शीत ऋतु
अनिता मंडा
ओस परोसी भोर ने, मोती जैसा रूप।
दिनकर देखे अनमना, खोई-खोई धूप।।
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शीत चढ़ाए त्योरियाँ, डरकर भागी धूप।
कुहरे से धोने लगी, मटमैला सा रूप।।
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पोष-माघ की रैन से, बढ़ता जब अनुराग।
ओढ़ दुशाला धुंध का, दिनकर जाता भाग।।
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रचती रातें पोष की, धुंध भरे दीवान।
नैन मूंद सूरज पढ़े, भूला अपना भान।।
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धूप घिरी अवसाद से, तापे शीत अलाव।
चाँद सितारें छिप गए, रात सहे अलगाव।।
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चाँदी खोई रात ने, दिन ने सोना रूप।
कुहरे के आगोश में, पोष-माघ की धूप।।
अनिता मंडा
दिल्ली
बहुत ही शानदार शब्दों का प्रयोग
जवाब देंहटाएंअनिता बहन ,
जवाब देंहटाएंप्रणाम ।
अति भावपूर्ण रचना मन को सर्दी का अनुभूत और आह्लादित करने का अनोखा शब्द आलेख ।
नरपत सिंह बाड़मेर
हटाएंधन्यवाद, दादा!
हटाएंसर्दी के इस मौसम का सटीक वर्णन
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