रमेश कुमार सोनी
इश्क की राह में
फूल उड़ चले थे
अपनी ड्योढ़ी लाँघ कर
जाने कहाँ
पीले पत्तों के पीछे-पीछे
किसी मजनू की तरह।
दीवारों ने आवाज़ दी
थोड़ा पुचकारा
प्यार की दो मीठी बातें बोली
थम गए इश्क की राह में
सुस्ताने उस झड़े पत्तों की चाह में
कहीं ये रास्ता भटक ना जाएँ।
वैसे भी फूलों को राह पर
बिछना और न्यौछावर हो जाना
सदा से ही भाया है,
ये फूल ना हों तो?
ये सोचकर जंगल सहम जाता है
और लोग हैं कि भ्रूण हत्या भी
बड़ी बेबाकी से कर जाते हैं
दीवारों पर फूलों की तस्वीर
कुछ कह रही हैं।
…..
रमेश कुमार सोनी
रायपुर
बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीय भाईसाहब!
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