गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

आलेख

 



बेजान लकीरों का नक्शा, रिश्तों की नज़ाकत क्या जाने?’

जयप्रकाश चौकसे

कपूर परिवार गाँव समुंदरी पोस्ट पेशावर (पाकिस्तान) का रहने वाला है। राजकपूर के दादा बशेसर नाथ के एक सेवक का पोता मोहम्मद युनूस पर्ल कांटिनेंटल हॉटल (पेशावर) में सहायक लॉबी मैनेजर है। वह कपूर परिवार के सभी सदस्यों के लिए १९ फरवरी ८६ को भेंट लेकर आया। उसने ऐसी बात बताई जो कुछ ही लोगों को मालूम थी । कपूर परिवार के पठान मित्र ने विभाजन के बाद बशेसर जी का मकान खरीद लिया और आज भी उस मकान को वह प्रतिदिन साफ करवाता है। पापाजी की सभी चीजें आज भी उसी करीने से सजी हैं, जैसी वे छोड़ आये थे। आज उस मकान का बाजारी मूल्य २० लाख रुपये है परन्तु वह पठान न तो खुद उसमें रहता है और न ही उसे बेचता है। उस पठान को नक्शों पर खींची हुई लकीरों पर कोई यकीन नहीं।

वह विभाजन की हकीकत को मानने से इन्कार करता है और आज भी आशा लगाये बैठा है कि पापाजी के बेटे या नाती घर (समुन्दरी गाँव, पोस्ट पेशावर) लौटेंगे और उन्हें अपना मकान साफ सुथरा मिलना चाहिए। इस बूढ़े पठान का मन बेजान लकीरों (राजनैतिक) को नकारता और रिश्ते की हकीकत को मजहब की तरह पाक मानता है। आज उस बूढ़े और बीमार पठान के नाती | पोते उस मकान को बेचना चाहते हैं परन्तु बूढ़ा पठान अपनी परम्परा को जीतेजी नहीं टूटने देगा। पठान हिन्दू हो या मुसलमान वह अपने कौल (वचन) के लिए जीता मरता है और यही उसका असली मजहब है। इस संदर्भ में पापाजी का नाटक पठानइस कौम की प्रतिनिधि रचना है।

राजकपूर भी असल पठान हैं। बीवी ओ बीवीके पूरा होने पर जब उन्होंने संजीव को बकाया भुगतान करना चाहा तो संजीव कुमार ने कहा कि जब जरूरत होगी, वह माँग लेंगे। संजीव कुमार के की मृत्यु बाद राजकपूर ने संजीव की भाभी और वकील को बुलाकर पूरा भुगतान किया।

मोहम्मद युनूस जब मकान की घटना का वर्णन कर रहे थे तो राजकपूर की आँखें नम हो गई। उन्होंने बताया कि उस मकान के एक कमरे से एक सुरंग गली के दूसरे पार वाले मकान में जाती है। सुरंग वाला कमरा पापाजी के पिता श्रीबसेशर नाथ का था। उस सुरंग के द्वारा वे अपनी प्रेयसी से मिलने जाते थे। दरअसल वह सुरंग रिश्तों की भूल-भुलैया है। हमारे लिए इतना ही जानना काफी है कि पठान के पास युद्ध और प्रेम के लिए एक सा माद्दा होता है और एक पठान का चरित्र युद्ध और प्रेम के विरोधाभासी लगने वाले तानों-बानों से बुना होता है। पठान की सख्त छाती के नीचे कोमल दिल धड़कता है। युद्ध की अभ्यस्त उसकी मजबूत बाहें आलिंगन की प्यासी होती हैं। वह खून की नदी बहा सकता है परन्तु स्त्री के बहते आँसू नहीं देख पाता।

राजकपूर असल पठान है। जीवन की जंग का वह अजेय अपराजित सैनिक है। प्रेम करने का उसमें अद्भुत माद्दा । प्रेम ही उसकी शक्ति है, प्रेम ही उसकी कमजोरी है। राजकपूर के नजदीक के ही लोगों ने उसे बहुत लूटा है, बहुत पैसे चोरी किये हैं। राजकपूर यह सब जानते हैं फिर भी खामोश बैठे रहते हैं, क्योंकि प्रेम उनकी कमजोरी इसी माने में है। जिनको प्यार दिया है, बेजान उन्हें चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ने का क्या अर्थ ? जले हुए दिल को कोयला बनाने में हाथ ही काले होंगे। राजकपूर अपनी छोटी-सी कॉटेज में बैठकर सबकी पूरी जानकारी रखते हैं। वह सब कुछ जानते हैं और कुछ नहीं जानते । पठान दर-असल उनके इर्द-गिर्द बैठे वे लोग नादान हैं जो समझते हैं कि वे उस चक्र को चला रहे हैं।

