बुधवार, 18 जनवरी 2023

आलेख

 


विश्व में हिन्दी की स्वीकार्यता और उसके प्रचार-प्रसार में रत हिन्दी सेवी संस्थाएँ

कुलदीप कुमार ‘आशकिरण’

       वर्तमान संचार-क्रांति और भूमंडलीकरण के इस बाजारवादी दौर में जब चारों ओर अपना वर्चस्व स्थापित करने की होड़ मची हुई है, जिसमें धर्म, राजनीति और अर्थव्यवस्था को वैश्विक पटल पर स्थापित कर अपनी एक अलग पहचान कायम करने के लिए प्रत्येक देश प्रयासरत हो तो उसमें भाषा कैसे पीछे रह सकती है। विदित है कि भाषा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की अभिव्यक्ति का निकष है और भाषा ही राष्ट्र संबंधी समस्त वैशिष्ट्य को स्थायित्व प्रदान करती है। प्रत्येक देश की अपनी-अपनी भाषा होती है जो उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। आज प्रत्येक देश विश्व स्तर पर अपनी भाषा को संवाद का माध्यम बनाने के लिए प्रयासरत है। जनसत्ता समाचार पत्र में छपे एक सर्वे के अनुसार विश्व में 4 भाषाओं अंग्रेजी, स्पेनिश, चीनी और हिंदी का ही भविष्य उज्ज्वल है, जिनमें हिंदी आज इन सबमें सबसे लोकप्रिय भाषा के रूप में अपना वर्चस्व कायम कर रही है। हिंदी विश्व की अन्य भाषाओं की अपेक्षा विश्व भाषा की क्षमताओं से अधिक ओतप्रोत और सम्प्रेषणीय है। वर्तमान में करोड़ों लोग स्वेच्छा से हिंदी को स्वीकार किए हुए हैं।

       हाल ही में मनाए गए विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी 2023) से हिंदी की लोकप्रियता स्पष्ट रूप में उभर कर हमारे सामने आई है।  हिंदी विश्व की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया के लगभग 26 करोड़ से अधिक लोग इसे अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाए हुए हैं। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है और हर वर्ष इसकी एक अलग थीम होती है। इस वर्ष विश्व हिंदी दिवस की थीम 'हिंदी को जनमत की भाषा बनाना बगैर उनकी मातृभाषा की महत्ता को भूले' थी।  हिंदी को वैश्विक पटल पर स्थापित करने का श्रेय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जाता है जिन्होंने 1975 में पहली बार विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया और भारत समेत दुनिया के कई देशों संयुक्त राज्य अमेरिका यूनाइटेड किंग्डम, मारीशस, त्रिनिदाद, टोबैगो आदि देशों में हिंदी सम्मेलन का आयोजन करवाया इसके बाद से लगातार विश्व हिंदी दिवस दुनिया के तमाम देशों में मनाया जाने लगा।

      हिंदी को देश और दुनिया में प्रचारित-प्रसारित करने में तमाम महापुरुषों के साथ हिंदी सेवी संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिसके कारण हिंदी आज वैश्विक पटल पर काबिज है और हम गर्व से 'हम हिंदी हैं' कह पा रहे हैं। इसके प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी, विनोबा भावे के साथ जिन हिंदी सेवी संस्थाओं की अहम भूमिका रही है उन्हें लिखित रूप में देख सकते हैं-

   काशी नागरी प्रचारिणी सभा

             'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' प्रमुख हिंदी सेवी संस्था है। जिसकी हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसकी स्थापना 10 मार्च 1893 ई. में क्वींस  कॉलेजिएट के कुछ उत्साही छात्रों द्वारा की गई। जिसमें बाबू श्यामसुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र तथा ठाकुर शिव कुमार सिंह प्रमुख थे। इसके प्रथम सभापति राधाकृष्ण दास को नियुक्त किया गया। हिंदी भाषा एवं साहित्य की उन्नति तथा प्रचार प्रसार करने वाली भारत की यह अग्रणी संस्था रही है। राजभाषा और लिपि,  भाषा पुस्तकालय, प्रकाशन, हिंदी विश्वकोश तथा हिंदी शब्द सागर व मुद्रणालय आदि नागरी प्रचारिणी सभा के प्रमुख विभाग हैं।साथ ही हस्तलिखित ग्रंथों की खोज करना इस सभा का प्रमुख उद्देश्य है। इसको आगे बढ़ाने में मदन मोहन मालवीय से लेकर श्रीधर पाठक जैसे तमाम साहित्यकार भी जुड़ते रहे। हिंदी के प्रचार प्रसार में इस संस्था की अहम भूमिका है।

