शनिवार, 31 दिसंबर 2022

कविता

 



हे पिता !

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

हे पिता ! आप साकार देव, बरसाते रहे नेह धारा ।

 

कर सृजन किया पालन पोषण

पग पग पर मेरे दुख टारे,

हे ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव हे,

मेंटे जीवन के अँधियारे,

जिसने निर्देशित किया मार्ग हे पिता ! आप वह ध्रुव तारा ।

 

बल, बुद्धि, ज्ञान, श्रम, कौशल से

सम्पदा आपने की अर्जित,

अपने सपनों को भूल, भूल

सब न्यौछावर की मेरे हित,

जितना भी वैभव खड़ा किया सब कुछ मेरे ऊपर वारा ।

 

संभव ही नहीं कि गिन पाऊँ

हे पिता ! अमित उपकारों को,

बस कृपा आपकी रही सदा

सह पाया मैं भव- भारों को,

हे पिता ! आपसे क्या तुलना हो अगर तुला पर जग सारा ।



 

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

आबूरोड (राजस्थान)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सितंबर 2025, अंक 63

  शब्द-सृष्टि सितंबर 2025 , अंक 63   विचार स्तवक आलेख – विश्व स्तर पर शक्ति की भाषा बनती हिंदी – डॉ. ऋषभदेव शर्मा कविता – चाय की चुस्की म...