मंगलवार, 27 सितंबर 2022

शब्द संज्ञान



 डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

स्थायी, स्थिति, स्पृहा जैसे शब्दों का उच्चारण

क्या कारण है कि स्थायी, स्थिति, स्पृहा, स्मरण जैसे शब्दों के उच्चारण के समय आरंभ में अ या इ स्वर का उच्चारण होता है।

इन शब्दों को लोग सामान्यतः इस्थायी/अस्थायी, इस्थिति, इस्पृहा, इस्मरण के रूप में बोलते हैं और स्वयं, स्वीकार, स्वर जैसे शब्दों के उच्चारण में ऐसा नहीं होता। जबकि स् व्यंजन इन सभी शब्दों के आरंभ में आता है।

यहाँ मैं इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करूँगा।

भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि है। ध्वनियों के उच्चारण में मुख्य भूमिका अंदर से बाहर आने वाली हवा की है।

अंदर से बाहर आने वाली हवा के मार्ग में तरह तरह के अवरोध पैदा करके तरह तरह की  ध्वनियाँ उच्चरित की जाती हैं। ऐसे अवरोध व्यंजनों के उच्चारण में होते हैं, स्वरों के उच्चारण में नहीं।

क् से लेकर म् तक के बीच जो पचीस व्यंजन ध्वनियाँ हैं, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है।

स्पर्श व्यंजनों के उच्चारण के समय सबसे पहले मुख या गले में कहीं भी अंदर से बाहर आने वाली हवा के प्रवाह को पूरी तरह से रोक दिया जाता है। फिर एक झपके से छोड़ा जाता है। इस तरह क् से लेकर म् तक की ध्वनियों का उच्चारण होता है।

शेष ध्वनियों के उच्चारण में हवा को पूरी तरह से रोका नहीं जाता। यह अंतर है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि अलग अलग ध्वनियों के उच्चारण में अलग अलग प्रयत्न की जरूरत होती है।

जब कोई ध्वनि अकेले उच्चरित होती है, तब उसके उच्चारण की पूरी प्रक्रिया काम करती है।

लेकिन भाषा-प्रवाह में अलग अलग ध्वनियों का कोई महत्त्व नहीं है। हम अलग अलग ध्वनियों का पूरा उच्चारण नहीं करते। कर ही नहीं सकते।

बोलते समय हम एक शृंखला के रूप में लगातार ध्वनियों का उच्चारण करते हैं।

ऐसे में प्रत्येक ध्वनि अपने आगे-पीछे की ध्वनियों के उच्चारण को प्रभावित करती है और उनसे प्रभावित भी होती है।

शृंखलाबद्ध ध्वनियों का खंडित उच्चारण होता है। एक ध्वनि के उच्चारण की प्रक्रिया पूरी भी नहीं हो पाती कि अगली ध्वनि के उच्चारण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है।

अब मैं मूल प्रश्न पर आता हूँ।

१. य र ल व श स ह ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा मुखमार्ग में कहीं रुकती नहीं है।

२. क से म तक की ध्वनियों के उच्चारण में पहले पूरी हवा रुक जाती है। फिर एक झटके से बाहर निकलती है।

३. संयुक्त व्यंजन में दो ध्वनियों का उच्चारण एक साथ एक इकाई के रूप में करना होता है।

स्कंध, स्खलन, स्तर, स्थान, स्नान, स्पृहा, स्फुरण, स्मरण जैसे शब्दों के उच्चारण में स् के साथ क ख त थ न प फ म का उच्चारण करना होता है।

स् के उच्चारण में हवा का मार्ग सँकरा होता है । लेकिन हवा रुकती नहीं है। जबकि क ख .... आदि ध्वनियों के उच्चारण में पहले हवा के प्रवाह को रोकना पड़ता है।

हवा को रोकेंगे तो स् का उच्चारण कठिन नहीं हो जाएगा। और नहीं रोकेंगे तो क ख ... का उच्चारण नहीं होगा।

ऐसे में स् के उच्चारण को थोड़ा सुगम बनाने के लिए उसके पहले लोग अ या इ स्वर का सहारा लेते हैं। ध्यान रहे, ऐसी स्थिति शब्द के आरंभ में ही उपस्थित होती है।

ऐसा नहीं है कि अ या इ के सहारे के बिना स् का उच्चारण हो ही नहीं सकता। परंतु उसके लिए बहुत सावधानी तथा अभ्यास की जरूरत पड़ती है। फिर भी हमेशा सफलता नहीं मिलती।

स्यंदन, स्रष्टा, स्लेट (संस्कृत/हिन्दी में शब्द के आरंभ में स्ल् नहीं आता), स्वर जैसे शब्दों में स्य्, स्र्, स्ल्, स्व् के उच्चारण में हवा को रोकने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए स् का उच्चारण कठिन नहीं होता।

यही कारण है कि ऐसे शब्दों के उच्चारण के आरंभ में अ या इ स्वर का सहारा नहीं लिया जाता।



डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315, आणंद (गुजरात)

 

1 टिप्पणी:

  1. बड़े सरल ढंग से वर्णों एवं शब्दों का उच्चारण बताया गया है।बधाई सुदर्शन रत्नाकर

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