एक पठान अपनी मन भावन बात के लिए सब कुछ दे सकता है परन्तु अड़ जाये तो उससे कानी कौड़ी नहीं ली जा सकती। जरूरत पड़ने पर पठान किसी की मदद के लिए अपनी कमीज भी बेच सकता है और जिद पर आ जाये तो सारे कपड़े उतरवा सकता है। राजकपूर असल पेशावरी पठान है। वह खुद शायद करोड़पति नहीं है, क्योंकि फिल्मों से कमाया है और फिल्मों में लगाया है । राजकपूर से ज्यादा इनकम टैक्स पूरी इण्डस्ट्री ने मिलकर भी नहीं दिया है। राजकपूर ने कई करोड़पति पैदा किये हैं। मैं उनके बेटों का जिक्र नहीं कर रहा हूँ।

राजकपूर की फिल्मों के वितरण से कई लोगों ने करोड़ों की सम्पत्ति अर्जित की है। एक वितरक ने उनकी पहली रंगीन फिल्म की आय के सहारे आज अनगिनत सम्पदा का विशाल व्यावसायिक संकुल खड़ा कर लिया है। उनके पहले फाइनेंसर ने फिल्मों के कमाये हुए धन से अखबारों की दुनिया में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। एच.एम.वी. कम्पनी दीवालेपन की कगार से वापस लौट आई है केवल राम तेरी गंगा मैलीके संगीत को बेचकर । जब राजकपूर-अमृत महोत्सवकी स्मारिका के लिए विज्ञापन लेने मैं एच.एम.वी के श्री दुबे से मिलने गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी कम्पनी आज राजकपूर की वजह से जिन्दा है और उनकी यह मजबूरी है कि वे दस लाख का चैक लेकर रॉयल्टी चुकाने राज साहब के पास नहीं जा सकते।

राजकपूर की मदद से करोड़पति बनने वालों की पूरी सूची देना कठिन है और शायद उचित भी नहीं क्योंकि कई बड़े लोग आज यह स्वीकार करने में झिझक महसूस करते हैं कि उन पर किसी का एहसान बाकी है।

फिल्म बॉबी में प्राण प्रेमनाथ का अपमान कर देते हैं और दूसरे दिन बिगड़ी हई बात को बनाने के लिए प्रेमनाथ के घर जाते हैं। प्राण कहते हैं कि उन्हें अफसोस है कल उनके बात करने का तरीका गलत था। तब प्रेमनाथ कहते हैं कि तरीका गलत नहीं था बात गलत था। यही हाल राजकपूर का है कि अगर बात गलत हो तो कोई उनसे कानी कौड़ी नहीं ले सकता। लाखों रूपये फिल्म सैट पर लगाने वाले राजकपूर कई बार थोड़े से रूपयों के लिए अड़ जाते हैं क्योंकि गलत बात की हिमायत असल पठान नहीं करता ।

राजकपूर को समझने का दावा बहुत लोग करते हैं। राजकपूर नामक समुद्र के किनारे सीपियाँ बटोर लेते हैं, कुछ रंगीन पत्थर उठा लेते हैं ।

उसकी गहराई को नापना संभव नहीं है, क्योंकि वह प्रेम और दर्द की रहस्यमय गहराइयाँ है। इसके सीने की सख्ती बहुत लोगों ने देखी हैं, परन्तु इस सख़्ती के पीछे छुपे कोमल हृदय की गहराइयों तक जाना संभव नहीं है। पठान के स्वभाव के मूल ताने-बाने प्रेम और युद्ध के हैं इन्हीं के जरिये उन तक पहुँचा जा सकता है।

पेशावर के नौजवान मोहम्मद युनूस जब बिदा लेने लगे तो राज साहब ने अपने एक आदमी को उनके हॉटल भेजा ताकि बिल अदा कर दिया जाये। इन छोटी बातों को जो रिश्ते निभाने में बहुत दूर तक जाती है, राज साहब धर्म की तरह निभाते हैं।

दरअसल हर पठान के कमरे से रिश्तों की भूल-भुलैया की एक सुरंग किसी दिल के तहखाने में जरूर जाती है। कई बार स्वार्थ और संकीर्णता के जाले सुरंग की दीवारों पर लग जाते हैं। वक्त के मोतियाबिंद के बावजूद दिल के दीपक के सहारे सुरंग पार करके प्रेम के दरवाजों पर दस्तक दी जाती है। प्रेम करने और प्रेम देने की यही शक्ति राजकपूर से आज भी फिल्में बनवाती है।

‘अमृतांजलि’ से साभार

(राज कपूर अमृत महोत्सव, इंदौर 23 मार्च, 1986)


 

जयप्रकाश चौकसे

वरिष्ठ पत्रकार और फ़िल्म समीक्षक

इंदौर (म.प्र)

 

1 टिप्पणी:

  1. जयप्रकाश चोकसे सर जी बरसों से प्रतिदिन दैनिक भास्कर के लिए - पर्दे के पीछे लिख रहे है । फ़िल्म जगत और ख़ास तौर पर राजकपूर परिवार से शुरू से रही उनकी नजदीकियां हमें रोज नए फ़िल्म संसार से मिलाती है । चौकसे जी को नमन ।

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