रविवार, 3 अप्रैल 2022

विशेष

स्मृति शेष बप्पी लाहिड़ी



राजा दुबे

झरनों के शोर का पर्याय था बप्पी लाहिड़ी का संगीत

शान्त झील में नौका विहार सरीखे भारतीय संगीत में झरनों-सा शोर और समुद्री लहरों सा तूफान लाने वाले बप्पी लाहिड़ी का अवसान एक अलग घटना है और संगीत के एक नये दौर के प्रणेता का अवसान है । बप्पी दा संगीत के उस दौर के प्रणेता थे जिस दौर की पीढ़ी उनके - “आई एम ए डिस्को डांसर ...” पर थिरकते हुए बड़ी हुई थी। यह कहना असंगत न होगा कि बप्पी लाहिड़ी का संगीत झरनों के शोर का पर्याय था। बप्पी दा के संगीत में जो तेज रिदम थी वह मन को आह्लादित करने के साथ-साथ मन को झकझोरने वाली भी थी। बॉलीवुड में बप्पी लहरी का नाम एक ऐसे संगीतकार तथा पार्श्वगायक के तौर पर जाना जाता है । जिसने डिस्को संगीत का लोगों को दीवाना बनाया। बप्पी लहरी ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों के प्रयोग के साथ-साथ भारतीय फिल्म संगीत में पश्चिमी संगीत का एक अद्भुत मिश्रण करके   डिस्कोथेक’  की एक नई शैली ही विकसित कर दी। अपने इस नए प्रयोग की वजह से बप्पी लहरी को अपने कैरियर के शुरुआती दौर में काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था ।  लेकिन बाद में श्रोताओं द्वारा उनके संगीत को काफी सराहना मिली । परिणामस्वरूप वे फिल्म इंडस्ट्री में  डिस्को किंग’  के रूप में विख्यात हो गए।मिथुन चक्रवर्ती के जिस झटकेदार डिस्को डांस को उस ज़माने के युवा नकल करते थे, वह भी बप्पी दा की ही देन थी। इस तरह उन्होंने कई पीढ़ियों को बरसों तक अपने विलक्षण फिल्म संगीत से नचाया। ऐसा यूँ ही नहीं हुआ होगा निश्चय ही इसके लिए उन्होंने विदेशी गीत-संगीत पर काफी शोध किया होगा इसीलिए वे ऐसे कालजयी संगीत की रचना कर सके ।

भारतीय सिनेमा को डिस्को-संगीत से रूबरू करवाया था बप्पी दा ने

बप्पी दा यानी अलोकेश लाहिड़ी । वे प्रतिभाशाली संगीतकार के साथ-साथ एक पार्श्वगायक भी थे उन्होंने भारतीय सिनेमा को  ‘डिस्को-संगीत’ से अवगत कराया और भारतीय फिल्म संगीत को एक से बढ़कर एक सदाबहार गीत दिए ।

बप्‍पी लाहिड़ी का जन्‍म  27 नवंबर 1952 को जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल) में हुआ था। उनके पिता का नाम अपरेश लाहिड़ी तथा माँ का नाम बन्‍सारी लाहिड़ी था । बप्‍पी लाहिड़ी ने मात्र तीन वर्ष की अल्प आयु में ही तबला बजाना शुरू कर दिया था । बाद में उनके पिता ने उन्हें संगीत के कई गुर सिखाये ।महज सत्रह साल की उम्र से ही उन पर संगीतकार बनने की धुन सवार हो गई थी । बाद में उनके प्रेरणा स्त्रोत बने – एस. डी .बर्मन। बप्पी किशोरावस्था से ही एस. डी .बर्मन के गानों को सुनकर उनके आधार पर गाने का रियाज किया करते थे। भारतीय फिल्म संगीत में डिस्को और पॉप को सही अर्थ में एक लोकप्रियता दिलाने वाले और डिस्को और पॉप के सामंजस्य से लय, ताल और सुरों का मुग्धकारी संसार रचने वाले बप्पी दा ने संगीत की एक ऐसी अजस्र धारा प्रवाहित की, जो रसिक संगीतप्रेमियों को वर्षों तक भिगोती रही। देश के आर्केस्ट्रा वालों को बप्पी दा का एहसानमंद होना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपने फिल्मी संगीत में तबला, ड्रम, ढोलक, गिटार, पियानो और सेक्साफोन को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया और एक नया स्वर पटल तैयार किया ।

