हाइकु
(छत्तीसगढ़ी)
रमेश
कुमार सोनी
1
नदी
मं डोंगा
सावन
के झुलई
पोटा
काँपथे।
2
सोनहा
मया
पूरब
मं बिहाने
जाग
रे पाबे।
3
भादो
रोवाथे
पूरा
बोहाके लेगे
खेत
ले छान्ही।
4
जाम
पाके हे
बारी
ह ममहागे
पींयर
काया।
5
कहिनी
सुने
गोरसी
ह बलाथे
जाड़
दउड़े।
6
रेंगे
डेर्राथें
सावन
के चिखला
पनही
बोहे!
7
राहेर,
चना
घुनघुना
बजाथें
नोनी
के सांटी।
8
पोटारे
बर
रुख-ढेखरा
होगे!
कोंवर
नार।
9
कुकुर पिला
आँखी
मूँदे खोजयं
दाई
के कोरा।
10
डोमी
करिया
मेचका
ल ताकथे
बाँबी
काखर?
11
महुआ
खाल्हे
जम्मो
मताए हवैं
भालू
कुदाथे।
12
पुस
के जाड़
गोरसी
के मितानी
ठट्ठा
सुनथें।
13
नौटप्पा
के लू
आरुग
हे करसी
जीव
जुड़ाथे।
(‘गुरतुर मया’-छत्तीसगढ़ी
हाइकु संग्रह से साभार)
रमेश
कुमार सोनी
कबीर नगर
रायपुर,छत्तीसगढ़
मेरे इस हाइकु को प्रकाशित करने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंरमेश कुमार सोनी
बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएं