दिवाली
का उपहार
प्रीति
अग्रवाल
‘स्वाति,
देख पापा आ गए, आज आप आफिस से थोड़ा देर से
क्या आए, अबतक दस बार पूछ चुकी है...’
‘आजा,
बिट्टो, देख तेरे लिए क्या लाया हूँ..’
पाँच वर्षीय
स्वाति खिलखिलाती हुई आयी और पापा के पैरों से लिपट गई। जब पापा उसे हवाई जहाज़ की
तरह सर्राटे से गोद में उठाते थे तो सारा घर उन दोनों की हँसी से गूँजने लगता था।
उपहार पाकर, तो उसकी खुशी का ठिकाना न था।
‘पापा!
आपको याद था, आप मेरे लिए गुड्डा लाए, अब
मैं अपनी गुड़िया का ब्याह रचाऊँगी...ई लव यू पापा, ई प्रॉमिस,
मैं आपको छोड़ कर कभी नहीं जाऊँगी...’
‘जाना
तो पड़ेगा, अपने गुड्डे के साथ, अपनी
ससुराल’, पापा ने लाड़ लड़ाते हुए कहा।
‘अच्छा
पापा, फिर मुझे मेरी पसंद की चीज़ें कौन दिलाएगा....
‘तेरा
गुड्डा, और कौन’’, माँ दुलारते हुई
बोली।
‘और
अगर उसने न दिलाई तो....’
‘तेरे
पापा दे देंगे....’ माँ की बात से संतुष्ट हो नन्हीं स्वाति,
अपने गुड्डे को निहारती, अपने कमरे की ओर चली
गई।
पिताजी का मन
बेचैन हो उठा। क्या ऐसा भी हो सकता है....यदि ऐसा हुआ तो??
अगले दिन
पिताजी दफ्तर से लौटकर, बड़े ही बुलन्द स्वर
में बोले, ‘ आजा बिट्टो, देख मैं तेरे
लिए इस दिवाली सबसे अच्छा उपहार लाया हूँ, .....तेरी
स्वतंत्रता!’
संतोष की गहरी साँस भरते हुए, गोद मे इठलाती, स्वाति के हाथ में उन्होंने ‘सुकन्या समृद्धि योजना’
थमा दी!!
प्रीति
अग्रवाल
कैनेडा
आज की बदलती सोच पर लिखी अच्छी कहानी है । पिता और बेटी का प्यार अनोखा होता है। बधाई हो प्रीति। सविता अग्रवाल’सवि’
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लघुकथा। ऐसी सोच ही बदलाव ला सकती है।
जवाब देंहटाएंसुंदर लघुकथा,बधाई प्रीति जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया , हार्दिक बधाई !
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