क्षणिकाएँ
प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’
1.
कुछ न बोलूँगी मैं
तू ही पढ़ ले पिया,
इन नैनों की भाषा,
रसीली बोलियाँ!
2.
दिमाग और दिल में
अनबन चल रही है...
इक कहता है, ‘भूल जा’
और दूजा, ‘कभी नहीं!’
3.
तासीर-ए-वफ़ा
इसमें ढूँढों नहीं,
ये शोहरत है भाई
किसी की नहीं!
4.
अश्क गम के, न जाने
कितने ही पिए,
खुशी के न रुके
वो, छलक ही गए!
5.
चाहे दिल में हो दर्द
पर, लबों पे हँसी है,
हमें अश्क पीने की
आदत पड़ी है!
6.
तमाम उम्र संग चले
हाथ कुछ न लगा,
तेरा साथ, न जाने
क्यों, हमको न फ़बा!
7.
यूँ तो कहानी
ये मेरी ही है,
क़िरदार पर
तुमसे भी मिलेंगे,
दो घड़ी चैन से
साथ बैठो अगर,
तुम्हारे ही किस्से,
सुनाते दिखेंगे!
8.
इन मंज़िलों की मर्ज़ी
समझ में न आए,
मैं जितना बढ़ूँ,
ये सरकती ही जाएँ!
9.
नैनों में मेरे
अब समाते नहीं,
कर दिए ख़्वाब सारे
तुम्हारे हवाले!
10.
वो दिन,
जो तेरे खयाल से
शुरू होता है,
हो कितना भी सर्द
गरमाईश भरा होता है!
11.
हज़ार नेहमते मिलीं,
इक पल को तो ठहर,
सजदे में सिर झुका
तू शुक्रिया तो कर....!
प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’
कैनेडा
शब्द सृष्टि की समस्त टीम को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाओं को पत्रिका में स्थान देने के लिए पूर्वा जी का हार्दिक आभार!!
बहुत सुन्दर प्रीति जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएँ। बधाई प्रीति जी
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