और वह अविस्मरणीय क्षण जब बप्पी दा माइकल जैक्सन के मेहमान बने थे ।

वर्ष 1996 में मुंबई में माइकल जैक्सन का लाइव शो था। उस शो को देखना ही अपने आप में एक स्टेटस सिंबल था, और अगर आपको जैक्सन के मेहमान के तौर पर निमंत्रण मिला हो तो फिर कहना ही क्या। इस शो में भारत के जिस इकलौते संगीतकार को माइकल ने आमंत्रित किया था वे बप्पी लाहिड़ी ही थे । खुद माइकल जैक्सन ने संगीत के क्षेत्र में उनकी  अपार प्रसिद्धि की वजह से बुलाया था। बप्पी दा उस क्षण को अपने जीवन की अविस्मरणीय  घटना मानते हैं ।

फिल्म  ‘ज़ख़्मी  ने बप्पी दा को बॉलीवुड में स्थापित किया

बप्पी दा को संगीत देने का पहला अवसर एक बंगाली फ़िल्म  ‘दादू’  (1972) में और पहली हिंदी फ़िल्म  ‘नन्हा शिकारी’  (1973) में मिला। परंतु जिस फ़िल्म ने उन्हें बॉलीवुड में स्थापित किया, वह ताहिर हुसैन की फ़िल्म ज़ख़्मी (1975) थी । और उसी फिल्म में पार्श्वगायक के रूप में उन्होंने सफलता पाई और अच्छी कमाई भी की। इस फिल्म ने उन्हें प्रसिद्धि की ऊँचाइयों पर पहुँचाया और इस तरह हिंदी फिल्म उद्योग में एक नए युग का आरम्भ हुआ। उसके बाद तो वे फिल्‍म दर फिल्‍म नई ऊँचाईयाँ छूते गये और बॉलीवुड में अपना नाम बड़े कलाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया बप्‍पी लाहिड़ी प्रसिध्‍द गायक होने के साथ एक प्रतिष्ठित किया । संगीतकार,  कुशल अभिनेता और रिकार्ड प्रोड्यूसर भी थे । बप्पी लहरी की किस्मत का सितारा वर्ष 1975 में रिलीज हुई फिल्म   ज़ख़्मी’  के गीत –   ‘आओ तुम्हें चाँद पे ले जाएँ’  और  ‘जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में’ अपने समय में बहुत लोकप्रिय हुए साथ ही ‘ज़ख़्मी दिलों का बदला चुकाने’ वाला गीत आज भी होली गीतों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

वर्ष 1976 में उनके संगीत निर्देशित में बनी एक और सुपरहिट फिल्म  ‘चलते-चलते’  प्रदर्शित हुई। फिल्म में किशोर कुमार की आवाज में  ‘चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना’ आज भी श्रोताओं के बीच अपनी अमिट पहचान बनाए हुए है। फिल्म  ‘ज़ख़्मी’  और  ‘चलते-चलते’  की सफलता के बाद बप्पी लहरी बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1982 में रिलीज फिल्म ‘नमक हलाल’  उनके कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है।

अस्सी-नब्बे के दशक में कई हिट फिल्में दी बप्पी दा ने

अस्सी नब्बे के दशक में उनकी संगीतबद्ध की हुई कई हिट फिल्में आईं जैसे -  डिस्को डांसर, शराबी, नमक हलाल, थानेदार, हिम्मतवाला, आज का अर्जुन और साहेब। पर उनके संगीत का जादू इसके बाद के दौर में भी जारी रहा। फिल्म  डर्टी पिक्चर का – ‘ऊ ला ला ऊ ला ला’ हो या गुंडे का – ‘तूने मारी एंट्री तो दिल में बजी घंटी’ आज भी लोग उन गीतों  की धुनों पर झूमते हैं ।

भारतीय लोक संगीत की धुनों का उपयोग भी उन्होंने बड़ी कुशलता से किया और कुछ यादगार गाने रचे । जैसे फिल्म  ज़ख़्मी का मशहूर होली गीत - “ आली रे होली ..” या आज का अर्जुन का- “गोरी हैं कलाइयाँ ..” और  “चली आना तू पान की दुकान पे” । उनकी लोकप्रियता इसी से आँकी जा सकती है कि वर्ष 1989 में थानेदार फिल्म का उनका गाना –  ‘तम्मा-तम्मा’  वर्ष 2017 में रीमिक्स होकर फिर से सुपरहिट हुआ। एक अलग पहचान बनाने वाले बप्पी दा अब हमारे बीच नहीं है परंतु अपने संगीत के माध्यम से संगीत प्रेमियों द्वारा सदा याद किए जाते रहेंगे।

 


राजा दुबे

एफ - 310 राजहर्ष कालोनी ,

अकबरपुर

कोलार रोड

भोपाल 462042

 

1 टिप्पणी:

  1. आओ तुम्हें चाँद पे ले जाएं । गीत वाले बप्पी दा खुद अकेले चाँद पर चले गये ।चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना की रचना करने वाले बप्पी दा को नमन । वाह दुबे जी अप्रतिम लेख । बधाई ।

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