सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

कविता

 


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

 1.

वही बस वही तो उजालों में आए

कि, जिसने अँधेरों में दीपक जलाए ।

 

ये रस्ता कहाँ से कहाँ जा रहा है

जिसे खुद पता हो वही तो बताए ।

 

गिरा बिजलियाँ आशियाने पे मेरे

वो पूछें हुआ क्या है बैठे-बिठाए ।

 

इरादों का उनके पता ही चला जब

रुलाकरके हमको वो खुद मुसकुराए।

 

करे माफ रब भी सुबह का जो भूला

ढले शाम जब अपने घर लौट आए

 

सरल है बहुत बात पर बात कहना

सही है तभी, काम करके दिखाए ।

 

2.

नभ को रंग बदलते देखा

सूरज उगते-ढलते देखा ।

 

जीवन-पथ पर पथिकजनों को

गिरते और सँभलते देखा ।

 

जिसका कोई मोल नहीं ,वह

सिक्का खूब उछलते देखा ।

 

उजले-उजले परिधानों में

अँधियारों को पलते देखा ।

 

जिनके सिर औ' पैर नहीं थे

उन बातों को चलते देखा ।

 

बेबस आँखों के दरिया में

इक तूफान मचलते देखा।

 

तनिक तपिश से हिमखंडों को

धीरे-धीरे गलते देखा ।

 


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

एच-604 , प्रमुख हिल्स ,छरवाडा रोड ,वापी

जिला- वलसाड(गुजरात) 396191

4 टिप्‍पणियां:

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