शनिवार, 11 सितंबर 2021

कविता

 


जय हिन्दी,जय भारती

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

 

 

सरल, सरस भावों की धारा,

जय हिन्दी, जय भारती।

 

शब्द शब्द में अपनापन है,

वाक्य भरे हैं प्यार से,

सबको ही मोहित कर लेती

हिन्दी निज व्यवहार से,

 

सदा बढ़ाती भाई-चारा,

जय हिंदी, जय भारती।

 

नैतिक मूल्य सिखाती रहती,

दीप जलाती ज्ञान के,

जन-गण-मन में द्वार खोलती

नूतनतम विज्ञान के,

 

नव-प्रकाश का नूतन तारा,

जय हिन्दी, जय भारती।

 

देवनागरी, भर देती है

संस्कृति की नव-गंध से,

इन्द्रधनुष से रंग बिखराती

नव-रस, नव-अनुबंध से,

 

विश्व-ग्राम बनता जग सारा,

जय हिन्दी, जय भारती।



 

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

आबू रोड ( राजस्थान)

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