डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
उपर्युक्त/उपरोक्त
उपर्युक्त
शब्द तो तत्सम है।
इसकी व्युत्पत्ति
स्पष्ट है।
यह शब्द उपरि
तथा उक्त की संधि से बना है।
सवाल है,
उपरोक्त की व्युत्पत्ति का।
कुछ लोग यह
मानते हैं कि यह उपर तथा उक्त की संधि से बना है।
वैसे तो यह
धारणा ठीक ही लगती है। उपर तथा उक्त की संधि में कोई कठिनाई नहीं।
परंतु सवाल
है कि उपर शब्द कहाँ से – कैसे आया?
लोग यह भी
मानते हैं कि उपरि शब्द के रि के इ का लोप हो गया और उपरि शब्द उपर बन गया।
फिर उसके साथ
उक्त की संधि हो गई और उपरोक्त शब्द बन गया।
परंतु,
यह तर्क या कल्पना मुझे स्वाभाविक नहीं लगती।
जब ‘उपर्युक्त’
शब्द पहले से मौजूद है। प्रयोग में है, तो
फिर इतनी लंबी प्रक्रिया से एक नया शब्द बनाने की क्या जरूरत?
मेरी धारणा
कुछ दूसरी है।
मेरी समझ यह
कहती है कि उपरोक्त सीधे उपर्युक्त का ही विकसित यानी अपभ्रंश रूप है।
कारण कि उ
तथा ओ आपस में रूपांतरित होते रहते हैं। दोपहर का उच्चारण दुपहर होता है।
यानी
उपर्युक्त पहले उच्चारण में उपरोक्त हुआ।
उपर्युक्त
में दो-दो संयुक्त ध्वनियाँ एक साथ हैं।
पूरी सावधानी
के बिना उपर्युक्त का सही उच्चारण सरलता से नहीं हो सकता।
एक आम भाषा
प्रयोक्ता उतनी सावधानी नहीं रख सकता।
उच्चारण की इसी
प्रक्रिया से एक शब्द से दूसरे शब्द बनते हैं।
उपरोक्त शब्द
इसी प्रक्रिया का परिणाम है।
नायक/नायिका
आप लोग ऐसे
शब्दों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं?
हर शब्द में
संधि ढूँढ़ना।
नायिका शब्द
नायक शब्द के साथ स्त्री प्रत्यय टाप् जोड़ने से बना है।
किसी
पुल्लिंग शब्द के साथ स्त्री प्रत्यय टाप् जुड़ता है, तब ट् और प् का लोप हो जाता है तथा आ बच जाता है।
यानी
नायक+टाप्
नायक+आ (ट्
और प् का लोप)
जिस शब्द के
साथ टाप् प्रत्यय जुड़ता है, उसके अंत में यदि क
प्रत्यय हो और क के पहले अ हो तो उस अ का इ हो जाता है।
इस तरह -
नायक+आ
नायिक+आ (य्
के अ का इ हो गया)=नायिका
नायक शब्द नी
धातु के साथ ण्वुल् प्रत्यय जुड़ने से बना है।
नी+ण्वुल्
किसी धातु से
जुड़ते समय ण्वुल् के ण् तथा ल् की इत्संज्ञा होने से लोप हो जाता है और बचता है
वु।
अब -
नी+वु
फिर वु के
स्थान पर अक का आदेश होता है।
अर्थात्
नी+अक
और भी-
ण्वुल्
प्रत्यय के पूर्व धातु के स्वर की वृद्धि हो जाती है। यानी ई के स्थान पर ऐ हो
जाता है।
नी+ण्वुल्
नी+वु
नी+अक
नै+अक
नायक
फिर नायक के
साथ टाप् प्रत्यय जुड़ने से नायिका शब्द बनता है।
अब आप लोग
इसमें संधि खोज लीजिए।
क्रिया
की अवस्थाएँ
हिंदी में
क्रिया की मुख्य दो अवस्थाएँ होती हैं -
१.पूर्ण
अवस्था तथा २. अपूर्ण अवस्था।
क्रिया के
जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया के द्वारा सूचित कार्य पूरा हो चुका है,
क्रिया का वह रूप ‘क्रिया की पूर्ण अवस्था’ कहलाता है।
क्रिया के
जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया के द्वारा सूचित कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है,
क्रिया का वह रूप ‘क्रिया
की अपूर्ण अवस्था’ कहलाता है।
लिंग और वचन
के आधार पर क्रिया की पूर्ण अवस्था के चार भेद होते हैं -
१. पुल्लिंग
एकवचन
पुल्लिंग
एकवचन का रूप धातु के साथ ‘-आ’ प्रत्यय जोड़ने से बनता है। जैसे -
लिख से लिखा
पढ़ से पढ़ा
देख से देखा
सुन से सुना
२. पुल्लिंग
बहुवचन का रूप धातु के साथ ‘-ए’ प्रत्यय जोड़ने से बनता है। जैसे -
लिख से लिखे
पढ़ से पढ़े
देख से देखे
सुन से सुने
३.
