सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

कहानी पर बात

 


चुनाव

(शैलेश मटियानी)

डॉ. हसमुख परमार

हिन्दी के यथार्थवादी कथालेखक शैलेश मटियानी (1931-2001) का यथार्थ है- उनका देखा हुआ, उनका अनुभव किया। ज़्यादातर उनके द्वारा भोगा हुआ यथार्थ -फ़र्स्ट हेण्ड एक्सपीरियन्स। गोपीभाव’ को धारण करना और स्वयं एक गोपी होने में अंतर तो रहेगा ही। अनुभव का दायरा भी इस लेखक का काफी विस्तृत एवं अनेक स्तरीय रहा है। विविध धर्म, जातियाँ, वर्ग व क्षेत्रों से संबद्ध चरित्रों का जीवन व इनकी समस्याएँ इनके कथासाहित्य में बराबर चित्रित है।

मटियानी के कहानी साहित्य में कतिपय कहानियाँ ईसाई संदर्भ केन्द्रित है। इनकी ‘चुनाव’ भी मुख्यतः धर्मांतरण (हिन्दू से ईसाई) के मुद्दे से जुड़ी एक ईसाई संदर्भ की कहानी है। मटियानी की कहानियों के कुछ अध्येताओं ने उक्त कहानी को नारी वंचना की कहानी बताया है। दरअसल कहानी के प्रमुख पुरुषपात्र के पक्ष से, इनके जीवन-स्थिति को यदि हम एक और कोण से देखें तो मेरे विचार से यह कहानी एक स्त्री के साथ-साथ एक तरह से अपने आश्रयदाता से भी धोखा खाये हुए पुरुष की त्रासद दास्तान है। सुख-सुकून की जिस उम्मीद के साथ वह अपने धर्म को छोड़कर मिशन और पादरी साहब की शरण में जाता है पर इसके बाद सुख -शांति तो बहुत दूर, ऊपर से उसे अपनी पहचान और अपने प्रियपात्र को भी खोना पड़ता है, और अन्ततः इसके जीवन का दुखद अंत होता है। इस प्रकार यह एक करुण कहानी है।

कहानी के केन्द्र में है - कृष्णानंद पंडित और कमला शिल्पकारनी। कृष्णानंद और कमला में प्रेम और यह प्रेम पहुँचता है शारीरिक संबंध तक। कमला के गर्भवती होने पर दोनों असमंजस की स्थिति से गुजरते हैं। कमला चाहती है कि समाज में होने वाली बदनामी को झेलकर या आत्महत्या करके वह इस समस्या से निजात पा लेगी परंतु कृष्णा को यह मंजूर नहीं। कृष्णा के लिए कमला से अंतर्जातीय विवाह करके गाँव में रहना बहुत मुश्किल था, फलतः दोनों भागकर लखनऊ पहुँचते हैं। लखनऊ में इनका ध्यान उसी पादरी साहब की ओर जाता है जिनका व्याख्यान कृष्णानंद ने अपने  गाँव में सुना था।  व्याख्यान में कही गई कुछ बातें कृष्णानंद को आज भी बराबर याद हैं- “मसीह की शरण में आने वाले बड़े  से बड़े पापी को मुक्ति मिल जाती है। पहाड़ी इलाकों में जातीय संकीर्णता फैली हुई है उसके दुष्परिणामों से भी छुटकारा तभी मिल सकता है, जब प्राणी मसीह के धर्म संस्थान गिरजे में जाकर अपनी गवाही दे। (चुनाव, संकलन - बर्फ की चट्टानें, पृ.423)

भविष्य की चिंताओं में डूबे हुए कृष्णा को मिशन, पादरी जॉनसन साहब और इनके उपदेश में आशा की एक किरण दिखती है, वह सोचता है कि यदि वह पादरी साहब और मिशन की शरण में चला जाए, ईसाई धर्म को स्वीकार कर लें तो मिशन में इनकी कमला के साथ रहने की व्यवस्था हो सकती है। और ऐसा ही होता है। पादरी साहब इन दोनों को मिशन में शरण देने को तैयार होते हैं और कृष्णानंद भी कमला सहित ईसाई धर्म अपनाने की शपथ ले लेता है। कृष्णा को पादरी साहब की ओर से दी गई ईसाई धर्म संबंधी पुस्तिका में लिखा हुआ था “तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें चुना और नियुक्त किया है”।(पृ. 425)

