रविवार, 17 अक्तूबर 2021

चौपई /जयकरी छन्द



1.

चलो भरें हम  भू  के  घाव

ज्योत्स्ना प्रदीप

 

धरती  जीवन   का   आधार।

धरती  पर   मानव - परिवार ।।

 

जीव - जंतु  की  भू  ही  मात।

धर्म -  कर्म  कब   देखे   जात।।

 

झील, नदी, नग ,उपवन,खेत ।

हिमनद, मरुथल, सागररेत ।।

 

हिना  रंग   की    मोहक   भोर।

खग का  कलरव  नदिया  शोर।।

 

करे यहाँ  खग   हास - विलास ।

अलि ,तितली की मधु की प्यास।।

 

तारों  के   हैं    दीपित    वेश।

सजा   रहे   रजनी  के   केश।।

 

नभ  में  शशि -रवि  के कंदील।

चमकाते   धरती   का  शील।।

 

युग बदला  मन बदले   भाव ।

मानव  के  अब बदले  चाव  ।।

 

हरियाली   के   मिटे    निशान ।

वन , नग   काटे  बने   मकान ।।

 

मानव  के   मन  का ये  खोट ।

मही -हृदय   को  देता  चोट ।।

 

मत   भूलो   हम  भू - संतान ।

करो सदा  सब  माँ  का  मान।।

 

हरियाली  का   कर   फैलाव ।

चलो भरें  हम  भू   के   घाव।।

 

2.

पुस्तक होती है अनमोल

 

पुस्तक होती है अनमोल।

अमरत जैसे झरती बोल।।

 

पोथीपुस्तक कहो किताब।

मन के  नग की ये है आब।।

 

ऋषि, मुनि देवों का है वास।

इसमें बसा  हुआ  इतिहास।।

 

सति- शंकर की इसमें प्रीत ।

सिया-राम  के कर्म  पुनीत ।।

 

राधा-मोहन शुभ अनुबंध ।

वाल्मीकि के श्लोक औ छन्द ।।

 

तुलसीमीरा, सूर, कबीर।

 इनका लेखन पोंछे नीर।।

 

योग, धारणा इससे ध्यान।

मन मंथन कर अनुसंधान।।

 

इसमें  बसा हुआ विज्ञान।

हर मन का ये रखती मान।।

 

याद  करे  सेनानी,  वीर।

पुस्तक जाने मन की पीर ।।

 

सात सुरों की उजली धार।

इसमें  ही जीवन का सार।।

 

चढ़ने मत दो इस पर धूल।

दुर्गम पथ  के छाँटे शूल।।

 

मात शारदे, रहती  हाथ।

पढ़ोलगाकर इसको माथ।।

 


ज्योत्स्ना प्रदीप

देहरादून

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव, भाषा सहित बढ़िया प्रस्तुति !

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  2. हार्दिक आभार पूर्वा जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए साथ ही ज्योत्स्ना जी का भी दिल से शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं

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