पद्मा सचदेव
(17 अप्रैल 1940 – 4 अगस्त 2021)
राजा
दुबे
यह
सवाल कहीं आप मेरी परीक्षा के लिए तो नहीं पूछ रहे हैं ?
खुशमिजाज
और बातचीत में खुलकर बोलने वाली प्रख्यात लेखिका पद्मा सचदेव मध्यप्रदेश सरकार
द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय अवदान के कारण राष्ट्रीय कबीर सम्मान
प्राप्त करने जब भोपाल आईं तो एक प्रेस कान्फ्रेंस में एक पत्रकार ने उनसे पूछा –आपको
कबीर सम्मान से अलंकृत किया जा रहा है, क्या
आपने कबीर को पढ़ा है ?
उनके
सवाल से हतप्रभ पद्माजी कुछ समय चुप रहीं। फिर वो आहिस्ते से बोलीं यह सवाल कहीं आप
मेरी परीक्षा के लिए तो नहीं पूछ रहे हैं ?
मेरा
मानना है कि इस देश के हर लेखक ने किसी और को चाहे पढ़ा हो या नहीं,
कबीर को ज़रूर पढ़ा है। मेरा
जहाँ तक सवाल है मैंने कबीर को पढ़ने के पहले कई बार सुना है।
आकाशवाणी
की नौकरी में मैं खाली समय में आर्काइव से निकाल कर कुमार गन्धर्व सा’ब के कबीर के निर्गुनिया पद सुना करती थी। और जैसा कि कुमार गन्धर्व के कमोबेश
सभी प्रशंसक पसंद करते हैं मुझे भी उनका गाया कबीर का यह पद –
“उड़ जायेगा हँस अकेला,
गुरु दर्शन का मेला ...” बेहद पसंद है। वो रेडियो की नौकरी के अपने
साथियों से कहती भी थीं कि मेरे अवसान पर यदि –
रिमेम्बरिंग पद्मा सचदेव “कार्यक्रम बनाएँ तो उसका शीर्षक यही दीजिएगा - “उड़
जायेगा हँस अकेला ....”। पता नहीं ऐसा हुआ या नहीं मगर एक और हँस उड़ गया और धवल
हँसों की पाँत में एक खाली स्थान बन गया।
भाषाई
वितान पर दमकता
हिन्दी
का सूर्य अस्त हो गया
पद्मा
सचदेव के अवसान से भाषाई साहित्य के वितान पर दमकता हिन्दी का एक सूर्य अस्त हो
गया।
एक
भारतीय कवयित्री और उपन्यासकार पद्मा सचदेव डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री
थीं । पद्मा सचदेव का जन्म, 17 अप्रैल 1940 में जम्मू-कश्मीर के जम्मू जिले के पुरमण्डल गाँव में हुआ था । उनके पिता
प्रोफेसर जयदेव शर्मा हिन्दी व संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे, जो वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के दौरान मारे गए
थे। वे अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनकी शादी वर्ष 1966 में ‘सिंह बंधु’ नाम से प्रचलित
सांगीतिक जोड़ी के गायक ‘सुरिंदर सिंह’ से हुई थी । पिछले कई सालों से वे नई दिल्ली में ही रहती थीं ।
वे
हिन्दी में भी समान अधिकार के साथ लिखती थीं। पद्माजी एक लब्ध प्रतिष्ठित रचनाकार
थीं और उनके कविता संग्रह – ‘मेरी कविता, मेरे
गीत’ के लिए उन्हें वर्ष 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
प्राप्त हुआ था। वर्ष 2001 में आपको भारत सरकार के नागरिक
सम्मान पद्मश्री से और वर्ष 2007-08 में मध्यप्रदेश सरकार
द्वारा साहित्य में उल्लेखनीय अवदान के लिए राष्ट्रीय कबीर सम्मान प्रदान किया गया
था। पद्माजी को जो कुछ उल्लेखनीय सम्मान मिले उनमें सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार,
हिन्दी अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी
अकादमी सौहार्द पुरस्कार, राजा राममोहन राय पुरस्कार,
जोशुआ पुरस्कार और अनुवाद पुरस्कार शामिल हैं।
“मदर ऑफ डोगरी” के रूप में अपनी
पहचान बनाने वाली पद्मा सचदेव ने सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका लता मंगेशकर के डोगरी
भाषा के पहले म्यूजिक एलबम को भी कम्पोज़ किया था। इस एलबम के कुछ गीतों जैसे –
“भला शापिया डोरिया...” और “तून मला तून...”
