ये
प्यारे गुलदस्ते
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
1
पलाश-वन
पद्मिनी
का हो मानो
जौहर-यज्ञ
।
2
तुम्हारी
होली !
शहीद
हुए देखो
पलाश-पुष्प
।
3
गिरधर
का
मुकुट-धरोहर
गुलमोहर
।
4
मधु
मालती
साजन
के बिन ये
हिया
सालती।
5
बड़ा
बेज़ार
रो
रहा था सुबह
हरसिंगार
।
6
ओ
पारिजात
क्या
घटा कल रात
सुबह
झरा !
7
ये
स्वर्ग-पुष्प
सुने
राग-बहार
मधुमक्खी
का ।
8
लाल-पीले हैं
जन्म
से ही क्रोधित
पलाश
–पुष्प ।
9
भू
के प्रेम में
लुटाता
मधुमास
अमलतास
।
10
पलाश-पुष्प
मानो
नव-वधुएँ
सभा
में साथ।
11
सुगंध
धारा
खिलता
है ग़ुलाब
काँटों
की कारा।
12
गेंदा
है नेक
जयमाल
से करे
दो
मन एक ।
13
जलज
लेटा
झील,ताल आँचल
लाड़ला
बेटा।
14
श्वेत
नलिन
नीली
झील में हँसे
तारकगण।
15
जाने
कब से
और
किससे जले
पलाश–प्रेमी
।
16
खिले
पंक में
शुभ-से
शतदल
नहीं
विकल।
17
सरोवर
का
बढ़ा
रहे हैं ओज
प्यारे
सरोज।
18
निशिगंधा
के
ये
प्यारे गुलदस्ते
खूब
हँसते।
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
देहरादून
ज्योत्स्ना जी के मौसमी हाइकु बहुत सुन्दर ।बधाई ।
जवाब देंहटाएंपलाश-पुष्प
जवाब देंहटाएंमानो नव-वधुएँ
सभा में साथ।
....वाह,बहुत सुंदर बिम्ब।सभी हाइकु सुंदर।बधाई ज्योत्स्ना जी।
पुष्प के नाम से जोड़कर की गई हायकू रचना, ह्रदय मे हलचल मचाने वाली ।
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