धर्मांतरण के उपरांत कृष्णानंद को के. एन. क्रिस्टी और कमला शिल्पकारनी को कैथरिन क्रिस्टी नाम दिए जाते हैं । ईसाई होने के पश्चात कृष्णानंद की अपेक्षा  कमला की भाषा, पोशाक व व्यवहार में बहुत तेजी से बदलाव होने लगता है।

 ‘‘काले गाढ़े का फेरीदार घाघरा पहनकर, कमर में किनारीदार धोती का फेंटा कसे, उसी के एक छोर को फैलाकर माथे पर डालकर खोई-खोई, झिझकी-झिझकी-सी चलने वाली कमला शिल्पकारनी को अब कृष्णानंद विस्मय से देखता ही रह जाता है।’’

एक नए माहौल ने कमला को पूरी तरह बदल दिया। वह पूरी तरह से कमला से कैथरिन क्रिस्टी होती जा रही है।  अंग्रेजी पढ़ने-बोलने लगी है। स्लिवलेस, लो कट ब्लाउज, घुटनों के ऊपर तक के स्कर्ट वाली पोशाक में सजी कैथरिन अब तो कॉलेज की लड़कियों की तरह उछलती कूदती दिखाई देती है। कृष्णानंद सोचता है कि जितनी तेजी से कमला शिल्पकारनी कैथरिन क्रिस्टी बनती जा रही है उतनी ही तेजी से वह कृष्णानंद का कृष्णानंद ही रहता चला जा रहा है। वह मिशन गर्ल्स स्कूल में चपरासी की नौकरी करता है। कमला का  बच्चा अधूरे महीनों में मृत हालत में पैदा होता है अतः कमला कृष्णा के बीच की दूरियाँ अब बढ़ती जा रही है।

कमला ने गाँव छोड़कर कृष्णानंद के साथ जिस समय शहर का रास्ता पकड़ा था तब शंका भरे स्वर में कहा था “गाँव छुड़ाकर कहीं शहर के गलियारे में ले जाकर न छोड़ देना पंडित!” (पृ.419)

अब स्थिति कुछ और ही है। पंडित कृष्णानंद तो जैसे थे वैसे ही रहे, पर कैथरिन बनी कमला बदल गई है। इतनी बदल गई है कि कृष्णानंद के साथ रहना, इनके साथ ज्यादा समय बिताना अब उसे अच्छा  नहीं लगता। कैथरिन अब पसंद करने लगी है पादरी साहब के भतीजे विलसन चौहान को, इसके साथ घूमती है, बेड्मिन्टन खेलती है। विलसन का फोटो भी अपने सिरहाने रखकर सोती है। अपनी खुली आँखों से वह सब देख रहे कृष्णानंद पंडित की जिंदगी अब पीड़ा के पत्थर नीचे दबती जा रही है।

इधर पादरी साहब कृष्णानंद को उपदेश के घूँट पिलाते ही रहते हैं - प्रभु उन सभी लोगों पर प्रसन्न रहते हैं, जो ईर्ष्या द्वेष से मुक्त और सहनशील है। .......आत्मा के अनुसार आचरण की पूरी आजादी देना ही सच्चा मनुष्य धर्म है। धर्म इस बात की पूरी पूरी आजादी देता है कि औरत अपने लिए अनुपयुक्त प्रेमी या पति को तलाक देकर, उपयुक्त और सही प्रेमी या पति का चुनाव कर ले।” (पृ.427)

पादरी साहब के साथ धर्म -प्रचार यात्रा से लौटने के बाद कृष्णानंद देखता है कि अब इसके रहने की व्यवस्था भी कब्रिस्तान के चौकीदार मि. गुडविल के कमरे में कर दी गई है। मि. गुडविल से ही कृष्णा को पता चलता है कि अगले क्रिसमस के बाद कैथरिन मिसेज विलसन चौहान बनने वाली है।