  हिंदी साहित्य सम्मेलन

          हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रमुख हिंदी सेवी संस्थाओं में से एक है। यह हिंदी आंदोलन और इसके प्रचार-प्रसार में भाग लेने वाली प्रमुख साहित्यिक संस्था है। इसकी स्थापना मदन मोहन मालवीय द्वारा 1910ई. में की गई। अखिल भारतीय स्तर पर तात्कालिक हिंदी समस्याओं पर विचार करने के लिए देशभर में हिंदी साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों के सहयोग से मालवीय जी ने नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसे प्रथम हिंदी सम्मेलन भी कहा जाता है जिसके तहत इस संस्था की नींव पड़ी। दूसरा साहित्य सम्मेलन 1911 ईस्वी में गोविंद नारायण के सभापतित्व में प्रयाग में हुआ जिसके प्रधानाध्यक्ष पुरुषोत्तम दास टंडन को नियुक्त किया गया और इस संस्था को स्थाई रूप से इलाहाबाद में ही स्थापित कर दिया गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन को 1962 में राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया गया। यह साहित्य सम्मेलन देवनागरी के प्रचार प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। छापाखाना, संग्रहालय, पुस्तकालय, प्रशासनिक भवन इसके प्रमुख विभाग हैं। वर्तमान में हिंदी को वैश्विक पटल पर प्रसारित करने में यह अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।

   गुजरात विद्यापीठ

               महात्मा गांधी द्वारा स्थापित संस्था गुजरात विद्यापीठ हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली महत्वपूर्ण हिंदी सेवी संस्था है। यह संस्था गुजरात के अहमदाबाद नगर में स्थित है। इसकी स्थापना 18 अक्टूबर, 1920 को इस उद्देश्य की गई कि भारतीय युवकों को अंग्रेजी की दासता से मुक्त कराया जा सके। गांधी जी आजीवन इसके कुलाधिपति रहे तथा ए. टी. गिडवानी इसके प्रथम कुलपति रहे। साथ ही वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, मोरार जी देसाई आदि इसके कुलपति पद को सुशोभित किया। 1963 को भारत सरकार ने इसे मानद विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया। यह हिंदी सेवी संस्था शिक्षा और साहित्य के साथ शिल्प और उद्योग जगत में भी वैश्विक स्तर पर हिंदी को प्रसारित कर रही है। इस संस्था के द्वारा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया जा रहा है।

    हिंदुस्तानी एकेडमी

             हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार में हिंदुस्तानी एकेडमी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह एक प्रतिष्ठित हिंदी सेवी संस्था है जिसकी स्थापना 1927 में हिंदी तथा उनकी सहयोगी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए की गई। राष्ट्रभाषा को प्रमुख भाषाओं के समकक्ष बैठाना और उनकी सर्वांगीण उन्नति ही एकेडमी का संकल्प है। इसका आदर्शवाद 'विंदेम देवतां वाचमं' भवभूति के उत्तररामचरितम् से लिया गया है। हिंदुस्तानी अकादमी का उद्देश्य राजभाषा हिंदी, उसके साहित्य तथा अन्य रूपों एवं शैलियों का परीक्षण, संवर्धन और विकास करना है जिससे हिंदी समृद्ध हो सके और यह लोकप्रिय भाषा के रूप में दर्जा प्राप्त कर सके।

   राष्ट्रभाषा प्रचार समिति

             राष्ट्रभाषा प्रचार समिति हिंदी के प्रचार प्रसार और हिंदी को लोकप्रिय बनाने वाली महत्वपूर्ण हिंदी सेवी संस्था है। यह महाराष्ट्र के वर्धा जिले में स्थापित है। इसकी स्थापना 1936 के नागपुर में हुए 25वें हिंदी साहित्य सम्मेलन के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सभापतित्व में ‘हिंदी प्रचार समिति’ के रूप में हुई।  27वें हिंदी साहित्य सम्मेलन में काका कालेलकर के सुझाव पर ‘हिंदी प्रचार समिति’ का नाम बदलकर ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ कर दिया गया और 'एक ह्रदय हो भारत जननी' मूल मंत्र के साथ भारत के अलावा विदेशों में भी हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाने लगा। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का लक्ष्य विश्व भर में हिंदी का प्रचार- प्रसार हो इसके साथ हिंदी को लोकप्रिय बनाना है। इसका कार्यक्षेत्र गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, नागालैंड, मिजोरम से लेकर दक्षिण अफ्रीका, पूर्वी अफ्रीका, अमेरिका, सुरीनाम, अरब, इटली, यूके, थाईलैंड तथा जावा और श्रीलंका तक विस्तारित है। इसके माध्यम से ही विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन भी किया जाता है। वर्तमान में यह संस्था हिंदी को प्रचारित-प्रसारित करने के साथ हिंदी को लोकप्रिय बनाने वाली सबसे महत्वपूर्ण हिंदी सेवी संस्था है।