स्त्रीलिंग एकवचन का रूप धातु के साथ ‘-ई’ प्रत्यय जोड़ने से बनता है। जैसे -
लिख से लिखी
पढ़ से पढ़ी
देख से देखी
सुन से सुनी
४.
स्त्रीलिंग बहुवचन का रूप धातु के साथ ‘-ईं’ प्रत्यय जोड़ने से बनता है। जैसे -
लिख से लिखीं
पढ़ से पढ़ीं
देख से देखीं
सुन से सुनीं
यहाँ यह
ध्यान देने की बात है कि ऊपर जो भी रूप बने हैं, सभी अकारांत धातुओं के रूप हैं।
अन्य धातुओं
के रूप इनसे थोड़े भिन्न पड़ते हैं। उनके साथ जब -आ, -ए, -ई, -ईं प्रत्यय जुड़ते हैं,
तब धातु और प्रत्यय के बीच एक ‘य’ आ जाता है, जिसे
हम श्रुति ‘य’ कहते है। यानी वह सिर्फ सुनाई पड़ता है। वास्तव में वह होता नहीं
है। न धातु में, न प्रत्यय में।
जैसे -
खा के साथ -आ,
-ए, -ई, -ईं प्रत्यय
जोड़ने से
खाया,
खाये (खाए), खायी (खाईं), खायीं, खाईं।
पी धातु से
पिया,
पिये (पिए) (पुल्लिंग), पी, पीं (स्त्रीलिंग)।
दे धातु से
दिया,
दिये (दिए), दी, दीं।
धो धातु से
धोया,
धोये (धोए), धोयी (धोई), धोयीं (धोईं)
विचारणीय -
इन क्रिया
रूपों पर हम ध्यान दें तो -
१. पुल्लिंग
एकवचन में एक ही रूप बनता है - खाया, पिया,
लिया, दिया, रोया,
सोया आदि।
वैसे तो
खा,
पी, ले, दे जैसी धातुओं
के साथ एकवचन का -आ प्रत्यय जुड़ने पर रूप बनना चाहिए -
खाआ,
पिआ, लिआ, दिआ।
लेकिन
ध्वनियों के कुछ संयोग ऐसे होते हैं, जिनका
उच्चारण सरल नहीं होता।
ऐसी ही
स्थितियों में य की श्रुति होती है। इसलिए ये क्रियारूप
खाया,
पिया, लिया, दिया के रूप
में उच्चरित होते हैं और इसी रूप में लिखे जाते हैं।
जबकि उनकी
रचना में य नहीं होता।
पुल्लिंग
बहुवचन का प्रत्यय है -ए। इससे रूप बनेंगे -
खाए,
पिए, लिए, दिए, सोए, रोए ….।
स्त्रीलिंग
एकवचन का प्रत्यय -ई तथा बहुवचन का प्रत्यय -ईं लगाने पर रूप बनेंगे -
खाई/खाईं,
पी/पीं, दी/दीं, सोई/सोईं….
लेकिन
व्यवहार में -
खाये,
पिये, लिये, दिये,
सोये, रोये। (पुल्लिंग)
तथा
खायी/खायीं,
सोयी/सोयीं….
रूपों का भी
प्रयोग होता है।
यही कारण है
कि बहुत-से लोग इस उलझन में रहते हैं और आपस में बहस भी करते हैं कि -
खाये-खाए,
पिये-पिए, लिये-लिए …
तथा
खायी-खाई,
खायीं-खाईं ….
जैसे रूपों
में से सही रूप कौन-सा है?
अब इस पर
विचार करते हैं।
खाए,
खाई, खाईं जैसे रूप धातु के साथ सीधे
प्रत्ययों के जुड़ने से बनते हैं।
जबकि
खाये,
खायी, खायीं जैसे रूप पुल्लिंग एकवचन के रूप
के साथ पुल्लिंग बहुवचन के प्रत्यय तथा स्त्रीलिंग के एकवचन-बहुवचन के प्रत्ययों
को जोड़ने से बनते हैं।
दोनों प्रकार
के रूपों में यह फर्क है।
सवाल है कि
इनमें कौन सही है तथा कौन गलत?
किसी एक को
गलत कहने का कोई ठोस भाषिक आधार नहीं है।
फिर भी,
खाए, खाई … जैसे रूपों को वरीयता के आधार पर
मानक माना जा सकता है, क्योंकि इनकी रचना धातु के साथ सीधे
प्रत्ययों के जुड़ने से होती है।
लेकिन अगर
कोई खाये,
खायी … जैसे रूपों का प्रयोग करता है, तो उसे
गलत भी नहीं कह सकते।
कारण कि भाषा
कोई यांत्रिक वस्तु नहीं है।
योगेन्द्रनाथ
मिश्र
40,
साईं पार्क सोसाइटी
बाकरोल
– 388315
जिला
आनंद (गुजरात)
सुंदर ज्ञानवर्धक जानकारी-बधाई।
जवाब देंहटाएं