विश्व में हिन्दी के बढ़ते चरण
डॉ.मनीष गोहिल
विश्व में अनेकों
भाषाएँ और बोलियों का वर्चस्व रहा है। भारत की बात करें तो भारत देश में विभिन्न
प्रदेश समाहित हैं। “कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी” कहावत भारत को
लेकर ही बनी है। ऐसे विविधता भरे देश की राष्ट्रभाषा-राजभाषा के रूप में हिन्दी का
उत्तरोत्तर विकास हो रहा है। वर्तमान में हिन्दी का रूप मात्र किताबों में न रहकर
वैश्विक पटल पर एवं डिज़िटल प्लेटफोर्म पर रफ़तार से दौड़ रहा है।
आज हिन्दी भाषा
विश्व फलक पर चीनी भाषा के बाद बोली जानेवाली तीसरी भाषा बन गई है। वर्ल्ड
लैंग्वेज डेटाबेस के बाईंसवें संस्करण इथोनोलोज में बताया गया है कि विश्व में
तकरिबन 61.5 करोड़ से भी ज्यादा लोग हिन्दी भाषा को समझते हैं और इस्तेमाल करते हैं।
भारत में पैंतालीस करोड़ से भी ज्यादा लोगों की बातचीत का जरिया हिन्दी भाषा ही
है। (आजतक, 18 फरवरी,2020)
आज विश्व के
अधिकतर देशों में हिन्दी का पठन-पाठन हो रहा है। इसलिए आज हिन्दी विश्व स्तर पर
आपना झंडा लहरा रही है। हिन्दी की उर्वराशक्ति और शब्द चयन की बद्धता एवं
प्रयोगशीलता ने इसे श्रेष्ठत्तर बना दिया है। हिन्दी की विकासोन्मुख छवि के कारण
हिन्दी को सृजन, शैक्षिक-विचार और रोजगार के साथ जोड़ने के कारण विश्व में
महत्वपूर्ण स्थान मिलने लगा है।
हिन्दी के पास सबसे
बड़ी शक्ति यह है कि इसकी असंख्य शब्द निर्माण की क्षमता एवं दूसरी भाषाओं के
शब्दों को आत्मसात करने की विशिष्टता रही है। नि:संदेह अपनी अतुलनीय शब्द संपदा
एवं वैज्ञानिक पद्धति के साथ देवनागरी लिपि भी कंप्यूटर जगत पर भी राज करने की
क्षमता रखती है। इसीलिए आज हिन्दी को वैश्विक भाषा का रूप भी मिल गया है।
वर्तमान में
विश्व में कई देशों में भारतीयों के प्रवासी या निवासी बनने के कारण हिन्दी का
प्रचार-प्रसार होने लगा है। मॉरिशस, फ़ीजी, त्रिनिदाद, सूरीनाम, न्यूजीलैण्ड,
इण्डोनेशिया, म्यांमार (बर्मा), मैक्सिको, लैटिन अमेरिका, क्यूबा, वेनेज्युएला,
कोलोम्बिया, पेरु, अर्जेन्टाइना, चिली, दक्षिण आफ्रीका आदि देशों में हिन्दी भाषा
का प्रयोग दिनों दिन बढ़ रहा है। यहाँ तक कि अरब देशों में भी हिन्दी भाषा निरंतर
प्रचार-प्रसार में रही है। इन देशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार मात्र बोलचाल की
भाषा के रूप में नहीं बल्कि अभ्यास के क्षेत्र में भी हुआ है। एक संशोधन के अनुसार
विश्व में अंदाजित 144 के आसपास विश्व विद्यालयों में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था
है। जहाँ एम.ए. से लेकर पीएच.डी एवं डिप्लोमा तक का अभ्यासक्रम चल रहा है।
जापान, चीन तो अपने छात्रों को भारतीय संस्कृति के परिचय के लिए भारत में अभ्यास हेतु भेज रहा है। वैसे भी बौद्ध धर्म के कारण भी इन देशों में हिन्दी का प्रसार हुआ ही है। इसी कड़ी में फ़ीजी में भी हिन्दी को विशेष स्थान मिला है। इसी प्रकार जर्मनी में क्लासिक जर्मन प्राच्यविद्या की व्यापक एवं उपयुक्त परंपरा रही है। तुलनात्मक अध्ययन द्वारा विश्व के समक्ष ऐसे उज्ज्वल सांस्कृतिक धरोहर को लाने का भगीरथ कार्य हिन्दी के माध्यम से हुआ है। सूरीनाम के विश्व विद्यालयों में हिन्दी के पाठ्यक्रम चल रहे हैं, तो हमारे पड़ोसी देश नेपाल में तो 80 प्रतिशत लोग हिन्दी में ही व्यवहार करते हैं। पाकिस्तान में भी उर्दू के साथ हिन्दी भी व्यवहार में रही है। वहाँ के पंजाब विश्व विद्यालय में उच्च डिग्री तक की पढ़ाई हिन्दी में ही हो रही है। चेक गणराज्य की चार्ल्स विश्व विद्यालय में कई वर्षों से हिन्दी पढ़ाई जा रही है। स्टॉकहोम, नोर्वे, फ्रान्स, इटली, डेन्मार्क, स्विट्जरलैण्ड, ओस्ट्रीया, पोलेण्ड, बल्गारिया, युगोस्लाविया आदि देशों में हिन्दी का पठन-पाठन तेज गति से हो रहा है। हिन्दी शिक्षण में रूस का भी प्रमुख स्थान है। यहाँ 34 से भी अधिक संस्थाओं एवं विश्व विद्यालयों में हिन्दी का अभ्यासक्रम चल रहा है। विश्व में जिन जिन विश्व विद्यालयों में हिन्दी पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ायी जा रही है, उसके परिचय को देखते हैं। -
1.