कृष्णानंद जब अपने गाँव में था तो उसकी स्थिति कमला से ज्यादा अच्छी थी। वहाँ वह ब्राह्मण था, ऊँची जाती का था। यहाँ तो एक नौकर से ज्यादा कुछ नहीं है। जबकि कमला का स्टेटस कुछ ज्यादा ही बेहतर हो गया। जिस पादरी की बातों को पहले वो बहुत ध्यान से, आदर और श्रद्धाभाव से सुनता था, इसमें विश्वास करता था परंतु अब इन सबके प्रति मानो इसका मोहभंग होने लगा है। “अब इसकी सहनशीलता विक्षिप्तता की सीमा तक जा रही है, और उसे लग रहा है कि आजतक का सारा दमित फुट पड़ने को है। वह चाहता है, कल फादर के यहाँ जाते ही, खुद उनकी आरामकुर्सी पर पाँव फैलाकर लेट जाये, और उन्हे अपने पायताने बिठा ले, और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर कहे- “फादर, हकीकत में तुमने ही मुझे अपने लिए चुना था। सिर्फ मुझे ही नहीं, कमला को भी तुमने अपने भतीजे के लिए चुना था । तुमने सरासर झूठ कहा कि प्रभु उन तमाम लोगों पर प्रसन्न रहता है, जो सही लोगों का चुनाव करते है।” (पृ.429)

जिस प्रेम के लिए, जिस प्रेमिका से विवाह कर सुखद दाम्पत्य जीवन जीने की इच्छा से पंडित कृष्णानंद ने अपना गाँव छोड़ा, समाज छोड़ा यहाँ तक कि अपना धर्म छोड़ा, वह स्त्री अब उससे दूर हो गई। जब गाँव में था तो कृष्णा की स्थिति कमला से बेहतर थी, वह धीरे धीरे कमला से भी उपेक्षित होता गया। जिस सुकून की ज़िंदगी हेतु  वह मिशन की और पादरी साहब की शरण में आया पर वह जिंदगी उसे मिली नहीं। वह अपने को ठगा-सा, वंचित-सा महसूस करता है। जिस तरह कमला को मिशन और फादर की ओर से अपने स्टेट्स को ऊपर उठाने के अवसर मिले ठीक उसी तरह के लाभ यदि कृष्णानंद को भी मिलता तो शायद उसकी स्थिति आज ऐसी न होती।

कहानी के अंत में हम देखते हैं कि कमला की किनारीदार धोती की फाँसी लगाकर कृष्णानंद ‘सुसाइड’ कर लेता है। मृत कृष्णानंद की कमीज की जेब से पादरी साहब को एक कागज मिलता है। कागज में दो इबारतें लिखी थी-

·       तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें चुना और नियुक्त किया। .....

·       हे ईश्वर मुझे जाँच, और मेरे मन को जान ले और देख कि मुझमें कोई बुराई तो नहीं.......और अनन्त मार्ग में मेरी अगुवाई कर। ........(पृ.431)

          इन कथनों का अर्थ तो स्पष्ट ही है परंतु सुसाइड करने वाले कृष्णानंद की जेब से निकले कागज में ये रेखांकित थे अतः हम कृष्णानंद के संदर्भ में इसके अर्थ का अनुमान कर सकते हैं, अर्थात इन कथनों के जरिये वो क्या कहना चाहता है ? इस पर विचार कर सकते हैं। प्रथम उद्धरण के संदर्भ् में हम कह सकते हैं कि कृष्णानंद अपनी स्थिति के लिए किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा - वह कहना चाहता है की इन्होंने ही स्वयं ईसाई को और पादरी साहब का चयन किया, पादरी साहब ने इसे नहीं चुना तो दूसरी ओर इस कथन से शायद वो पादरी के प्रति अपनी नाराजगी, रोष प्रगट कर रहा है कि अपना नौकर बनाने के लिए ही पादरी साहब ने इन्हे और इनके भतीजे के लिए कमला को चुना। दूसरे कथन का अर्थ स्पष्ट है, कृष्णा अपने को परमपिता परमेश्वर के सामने रखते हुए बताना चाहता है कि मुझे वह जाने, समझे और यदि मुझमें कोई दोष हो तो मुझे इसका बोध कराएँ, अब वह मृत्यु का वरण कर अनन्त मार्ग, अनन्त यात्रा का चयन कर रहा है।



    डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

               

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