डॉ.
पूर्वा शर्मा
रग-रग
में जो रची बसी हो / जिससे ही पहचान बनी हो।
मेरे
दिल की धड़कन में वो / भावों की आवाज़ बनी वो।
साँसें
गाती हैं बस यही लय / पूरा जीवन है हिन्दीमय।
कैसे
एक दिन दे दूँ मैं बधाई / यह बात मुझे तो रास न आई।
प्रतिदिन
मनाती हूँ यह दिवस / मेरा तो हर दिन ‘हिन्दी दिवस’।।
वैसे
तो भाषा और माता का कोई दिन हो ही नहीं सकता क्योंकि यह तो प्रतिपल हमारे अस्तित्व-अस्मिता
का अनिवार्य अंग है। लगभग छह-सात दशक से चौदह सितम्बर ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया
जाता है। इस बात से तो हम परिचित ही है कि चौदह सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा
में हिन्दी राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ इसके चलते हम भारतवासी प्रतिवर्ष इस दिन
को हिन्दी दिवस के रूप में मानते हैं।
हिन्दी
दिवस मनाने का मतलब क्या है? इस दिवस की सार्थकता, महत्ता किसमें निहित है? मेरे
विचार से यह हिन्दी के प्रति अपने दायित्व को याद करने का दिवस है। हिन्दी और इससे
भी कहीं आगे भाषा के ऋण को स्वीकार करने का दिवस है। हिन्दी को लेकर चिंतन-मनन-चर्चा
का दिवस है। हिन्दी की दशा और दिशा को बताने का दिवस है। इन तमाम कही-सुनी बातों
को अपनाने, व्यवहार में लाने, पूरे वर्ष इसे साथ लेकर चलने के दृढ़ संकल्प का दिवस
है। क्या हम हिन्दी दिवस मना कर मात्र परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं ? यदि यह एक कर्मकांड बनकर रह जाए तो सही अर्थों
में हम यह दिवस नहीं मना रहे, यह तो केलेंडर की एक तिथि को महज याद करने जैसा
होगा। इस तरह से तो हिन्दी उस अतिथि की तरह बन जाएगी जो वर्ष में एक बार आता है।
आज हमें अत्यधिक भावुकता के प्रवाह में बहने की बजाय यथार्थ एवं बौद्धिक दृष्टि से
हिन्दी की स्थिति पर विचार करना चाहिए। इसकी सुखद-दुखद स्थिति से जन-जन को परिचित कराना
चाहिए। हिन्दी के विकास में, उसे राष्ट्रीय गौरव-गरिमा दिलाने में अपना योगदान देना
ही सही अर्थों में हिन्दी दिवस मनाना है।
प्रयोग-व्यवहार
की दृष्टि से देखा जाए तो हिन्दी सर्वाधिक विकसित भाषा है। हिन्दी अपने भाषागत
वैशिष्ट्य, सरलता-सहजता, भाषिक सौन्दर्य, कलात्मकता, उपयोगिता, शब्द भंडार आदि की
दृष्टि से अत्यधिक संपन्न भाषा है।
सर्वविदित
है कि हिन्दी दिवस का सन्दर्भ राजभाषा रूप से जुड़ा है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग
क्षेत्र की दृष्टि से हिन्दी के अनेक रूप हैं – राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा,
संचार भाषा, साहित्यिक भाषा, माध्यम भाषा, बाज़ार-व्यवसाय की भाषा, बोलचाल की भाषा,
मातृभाषा आदि।
इसमें
कोई संदेह नहीं कि भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा रूप हिन्दी के ही विकसित हैं।
हिन्दी के तमाम रूपों में राजभाषा को छोड़कर सभी रूपों की स्थिति बेहतर है। चिंता का
विषय राजभाषा हिन्दी को लेकर है, जो हिन्दी दिवस से संबद्ध है। कार्यालयी हिन्दी
का राजकाज में, प्रशासन में जितना और जिस तरह से प्रयोग होना चाहिए वह नहीं हो
रहा। ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी में सरकारी काम नहीं हो रहा, लेकिन जिस गति से, जिस
