सोमवार, 15 अगस्त 2022

कविता

 


 


देश

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

हरित धरती,

थिरकतीं नदियाँ,

हवा के मदभरे सन्देश ।

सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।

 

भावनाओं, संस्कृति के प्राण हो,

जीवन कथा हो,

मनुजता के अमित सुख,

तुम अनकही अंतर्व्यथा हो,

प्रेम, करुणा

त्याग, ममता

गुणों से परिपूर्ण हो तपवेश ।

सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।

 

पर्वतों की शृंखला हो,

सुनहरी पूरब दिशा हो,

इंद्रधनुषी स्वप्न की

सुखदायिनी मधुमय निशा हो,

गंध, कलरव

खिलखिलाहट, प्यार

एवं स्वर्ग-सा परिवेश ।

सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।

 

तुम्हीं से यह तन,

तुम्हीं से प्राण, यह जीवन,

मुझ अकिंचन पर

तुम्हारी ही कृपा का धन,

मधुरता, मधुहास,

साहस

और जीवन -गति तुम्हीं देवेश ।

सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।

 


त्रिलोक सिंह ठकुरेला

बंगला संख्या-99,

रेलवे चिकित्सालय के सामने,

आबू रोड-307026

जिला - सिरोही (राजस्थान)

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर, मनमोहक रचना, बधाई।!

    जवाब देंहटाएं
  2. त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी की कविता " सिर्फ़ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश " बहुत अच्छी लगी ।बधाई कवि को ।

    जवाब देंहटाएं

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...