अमरिका –
- शिकागो विश्वविद्यालय
- कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय
- स्टेन्डफोर्ड विश्वविद्यालय
- बर्कले विश्वविद्यालय
- वॉशिंग्टन विश्वविद्यालय
- वर्जिनिया विश्वविद्यालय
- कोलम्बिया विश्वविद्यालय
2.
कनाडा –
- ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय
- मॉट्रिल विश्वविद्यालय
3.
रूस –
- प्राच्य भाषा संस्थान
- प्लाविस्टोक स्टेट विश्वविद्यालय
4.
ब्रिटन –
- लंदन विश्वविद्यालय
- केम्ब्रिज विश्वविद्यालय
- यार्क विश्वविद्यालय
5.
जर्मनी –
- टुम्बोल्ट विश्वविद्यालय
- बर्लिन विश्वविद्यालय
- वार्न विश्वविद्यालय
- मार्टिन ल्यूथर विश्वविद्यालय
- हेम्बर्ग विश्वविद्यालय
- बर्लिन लिपजिंग विश्वविद्यालय
6.
फ्रान्स –
- सोरबेन विश्वविद्यालय
- प्राच्य विश्वविद्यालय
7.
होलेन्ड –
- लायडन विश्वविद्यालय
8.
स्वीडन –
- स्टोकहार्म विश्वविद्यालय
9.
डेन्मार्क –
- कोपेन हेगन विश्वविद्यालय
10.
इटली –
- नेवल्स विश्वविद्यालय
- मिलान विश्वविद्यालय
- ड्यूरिन विश्वविद्यालय
11.
जापान –
- टोकियो विश्वविद्यालय
- ओशाका विश्वविद्यालय
12.
आस्ट्रेलिया –
- केनवरा विश्वविद्यालय
13.
अफ्रिका –
- डरबन विश्वविद्यालय
14.
चीन –
- बीजिंग विश्वविद्यालय
15.
रोमानिया –
- बुकारेस्ट विश्वविद्यालय
उपरोक्त सभी
विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन का कार्य चल रहा है। यह द्योतक है विश्व
में हिन्दी के बढ़ते चरण का।
सुखद आश्चर्य है
कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद हिन्दी ने अपना एक निश्चित् स्थान बना लिया। वर्तमान
में सूचना प्रोद्योगिकी के बदलते परिवेश में भी हिन्दी ने अपना स्थान कर लिया है।
आज देश में नई प्रोद्योगिकीय पद्धति का
अमल हो चुका है। हमारे सामने ई-कोमर्स, ई-लर्निंग, ई-प्रशासन, ई-गवर्नन्स, ई-धारा,
ई-शिक्षा आदि नाम आ रहे हैं। ये सब हिन्दी भाषा में कार्यरत हो चुके हैं, तो जाहिर
सेवा क्षेत्र – बैकिंग, रेल्वे, बीमा, दूरसंचार आदि में ऑन लाइन जो कार्य हो रहा
है, उसकी प्रमुख भाषा के रूप में हिन्दी ही है। कई मोबाइल कंपनियों ने हिन्दी के
सॉफ्टवेयर डलवाए हैं, जिससे मोबाइल फ़ोन में हिन्दी में मेसेज भिजवाए जा सके। आज
इंटरनेट पर हिन्दी के सर्च एंजिन है। स्वयं गुगल ने भी हिन्दी में अपना होम पेज
रखा है। नेट पर हिन्दी की कितनी सारी बॅब साइटस् तथा वॅब पोर्टल देखने को मिलते
हैं। आज यूनिकोड पद्धति ने अपनी पहचान बना
ली है। कम्प्यूटर के क्षेत्र में अब तक हिन्दी का प्रयोग फॉण्ट स्तर पर ही किया
गया था, लेकिन ऑफिस हिन्दी के आगमन से हिन्दी सच्चे अर्थों में कम्प्यूटर के
क्षेत्र में विश्व की अन्य विकसित भाषाओं के समकक्ष आ गई है। जब से माइक्रोसॉफ्ट
ने हिन्दी को ऑपरेटिंग सिस्टम में समाहित किया है, तब से कम्प्यूटर संबंधी सभी
अनुप्रयोगों में हिन्दी का प्रयोग सहजता और सरलता से किया जा सकता है। कहने का
अर्थ यह है कि आज हिन्दी मात्र साहित्य में न रहकर वेब दुनिया की भी प्रमुख भाषा
बन गई है। आज तो हॉलिवुड भी अपनी फिल्मों को हिन्दी में डब करके प्रसारित करने लगा