परिमाण में होना चाहिए उतना नहीं हो रहा। राजभाषा के कार्यान्वयन में बाधा-रूकावटें
आ रही है। पर हम यह न भूले कि राजभाषा के साथ संवैधानिक प्रावधान जुड़े हैं, इसके
साथ राजनीति जुड़ गई है। कुछ राज्यों ने राजभाषा हिन्दी का विरोध किया, जिसके चलते उन्नीस
सौ सडसठ(1967) में राजभाषा अधिनियम बनाए गए जिसमें कहा गया है कि जब तक देश का एक
भी राज्य, एक भी व्यक्ति स्वेच्छा से हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं
करता तब तक अंग्रेजी में काम चलता रहेगा – यह मामला संवैधानिक है इसलिए इसके
प्रयोग में दिक्कतें आ रही है – यह स्थिति आज भी बनी हुई है।
संपर्क
भाषा के रूप में हिन्दी राष्ट्र की एकता-अखंडिता की भाषा है। गाँधी जी का कथन – ‘राष्ट्र भाषा के बिना
राष्ट्र गूँगा है’ यहाँ पर हम संपर्क भाषा के संदर्भ में यह जोड़ना चाहेंगे कि
संपर्क भाषा के बिना राष्ट्र बँटा-बँटा-सा है। हिन्दी सम्पर्क भाषा के रूप में जन-जन
को जोड़ने का कार्य कर रही है। संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी महत्त्व को रेखांकित
करते हुए गाँधी जी ने कहा था – “प्रांतीय भाषा या भाषाओं के बदले में नहीं बल्कि
उनके अलावा एक प्रांत से दूसरे प्रांत का संबंध जोड़ने के लिए सर्वमान्य भाषा की
आवश्यकता है और ऐसी भाषा तो एक मात्र हिन्दी या हिन्दुस्तानी ही हो सकती हैं।”
भारत
और भारतीय के गौरव-गरिमा व अस्मिता की भाषा राष्ट्र भाषा हिन्दी है। आज भारतीय
समाज-संस्कृति की पहचान कराती है हिन्दी। पूरा संचार उद्योग हिन्दी के सहारे चलता
है। मीडिया ने हिन्दी को आज जितना विकसित किया उससे कहीं ज्यादा संचार भाषा हिन्दी
ने आज मीडिया की दुनिया को संपन्न एवं विकसित किया है। संचार भाषा हिन्दी की
संपन्नता को देखा जा सकता है। संचार
माध्यमों की हिन्दी में पर्याप्त वैविध्य देखने को मिलता है –
·
परिनिष्ठित भाषा –संस्कृत
की तत्सम प्रधान शब्दवाली
·
बोलचाल की हिन्दी, हिन्दी
भाषा में प्रादेशिक स्पर्श
·
अंग्रेजी-अरबी-फारसी
मिश्रित हिन्दी भाषा
·
कलात्मक-सृजनात्मक-आनंदमूलक-साहित्यिक
हिन्दी
(धारावाहिकों में / रियलिटी शो में)
विज्ञापनों
में ऐसे अनेक विज्ञापन है जिनकी भाषा में लालित्य, सृजनात्मकता, कवितापन जिसके
चलते हम विज्ञापन किस प्रोडक्ट का है भूल जाते हैं। उसकी भाषा की मिठास, शैली,
लालित्य कभी नहीं भूलते। हिन्दी के इन्हीं गुणों के कारण कई विज्ञापनों को बहुत
लोकप्रियता मिली है। उदाहरण के लिए – वाशिंग पावडर निरमा, जब रोशनी करता बजाज , ज़रा सी हँसी दुलार ज़रा सा
– अमूल, जब घर की रौनक बढ़ानी हो नेरोलैक आदि।
हिन्दी
फिल्मों की लोकप्रियता से कौन अनजान है – अहिन्दी भाषी भी हिन्दी फ़िल्में बड़े चाव
से देखते हैं। खेलकूद/ हिन्दी न्यूज़ चैनल आदि को भी बहुत पसंद किया जाता है।
अधिकांश
भारतीयों की मूल जुबाँ आज हिन्दी है, अहिन्दी भाषी समाज भी बड़ी सरलता से हिन्दी
में बातचीत करता है। उदहारण के तौर पर हम भारत के किसी पर्यटन स्थल पर जाए तो वहाँ
बोलचाल की हिन्दी का प्रयोग हमें दिखाई देता है। शिक्षित वर्ग ही नहीं, अर्ध-शिक्षित, अशिक्षित अथवा श्रमिक वर्ग भी हिन्दी
