मन को सर्दी का अनुभूत और आह्लादित करने का अनोखा शब्द आलेख ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सर्दी के इस मौसम का सटीक वर्णन

    जवाब देंहटाएं

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