    केंद्रीय हिंदी निदेशालय

             हिंदी को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने तथा जन-जन से जोड़ने व हिंदी को वैश्विक धरातल पर स्थापित करने में जिस हिंदी सेवी संस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है वह केंद्रीय हिंदी निदेशालय है। केंद्रीय हिंदी निदेशालय एक महत्वपूर्ण हिंदी सेवी संस्था है। इसकी स्थापना 'अहं राष्ट्री संगमनी वसुनाम' सूत्र वाक्य के साथ 1 मार्च 1960 को शिक्षा मंत्रालय के अधीन हुई। वर्तमान में यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन है। जिसके अंतर्गत तमाम कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदी का विस्तार एवं प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। यह संस्था संविधान के भाग 17 अनुच्छेद 351 में किए गए उपबंध के अनुसार हिंदी के प्रचार-प्रसार में निरंतर प्रयासरत है। चेन्नई, हैदराबाद, गुवाहाटी और कोलकाता में स्थित इसके चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जिनके द्वारा हिंदी को देश तथा विदेश में लोकप्रिय भाषा के रूप में स्थापित किया जा रहा है।

 अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय

        1996 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम के तहत महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने 'महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय' के नाम से इस संस्था की स्थापना की। महाराष्ट्र के वर्धा जिले में स्थापित यह एक महत्वपूर्ण हिंदी सेवी संस्था है जिसमें देश-विदेश के तमाम विद्यार्थी और शोधार्थी हिंदी माध्यम से पढ़ाई कर रहे हैं। यह विश्व का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जो अपने सभी पाठ्यक्रमों को हिंदी माध्यम से संचालित कर रहा है। वर्तमान में भारत में इसके 3 केंद्र वर्धा, कोलकाता और इलाहाबाद में स्थापित है। यह विश्वविद्यालय हिंदी के प्रचार-प्रसार में निरंतर रत है। हिंदी भाषा एवं साहित्य के संवर्धन के साथ देश विदेश में सुसंगत सूचना के विकास और प्रसारण में इस विश्वविद्यालय की अहम भूमिका रही है साथ ही हिंदी की बेहतरीन रचनाओं को विश्व की अन्य समृद्ध भाषाओं में अनूदित करा कर हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी भाषा और साहित्य को लोकप्रिय बनाने हेतु यह संस्था निरंतर प्रयासरत है।

                इन हिंदी सेवी संस्थाओं के अलावा भी भारत में अन्य कई हिंदी सेवी संस्थाएँ हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रसारित करने में संलग्न है। इनमें से प्रमुखतः दक्षिण भारत प्रचार समिति, मद्रास, असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, गोहाटी, केरल हिंदी प्रचार सभा, तिरुवनंतपुरम, मैसूर हिंदी प्रचार परिषद, बंगलौर, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, तथा साहित्य अकादमी, नई दिल्ली प्रमुख हैं। इसके अलावा विदेशों में भी तमाम हिंदी सेवी संस्थाएँ हिंदी को लोकप्रिय बनाने में प्रयासरत हैं। इनमें से अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति, वर्जिनिया, मॉरिशस हिंदी संस्थान, मॉरिशस, मोकामा अंचल तुलसी साहित्य परिषद, मोकामा, हिंदी सोसाइटी, सिंगापुर, हिंदी परिषद, नीदरलैंड इत्यादि प्रमुख रूप से हिंदी प्रचार-प्रसार में रत हिंदी सेवी संस्थाएँ हैं। अंततः  कह सकतें हैं वर्तमान समय मे हिंदी वैश्विक जगत में भाषा और साहित्य की दृष्टि से सर्वोत्तम भाषा है जिसे इस स्तर तक पहुँचाने में हिंदी सेवी संस्थाओं की महती भूमिका रही है।

 



कुलदीप कुमार ‘आशकिरण’

पीएच.डी. शोधछात्र

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय

वल्लभ विद्यानगर

 

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