शनिवार, 26 नवंबर 2022

ग़ज़ल / दोहे

 



डॉ. ऋषभदेव शर्मा

ग़ज़ल

डाकिया

 

आने को रोज़ गली में आता है डाकिया

मेरे लिए न चिट्ठियाँ लाता है डाकिया

 

हर बार अपना मन मुझे मसोसना पड़ा

इनकार में बस हाथ हिलाता है डाकिया

 

कक्षा की कापियों में प्रेम पत्र जब लिखे

वे दिन दुबारा याद दिलाता है डाकिया

 

मेघो! सुनाओ यक्षिणी का हाल अब तुम्हीं

रोता तुम्हारा यक्षरुलाता है डाकिया

 

लटका के इंतजार के सलीब पर मुझे

मुस्का के कील ठोंकता जाता है डाकिया

 

इसका है कौन?कौन इसे खत लिखे भला

पागल है ऋषभदेवबताता है डाकिया


दोहे

सड़क, दर्प से दौड़ती, जगी कार के साथ।

गृहहीनों को गोद ले, सोया है फुटपाथ।।

 *

सूर्य पखेरू मर चुका, हुई तिमिर की जीत।

हर चिड़िया अब गा रही, बस दरबारी गीत।।

 *

लगा जोड़ने जब कभी, मैं हार्दिक संबंध।

हस्ताक्षर को आ गए, रोटी के अनुबंध।।

नफरत की आरी रही,  श्रद्धाओं को चीर।

न्याय नपुंसक हो गया, चीखा एक फकीर।।

सूखी कच्ची आमियाँ, लगी बौर में आग।

अमराई को डस रहे, कुछ ज़हरीले नाग।।

 *

टोपी वाले देवता, हैं कितने उस्ताद!

नारों को बतला रहे, अनुपम अनहद नाद।।

 *

लोकतंत्र की लाज को, कीचक रहे उछाल।

फिर भी पांडव का लहू,  लेता नहीं उबाल।।



 



डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद

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