में बात करते देश के हर कोने में दिखते हैं। हिन्दी में साहित्य सृजन की परम्परा बड़ी
दीर्ध और संपन्न रही है। आज भारत एवं भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों के हाथों प्रचुर
मात्रा में हिन्दी साहित्य सृजन हो रहा है
– हिन्दी का भौगोलिक विस्तार-सामाजिक प्रयोग व्यवहार क्षेत्र आज हिन्दी भाषी
क्षेत्र तक सीमित नहीं, भारत तक सीमित नहीं बल्कि भारत के बहार अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफोर्म
तक पहुँच गया है। जापान, मलेशिया, दुबई, कुवैत, कतर, सिंगापुर आदि ऐशियन देशों में
यदि आप घूमने जाए तो हम देख सकते हैं कि कई भारतीय रेस्तरां हैं जो हिन्दी में बातचीत
के जरिए अपने मेहमानों से संवाद करते नज़र आते हैं। यह हिन्दी का विकास है, प्रयोग
का विस्तार है जो बेहद सुखद है।
हिन्दी
में रोजगार के अवसर / संभावनाएँ कम नहीं है। हिन्दी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने
वाले को शिक्षक अथवा कॉलेज में प्रोफ़ेसर बनना ही कैरियर के रूप में दिखाई देता है।
यह बात सही है कि अध्यापन के क्षेत्र में यह सीमित है लेकिन अध्यापन के अतिरिक्त
और भी विकल्प है। आज विश्वविद्यालयों में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर प्रयोजन
मूलक हिन्दी (फंक्शनल हिन्दी) का पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है। इससे हिन्दी को एक नई
दिशा प्राप्त हुई है और अध्ययन कर्ताओं के लिए रोजगार के द्वार खुले हैं। जब हम
प्रयोजन मूलक हिन्दी कहते हैं तो उसका आशय हिन्दी के उस रूप से है जो बोलचाल की
भाषा और साहित्य के आनंदमूलक हिन्दी भाषा से अलग है। यह वह हिन्दी है जो व्यक्ति
को रोजगार दिलाने में सहायक हो। जिसका
संबंध रोजी-रोटी से जुड़ा है।
रोजगारपरक
हिन्दी रूप की स्थिति सुखद है इसमें और विकास की संभावनाएँ है। अब हिन्दी केवल
बोलचाल की भाषा नहीं अपितु वह ज्ञान-विज्ञान और रोजगार की भाषा बन गई है। आज
हिन्दी को लेकर सरकारी कार्यालय, निगम, दूतावास, विज्ञान, मीडिया, न्यायालय, बैंक,
बीमा कंपनियों आदि क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएँ है। आज हिन्दी में अनुवादक,
उद्घोषक, हिन्दी अधिकारी, प्रबंधक, संवाददाता, साक्षात्कारकर्ता आदि की आवश्यकता
है। मीडिया, साहित्य सृजन, पत्रकारिता, हिन्दी अधिकारी, बैंक आदि कई क्षेत्र है। उदाहरण
के लिए– अनुवाद, विज्ञापन (स्लोगन / जिंगल/ कविता), मीडिया में संवाददाता / न्यूज़
रीडर /पटकथा लेखन, पत्रकारिता / साहित्य सृजन / संवाद लेखन / यू ट्यूब आदि।
हिन्दी
बनाम अंग्रेजी को लेकर दोनों की तुलना करना कितना उचित है? – अंग्रेजी की तुलना
में हिन्दी को बेहतर बताना, इस तरह की बातों को लेकर बहस करना व्यर्थ है। दरअसल
हमारे व्यक्तिगत-व्यवसायिक विकास के लिए प्रगति के पथ पर अग्रसर होने के लिए आज
तीन भाषाओं को जानना-मानना और इनका सम्मान करना आवश्यक है। मातृभाषा, राष्ट्रभाषा,
अंतर्राष्ट्रीय भाषा। अंग्रेजी रोजगार के मामले में आज बड़ी भाषा है इसे भी स्वीकार
करें। हिन्दी बेशक महान भाषा है, महत्त्वपूर्ण भाषा है लेकिन आवश्यकताओं की पूर्ति
के लिए अंग्रेजी भी जरूरी है।
हिन्दी