तो
आज़ भी लोगों की जुबान पर हैं। पद्माजी के पहले कविता संग्रह – ‘मेरी कविता मेरे
गीत’ की प्रस्तावना में लिखा है कि पद्मा की कविता पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मुझे
अपनी कलम फेंक देनी चाहिए – पद्मा जो लिखती है वह वास्तव में सच्ची कविता है। डोगरी
लोकगीतों और लोककथाओं से अनुप्रेरित होकर पद्माजी ने डोगरी में लिखना आरम्भ किया।
उनकी पहली कविता वर्ष 1955 में एक स्थानीय
अखबार में छपी थी। वर्ष 1969 में आपका पहला कविता संग्रह – ‘मेरी
कविता मेरे गीत’ प्रकाशित हुआ। केवल डोगरी ही नहीं हिन्दी और संस्कृत में भी आप
समान अधिकार के साथ लिखती थीं। आपने कविता के अलावा हिन्दी में लघुकथाएँ और
उपन्यास भी लिखे हैं। दो हिन्दी फिल्म – ‘प्रेम पर्वत’ और ‘आँखिन देखी’ के लिए आपने
गीत भी लिखे। आप एक दक्ष लेखिका के साथ मेधावी अनुवादक भी थीं। आपने उर्दू,
मराठी और ओड़िया में लिखी कई रचनाओं का हिन्दी और डोगरी में अनुवाद
किया। आपको साहित्य अकादमी का अनुवाद सम्मान भी प्रदान किया गया था।
उपलब्धियाँ
–
पद्मा
सचदेव ने प्रारंभिक दिनों में जम्मू और कश्मीर रेडियो में स्टाफ कलाकार के पद पर
एवम् बाद में दिल्ली रेडियो में डोगरी समाचार वाचिका के पद पर कार्य किया। पहले उन्होंने
कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त की ।
प्रकाशित
कृतियाँ –
v नौशीन, किताबघर, 1995.
v मैं
कहती हूँ आँखिन देखी (यात्रा वृत्तांत). भारतीय ज्ञानपीठ,
1995
v भाई
को नहीं धनंजय, भारतीय ज्ञानपीठ, 1999
v अमराई,
राजकमल प्रकाशन, 2000
v जम्मू
जो कभी सहारा था (उपन्यास). भारतीय ज्ञानपीठ, 2003
v फिर
क्या हुआ ?, जाने सवेरा और पार्थ सेनगुप्ता
के साथ, नेशनल बुक ट्रस्ट, 2007
इनके
अलावा तवी ते चन्हान, नेहरियाँ गलियाँ,
पोता पोता निम्बल, उत्तरबैहनी, तैथियाँ, गोद भरी तथा हिन्दी में एक विशिष्ट उपन्यास
‘अब न बनेगी देहरी’ आदि।
अनूदित
कृतियाँ –
v व्हेअर मॉय गुल्ला गोन?
(एन्थोलॉजी) प्रभात प्रकाशन,
2009
v ए ड्रॉप इन द ओसन (बूँद और
बावड़ी) आत्मकथा
v उमा
वासुदेव और ज्योत्स्ना सिंह ,नेशनल बुक ट्रस्ट
2009
v आधुनिक भारतीय साहित्य, एक संकलन, नाटक और गद्य, के एम
जार्ज, साहित्य अकादमी, 1992
v डोगरी
साहित्य के दो दशक, शिवनाथ ,1997
v पद्मा
सचदेव - परिचय, दिव्या माथुर
v आशा
- भारतीय महिला लेखिकाओं की लघु कहानियाँ, भारतीय
भाषाओं से अंग्रेजी में अनूदित, स्टार पब्लिकेशन
राजा
दुबे
सेवानिवृत्त
संयुक्त संचालक, जनसंपर्क मध्यप्रदेश
एफ
- 310
, राजहर्ष कालोनी,
(अकबरपुर) कोलार रोड,
भोपाल(म.प्र.)
- 462042
वाह दुबे जी । डोंगरी की महान कवियित्री पद्मा जी पर अनसुनी जानकारी के साथ सुंदर लेख की बधाई ।
जवाब देंहटाएंपद्मा सचदेव जी के व्यक्तित्व के कई अनसुने पहलुओं को उद्घाटित करता सुंदर आलेख।आदरणीय राजा दुबे जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर आपका..."मदर ऑफ डोगरी" पद्मा सचदेव जी के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी जानकारी को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंपद्मा सजदेव जी के व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों को उजागर करता बहुत खूबसूरत आलेख।बधाई
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