बुधवार, 4 मई 2022

कविता

 



चालबाज़ चाँद

डॉ. कुँवर दिनेश सिंह

मैं जानता हूँ

भली-भाँति जानता हूँ

तुम्हारे अन्तरतम रहस्य;

ओ दम्भी चन्द्र तुम

दमक रहे हो

मिथ्या अभिमान में।

 

मैं प्रकट कर दूँगा

तुम्हारा यह छद्मवेश,

यह आभा, यह मनोहरता

और यह सब चमक जिस पर

तुम करते हो मान;

मैं कर दूँगा भंग

तुम्हारे रहस्य की इस लाह को।

 

भाड़े की रोशनी से

मिला है तुम्हें

एक प्रभावशाली नाम―

सम्मोहन करने को;

किन्तु झूठी है यह शान सब―

मिथ्या प्रदर्शन करते हो तुम

अपने इस प्रभामण्डल का।

 

त्याग दो यह झूठा गर्व,

यह छलना, यह चालबाज़ी सारी,

और रोक लो उन शब्दों को

जो मेरे अधरों से छूटने को हैं...

 



डॉ. कुँवर दिनेश सिंह

एसोसिएट प्रोफ़ेसर(अंग्रेज़ी)

शिमला: 171004

हिमाचल प्रदेश

2 टिप्‍पणियां:

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