नवांकुर
की दिशा
कुमार
गौरव अजीतेन्दु
“पापा,
हम
तो हर बार एक-दो तिरंगे खरीदते हैं। लेकिन उस तिरंगा बेचनेवाले लड़के के पास तो
कितने सारे तिरंगे होते हैं न!”
“हाँ
बेटा, होते
तो हैं...”
“मैं
भी बड़ा होकर तिरंगे बेचनेवाला बनूँगा।”
“नहीं
बेटा, ऐसा
नहीं कहते।”
“क्यों
पापा,?
क्या तिरंगा बेचना बुरा काम है?”
“नहीं
बेटे! तिरंगा बेचना बुरा काम नहीं है... कोई काम छोटा नहीं होता... मगर... अच्छा
बताओ, इस
फोटो में तिरंगा कौन लहरा रहा है?”
“वाह!
पापा ये तो मेरे पसंद के हॉकी खिलाड़ी हैं, जो ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद
तिरंगा लहराकर खुशी मना रहे हैं।”
“बिल्कुल
सही। हमें भी हमेशा वैसे काम करने का प्रयास करना कि जब हम तिरंगा उठायें तो उसके
पीछे एक ऐसी कहानी हो, जो पूरी दुनिया में तिरंगे का नाम और ऊँचाई पर ले जाए।”
कुमार
गौरव अजीतेन्दु
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