है। कारण, आज भारत विश्व के लिए एक बहुत बड़ा 'मार्केट' बन गया है। पूरी दुनिया की
नज़रें भारत पर टिकी है। सब जानते हैं कि भारत में कोई भी चीज़ बेचनी होगी तो उनकी
भाषा में ही डब करके बेचनी पडेगी। ग्लोबलाइज़ेशन का सीधा फायदा हिन्दी को हुआ है।
इस संदर्भ में हिन्दी ने वैश्विक रूप ले लिया है यह स्वाभाविक ही है। मैं इस बात
से खुश हूँ कि विश्व के अनेक देश हिन्दी का महत्त्व समझने लगे हैं, लेकिन दुख भी
है कि मेरे देश में यह बात समझी नहीं जा रही। खैर, हिन्दी का विकास उसकी अपनी ताकत
पर हो रहा है और यह ताकत – आज का सायबर युग। आज सायबर युग में बड़ी – बड़ी नेट
साइट्स हिन्दी में आपना वॅब पेज रखने लगी हैं। कई ब्राउजर हिन्दी को अपना चुके
हैं। फेसबुक, ट्वीटर, यू ट्युब, इनस्टाग्राम, ब्लॉग आदि सभी कुछ को देखें तो ये सब
हिन्दी में उपलब्ध हैं। आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि गगनांचल के जुलाई –
अक्टूबर, 2015 के अंक में पृष्ठ नं. 207 से 210 तक रेखा श्रीवास्तव ने अपने लेख 'सहयात्री
हिन्दी वेब – लिंक्स' में हिन्दी की अनगिनत वेब - लिंक्स की पूरी नामावली दी है।
इनमें हिन्दी पत्रिकाएं, साहित्य कोश – शब्दकोश, राष्ट्रीय पोर्टल, वेब पोर्टल,
शिक्षा, हिन्दी शिक्षण / यंत्र / हिन्दी निर्देशिका, धर्म, खेल, अखबार आदि के बारे
में जानकारी दी हैं। इससे भी ज्ञात होता है कि इंटरनेट पर हिन्दी की प्रगति कितनी
सुखद रूप में हो रही है। इतना ही नहीं ऑन लाइन शॉपिंग कंपनियों ने भी अपना व्यापार
बढ़ाने के लिए हिन्दी में अपनी ऐप तथा वेब साइट्स रख दी हैं। इसी से अनुमान लगाया
जा सकता है कि हिन्दी का बोलबाला कितना बढ़ रहा है। कहा जा सकता है कि आज हिन्दी
यत्र-तत्र-सर्वत्र है।
जिस प्रकार
इंटरनेट पर हिन्दी का बोलबाला है, ठीक उसी प्रकार टेलीविज़न पर भी हिन्दी का अपना
वर्चस्व दिखाई देता है। आज टेलीविज़न पर जितनी भी चेनल्स् प्रसारित हो रही है, उन
में हिन्दी चेनल्स् की संख्या ज्यादा है। अंग्रेजी चेनल वाले यहाँ हिन्दी में अपने
सारे प्रोग्राम प्रसारित कर रहे हैं। उन्हें ज्ञात है कि भारत में सक्सेस होना है,
तो हिन्दी को लेकर ही चलना पड़ेगा। कुछ नाम गिनाये जा सकते हैं, जैसे – हिस्ट्री,
डिस्कवरी, फॉक्स ट्रावेल, आदि। इसी प्रकार न्यूज़ चैनल्स् भी सबसे ज्यादा हिन्दी
की ही है। अत: हिन्दी का यह रूप उसको वैश्विकता प्रदान करता है। वर्तमान में हिन्दी
ने अपने पंख फैला कर विश्व के कई देशों में अपना प्रभुत्व स्थापित कर दिया है। आज हिन्दी
मात्र साहित्यिक भाषा न रहकर एक व्यवहारिक – प्रयोजनमूलक भाषा बन चुकी है। आज हर
जगह हिन्दी का बोलबाला होने लगा है। हिन्दी का रूप साहित्यिता के साथ – साथ
विभिन्न रंगों में रंगा नज़र आ रहा है। हिन्दी का जो नया रूप आया है, वह उसके
विकास का द्योतक है। आज हिन्दी विश्व की पहचान है, भारत की आवाज़ है, हमारी शान
है।
डॉ.मनीष गोहिल
विभागाध्यक्ष,
हिन्दी विभाग,
श्रीमती आर.डी.शाह आर्टस् कॉलेज़,
धोलका – 382225
बहुत ही सुंदर
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