प्रवासी
मन
प्रीति
अग्रवाल
मेरा
देश मुझसे अलग तो नहीं
है
यादों, इरादों
व वादों में वो।
मेरी
तख्ती में, मेरी
स्याही में वो
कलम
से जो निकली ज़ुबानी में वो।
हर
गीत हर कविता हर कहानी में वो
है
मीठे सुरों की रवानी में वो।
मेरे
शिल्प में, मेरी
शैली में वो
विचारों
में और संस्कारों में वो।
पंख
फैला के जब भी उड़ती हूँ मैं
मेरे
बुलंद हौंसलों की उड़ानों में वो।
वो
मुझमें निहित हूँ मैं उसमें ढली
सद्द्भावना
की धरोहर मिली।
है
जीवन की अनमिट कहानी में वो
हर
पात्र की छवि सुहानी में वो।
मैं
प्रवासी सही मेरे प्रियजन वहीं
प्रार्थनाओं
में शुभकानाओं में वो।
मेरा
देश मुझसे अलग तो नहीं
उसकी
मिट्टी में मैं मेरी मिट्टी में वो!!
प्रीति अग्रवाल
मेरी कविता को पत्रिका में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद पूर्वा जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण कविता। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ
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