के विविध रूपों को देखते हुए चिंता का विषय यह है कि हिन्दी की शुद्धता, उसके मानक
रूप को भी कायम रखना है। हिन्दी की शुद्धता से तात्पर्य क्लिष्ट हिन्दी से नहीं
है। बेशक आप सरल हिन्दी का प्रयोग करें लेकिन भाषा की शुद्धता का ध्यान रखना भी
जरूरी है। इसका यह अर्थ नहीं है कि आप हर चीज़, हर वस्तु का हिन्दी पर्याय खोजें।
जैसे कंप्यूटर को संगणक कहा जाता है लेकिन प्रचलन में इसे कंप्यूटर ही कहा जाता हैं।
जैसे आप चाय के लिए क्या कहेंगे कि – दुग्ध शर्करा युक्त उष्ण पेय प्रदान किया जाए
.......ऐसा तो नहीं कह सकते ... आप सीधे-सीधे कहिए कि – चाय दीजिए । इसी प्रकार मास्क
(मुख पट्टिका) अथवा टिकट (भाड़ा पत्र) आदि प्रचलित शब्दों के हिन्दी पर्याय न खोजना
ही बेहतर होगा।
हिन्दी के अध्यापक होने के नाते, हिन्दी के साहित्यकार होने के नाते, हिन्दी के छात्र होने के नाते, हिन्दी प्रचार-प्रसार से जुड़े हुए होने नाते और इन सबके ऊपर एक भारतीय होने के नाते हम हिन्दी के लिए, अपनी भारती के लिए - इसके विकास के लिए क्या कर सकते हैं? हिन्दी के प्रति हमारा दायित्व क्या हो सकता है इस सवाल के जवाब में हम कह सकते हैं –
1.
किसी भाषा का विकास
– भाषा के किस भी रूप का विकास – प्रचार-प्रसार इसके प्रयोग पर निर्भर है। प्रयोग
की अधिकता एवं व्यापकता भाषा या भाषा के किसी रूप को ज्यादा विकसित करती है।
हिन्दी के और ज्यादा विकास-संपन्नता -समृद्धि की यह पहली शर्त है हिन्दी का प्रयोग
करे।
2.
हिन्दी के महत्त्व
को अच्छी तरह से जाने और अधिकांश लोगों को इस भाषा के महत्त्व से अवगत कराएँ –
इसकी उपयोगिता से परिचित कराए। यह कार्य शिक्षा से जुड़े लोग तो कर ही रहे हैं। हमें ये जानना चाहिए कि हिन्दी हमारी जरूरत है
–हमारे बहुभाषी देश में क्षेत्रीयता से उबरने के लिए – अपनी विविध आवश्यताओं के
लिए हिन्दी जरूरी है।
शिक्षा-व्यवसाय-धार्मिक
यात्रा इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए।
हिन्दी
हमारी जरूरत है। हमारी संस्कृति की विशेषता विविधता में एकता है।
हिन्दी सम्प्रेषण का सशक्त
माध्यम है। जिस भाषा में सम्प्रेषण की क्षमता होती है वही भाषा जीवंत होती है।
3.
हिन्दी के प्रति
अधिक से अधिक अनुराग पैदा करें जब तक भाषा के प्रति प्रेम पैदा नहीं होगा तब तक
भाषा विकास अधूरा रह जाएगा।
4.
हिन्दी को लेकर
आशावादी बने रहे। निराश न हो।
भारत में ही नहीं अपितु भारत के बाहर भी आजकल जिस प्रकार हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है उसको देखते हुए आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि हिन्दी उत्सव-महोत्सव-त्योहार का यह रंग वर्षभर फीका नहीं पड़ेगा। हिन्दी के प्रति प्रेम-अनुराग-अहोभाव में बढ़त हो यही कामना।
वर्षभर
फीका न पड़े, हिन्दी उत्सव का यह रंग
हिन्दी
यूँ ही समृद्ध होती रहे, प्रेम-अनुराग के संग।
डॉ.
पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
विस्तृत,बेहतरीन जानकारी देता बहुत अच्छा आलेख। बधाई पूर्वा जी। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख । सही कहा 365 दिन हिंदी दिवस होना चाहिये, सिर्फ एक दिन नहीं ।
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