लता
जगत में विलग, अनूप
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
सिने
- वाटिका पुष्प अनेक ।
अति
मीठे रव की पिक एक ।।
नेपथ्य में
गूँजता गान ।
स्वर-कोकिला,
लता है नाम ।।
छोटी बच्ची, तेरह साल ।
उसने गाये , गीत कमाल ।।
'महल' फ़िल्म का गाकर गीत।
बनी
लता हर जन सुर-मीत।।
सौम्य,
सरल ,उजले परिधान।
अधरों पर
पावन मुस्कान।।
गीत सुनाती
नंगे पाँव ।
मात शारदे वर
की छाँव।।
सात सुरों
का पारावार ।
अधर
बहाते पावन धार।।
गायन
से भरती दृग - नीर ।
गाती मीरा, सूर , कबीर।।
रामचरित मानस
के छन्द।
गाकर छलकाती
आनन्द।।
सर्व
- धर्म बन मोहक माल।
चमकाती भारत
का भाल।।
पावनता की
उजली धूप ।
लता
जगत में विलग, अनूप ।।
माँ शुभदे
का शुभ वरदान ।
लता
- हृदय में हिन्दुस्तान।।
ज्योत्स्ना
शर्मा प्रदीप
देहरादून
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया 🙏🏼
हटाएंनमन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिये!
हटाएंभारत रत्न और संगीत महारत्न लता जी के लिए जितना लिकगा जाएगा कम ही रहेगा । फिर भी ज्योत्सना जी ने बहुत अच्छा लिखा है । लता जी को नमन नमन नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत धन्यवाद रवि जी!
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए प्रिय पूर्वा का दिल से आभार!🙏🏼
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